कोझिकोड हादसे में दुर्घटनाग्रस्त विमान के मुख्य पायलट विंग कमांडर (रिटायर्ड) दीपक साठे के चचेरे भाई नीलेश साठे ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर अपने भाई को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है, ‘वह कजिन से ज्यादा मेरे दोस्त था। उसकी मृत्यु की खबर पर भरोसा करना मुश्किल है।’


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दीपक साठे के चचेरे भाई नीलेश साठे

नीलेश लिखते हैं, ‘भारतीय वायुसेना के बेस्ट पायलट की लीग में शामिल कैप्टन साठे साल 2005 में बतौर कमर्शियल पायलट एयर इंडिया से जुड़े थे। इस बात पर भरोसा करना बहुत मुश्किल है कि दीपक साठे जो कजिन से ज्यादा मेरा दोस्त था, अब इस दुनिया में नहीं है। वह एयर इंडिया एक्सप्रेस के पायलट थे और वंदे भारत मिशन के तहत दुबई से यात्रियों को लेकर लौट रहे थे। विमान कोझीकोड इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रनवे पर कल रात फिसल गया। मुझे बताया गया है कि लैंडिंग गियर्स काम नहीं कर रहे थे।’

यात्रियों की जान बचा ली

‘पायलट ने एयरपोर्ट के तीन चक्कर लगाए ताकि ईधन खत्म हो सके। इस वजह से प्लेन में आग नहीं लग सकी। इसलिए ही क्रैश हुए एयरक्राफ्ट से धुंआ नहीं दिखा। उन्होंने इंजन क्रैश से बिल्कुल पहले ही ऑफ कर दिया था। उन्होंने तीसरे राउंड में लैंडिंग कराई। प्लेन का राइट विंग पूरी तरह से कुचल गया था। पायलट ‘शहीद’ हो गए लेकिन उन्होंने अपने साथी यात्रियों की जान बचा ली।’

‘दीपक के पास 36 साल का उड़ान अनुभव था। वह नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के 58वें कोर्स से पास आउट थे और टॉपर के तौर पर स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित थे। दीपक ने 21 साल तक भारतीय वायुसेना को अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद साल 2005 में एयर इंडिया के साथ जुड़ गए।

मैंने पूछा, क्या तुम खाली विमान लेकर जाते हो

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भारतीय वायुसेना के बेस्ट पायलट की लीग में शामिल कैप्टन दीपक साठे

‘एक हफ्ते पहले ही दीपक से बात हुई थी। वह हमेशा की तरह बहुत खुश थे। दीपक से ‘वंदे भारत मिशन’ के बारे में पूछा तो उन्होंने गर्व से कहा कि अरब देशों से अपने देशवासियों को वापस ला रहे हैं। इसके बाद मैंने उनसे पूछा, ‘दीपक, क्या तुम खाली एयरक्राफ्ट लेकर जाते हो क्योंकि उन देशों ने तो यात्रियों की एंट्री बंद कर दी है।’ इस पर दीपक ने जवाब दिया, ‘अरे नहीं, हम फल, सब्जियां, दवाइयां और बाकी सामान इन देशों को लेकर जाते हैं और कभी भी एयरक्राफ्ट इन देशों में खाली नहीं जाता है। भाई से हुई यह मेरी आखिरी बातचीत थी।

 

 

उस समय नहीं लगा वह दोबारा फ्लाइंग कर सकेगा

‘नब्बे के दशक की शुरूआत की बात है। दीपक उस समय वायुसेना में थे और एक विमान दुर्घटना में बाल-बाल बचे थे। वह छह महीने तक अस्पताल में थे और उनके सिर में काफी चोटें आई थीं। किसी को भी उस समय नहीं लगा था कि वह दोबारा फ्लाइंग कर सकेंगे। लेकिन उनकी मजबूत इच्छा शक्ति और फ्लाइंग के लिए उनके प्यार ने उन्हें टेस्ट पास कराया और फिर से फ्लाइंग में वापस लौट आए। वह बिल्कुल किसी चमत्कार की तरह था। नीलेश के मुताबिक कैप्टन दीपक अपने पीछे अपनी पत्नी और दो बेटों को छोड़ गए हैं। उनके दोनों बेटे आईआईटी मुंबई से पास आउट हैं। कैप्टन दीपक साठे के पिता ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) वसंत साठे नागपुर में पत्नी के साथ रहते हैं। उनके भाई कैप्टन विकास भी सेना में थे और जम्मू में शहीद हो गए थे।

अगर मैं युद्धक्षेत्र में मारा जाऊं…

इसके बाद नीलेश ने एक भावुक कविता अपने भाई को समर्पित की है-

अगर मैं युद्ध क्षेत्र में मर जाऊं,
मुझे बॉक्स करें और घर भेजें
मेरे मेडल मेरे सीने पर रख दो,
मेरी मां को बताओ कि मैंने सबसे अच्छा किया
मेरे पिताजी से कह दो कि झुकें नहीं,
अब उन्हें मुझसे टेंशन नहीं मिलेगी,
मेरे भाई से कह दो पूरी तरह से पढाई करे,
मेरी बाइक की चाबियां अब उसी के पास रहेंगी
मेरी बहन से कह दो कि परेशान न हो,
इस सूर्यास्त के बाद उसका भाई नहीं उठेगा
और मेरे प्यार से कह दो कि रोये नहीं,
क्योंकि मैं मरने के लिए पैदा हुआ एक सैनिक हूं।

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