‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 1

भारतीय लोक और फ़ोक। सत्यदेव त्रिपाठी। अंग्रेजों के साथ आयी अंग्रेज़ी ने हमारे ‘लोक’ का जो नुक़सान किया, वह देश की ग़ुलामी से कम नहीं, बल्कि प्रतिशत में ज़्यादा है। क्योंकि 200 सालों की ग़ुलामी के बावजूद देश में काफ़ी कुछ अपना साबुत रह गया, पर ‘लोक की अवधारणा’ तो पूरी की पूरी बदल गयी। … Continue reading ‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 1