होरी, गोबर ,धनिया जस के तस सब जिंदा…

आज भी उपेक्षित और शोषित हैं प्रेमचंद के पात्र। शिवचरण चौहान। प्रेमचंद जी माफ करो, हम सब शर्मिंदा हैं। होरी, गोबर ,धनिया जस के तस सब जिंदा हैं।। अब भी वैसा का वैसा है प्रेमचंद का भारत। लिए हाथ में दो पैसा है प्रेमचंद का भारत।। ये पंक्तियां याद दिलाती हैं कि प्रेमचंद कालीन भारत … Continue reading होरी, गोबर ,धनिया जस के तस सब जिंदा…