‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 6

आल्हा गायन। सत्यदेव त्रिपाठी। हमारे अंचल की लोकगाथा का तीसरा रूप था– आल्हा-गायन। हिंदी साहित्य के आदि काल में कवि जगनिक लिखित ‘आल्हखंड’ पर आधारित- उसी से विकसा…। जैसे राजस्थान या देश के पूरे पश्चिमांचल प्रांतरों में ‘ढोला मारू रा दूहा’ का गायन लोक गाथा के रूप में सदाबहार है, उसी तरह हमारे पूर्वांचल में … Continue reading ‘लोकगाथा’ : कुछ कागद-लेखी कुछ आँखन-देखी 6