-अजय विद्युत
कांग्रेस अब तक के सबसे खराब दिनों से गुजर रही है। दो चुनावों से लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल कहलाने लायक सीटें भी उसे नहीं मिलीं। लेकिन गांधी परिवार को खबरों में रहना आता है। एक किताब बाजार में आती है और सब तरफ हल्ला मच जाता है- ‘प्रियंका गांधी ने भी कह दिया कि किसी गैर-गांधी को कांग्रेस का नेतृत्व संभालना चाहिए।’ अमेरिकी शिक्षाविद प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह की लिखी किताब ‘इंडिया टुमारो: कन्वर्सेशन विद द नेक्स्ट जेनरेशन पॉलिटिकल लीडर्स’ 13 अगस्त को प्रकाशित हुई। इसमें 50 साल से कम उम्र के प्रमुख नेताओं प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, स्मृति ईरानी, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला, आदित्य ठाकरे आदि के साक्षात्कार हैं लेकिन मीडिया में छाई रहीं सिर्फ प्रियंका गांधी।
प्रियंका गांधी का यह साक्षात्कार एक साल पुराना है। पुस्तक लेखक जुलाई 2019 में प्रियंका गांधी वाड्रा से मिले थे और राहुल गांधी से भी बात की थी। लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने यह कहकर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा।
साक्षात्कार में प्रियंका ने कहा, ‘जैसा कि राहुल ने कहा था कि हममें से किसी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए, मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं। मुझे लगता है कि पार्टी को अपने रास्ते की तलाश करनी चाहिए।’
उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘पार्टी अध्यक्ष, भले ही वो गांधी परिवार से न हो, मेरा बॉस होगा। अगर वो (पार्टी अध्यक्ष) कल मुझे कहते हैं कि मुझे तुम्हारी जरूरत उत्तर प्रदेश में नहीं, बल्कि अंडमान व निकोबार में है, तो मैं खुशी से अंडमान व निकोबार चली जाऊंगी।’
सूरत और फितरत
‘माफ कीजिएगा! आप सोच कुछ और रहे हैं, कह कुछ और रहे हैं’… एक फिल्म का यह संवाद गांधी परिवार पर बिल्कुल सटीक बैठता है। याद कीजिए 23 मई 2019 का दिन, जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए। कांग्रेस ने 52 सीटें हासिल कीं जो लोकसभा चुनावों में उसका दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन था। 2014 में तो उसे 44 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
दो दिन बाद 25 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार (यानी सोनिया, राहुल, प्रियंका में) से नहीं होगा। पार्टी नया अध्यक्ष चुन ले। ढाई महीने बीत गए। पार्टी अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं में से एक अदद ‘गैर गांधी’ नया अध्यक्ष न चुन सकी।
77 दिन बाद 10 अगस्त 2019 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। लंबा नाटक चला। दो दौर में मैराथन बैठकें हुर्इं। पार्टी ने अध्यक्ष के नाम को लेकर पांच समूह बनाए जिन्होंने देश भर से आए प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभाओं में दल के नेता, सांसद आदि से राय जानी। समूहों ने सूचित किया कि सब चाहते हैं कि राहुल गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष बने रहें। लेकिन राहुल गांधी ने मना कर दिया।
कांग्रेस कार्यसमिति ने 1998 से 2017 तक पार्टी की कमान संभालने वाली सोनिया गांधी को ही नए मुखिया के चुनाव तक अंतरिम अध्यक्ष चुना। पहले तो उन्होंने इनकार कर दिया, मगर वरिष्ठ नेताओं के बेहद आग्रह पर हामी भर दी। इस प्रकार गांधी परिवार से इतर मुखिया चुनने की कवायद का सुखद समापन हुआ और पार्टी की बागडोर ‘गांधी परिवार’ के ही पास रही।
साल 2020… अगस्त महीना… अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हुआ। 24 अगस्त को एक बार फिर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। इसके एक दिन पहले गुलाम नबी आजाद, शशि थरूर, कपिल सिब्बल आदि 23 कांग्रेस नेताओं की सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी लीक हो गई। चिट्ठी में पार्टी में पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने और संगठन के चुनाव कराने की मांग की गई थी। चिट्ठी पर कार्यसमिति बैठक में घमासान हुआ। बैठक शुरू होते ही सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की इच्छा जताई। लेकिन शाम जब बैठक खत्म हुई तो मीडिया में हैडलाइन थी- ‘सीडब्लूसी की बैठक खत्म, एक साल और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी सोनिया गांधी।’
इस बीच राहुल गांधी को पुन: अध्यक्ष बनाने की मुहिम तेज है, जिसकी तस्दीक कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का ट्वीट करता है, ‘लाखों कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी के अथक संघर्ष व संकल्प के गवाह हैं, जिससे उन्होंने इस लड़ाई का नेतृत्व किया है। न विपरीत स्थिति की परवाह की और न ही मोदी सरकार के वीभत्स हमलों की। यही वह निडरता और अदम्य साहस है जिसकी कांग्रेस को ही नहीं बल्कि देश को सबसे ज्यादा जरूरत है।’
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