‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 2

‘गाथा’ एवं लोकगाथा बनाम लोककथा। सत्यदेव त्रिपाठी। अब लोक में व्याप्त अनेकानेक कलारूपों में अपने विवेच्य ‘लोक गाथा’ पर चलें, जो यह ‘फोक’ की चक्की में पिस कर ‘फोकटेल’ हो गया। मज़ा तो यह कि ‘लोक कथा’ व ‘लोक गाथा’ दोनो ही ‘फोकटेल’ हो गये। पता नहीं क्यों ‘लोक कथा’ के लिए ‘फ़ोक स्टोरी’ नहीं … Continue reading ‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 2