95 की उम्र में में भी नहीं छोड़ी सत्ता की आस, नई पार्टी बनाई

प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के अंतिम वर्षां में महातिर का रुख भारत विरोधी रहा है। वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देते रहे हैं। ‘वीआन’ (वर्ल्ड इज वन न्यूज) की संपादक पलकी शर्मा को दिए साक्षात्कार में महातिर ने स्वीकार किया कि ‘कश्मीर पर मेरे बयान के कारण भारत से रिश्ते खराब हुए।’ उनकी टिप्पणी के कारण भारत के साथ उनके देश के रिश्तों में तनाव आया। महातिर ने सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान कहा था कि भारत ने कश्मीर पर कब्जा किया है। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर महातिर ने पाकिस्तान का साथ देते हुए ये टिप्पणियां की थीं।


 

महातिर को कश्मीर पर टिप्पणियों के बाद प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा। उन्होंने माना कि उनकी इन्हीं टिप्पणियों की वजह से भारत-मलेशिया के संबंध बुरी तरह प्रभावित हुए। महातिर ने कहा इसके अलावा पीएम के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छे रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में महातिर ने टिप्पणी की, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मामलों में उन्होंने अच्छा काम किया है। वह पहले के प्रधानमंत्रियों से अलग हैं। उनके नेतृत्व में भारत को ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं।

महातिर के कश्मीर मामले पर भारत के घोर विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने मलेशिया से पाम आयल और पामोलिन के आयात पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे। जिससे मलेशिया का आर्थिक दिक्कतें बढ़ गई थीं और जनवरी से अप्रैल के बीच भारत को उसका निर्यात 94 फीसदी कम हो गया। केवल एक क्षेत्र पर निर्भर अर्थव्यवस्था के कारण मलेशिया को अपने प्रधानमंत्री की भारत को लेकर गलतबयानी और झूठे प्रचार की मलेशिया को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

कई प्रधानमंत्रियों की कुर्सी पलटी

महातिर दक्षिणपूर्वी एशियाई देश मलेशिया के लंबे समय तक किंगमेकर रहे हैं। 25 वर्ष तो वह स्वयं प्रधानमंत्री रहे। मलेशिया में कुछ समय पहले तक तमाम विश्लेषक यह जानने को व्यग्र थे कि महातिर जैसा चालाक राजनीतिक भी किसी तरह फंस सकता है। जाहिर है कि वे इस तथ्य को नहीं देख पा रहे थे कि मोदी के नेतृत्व में भारत अब ऐसी ताकत बन चुका है जो अपने खिलाफ कुप्रचार करने वालों को विदेश में भी सबक सिखा सकता है।

महातिर की छवि ऐसे राजनीतिक नेता की रही है जिसने अब तक कम से कम सात प्रधानमंत्रियों के सत्ता से बेदखल होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुहीद्दीन यासिन ने किस तरह महातिर को सत्ता से बेदखल किया यह वाकई मलेशिया के राजनीतिक इतिहास की एक दिलचस्प केस हिस्ट्री बनेगा। 2016 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नजीब रजाक को सत्ता से हटाने के लिए महातिर और यासिन ने मिलकर एक राजनीतिक मोर्चा बनाया था। नजीब को 2009 में प्रधानमंत्री बनवाने में महातिर ने बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने अब्दुल्ला अहमद बदवई के बजाय नजीब के समर्थन में अभियान चलाया था। सरकारी इंवेस्टमेंट फर्म से लाखों डॉलर के गबन के मामले में संलिप्तता से नजीब से उनका मोहभंग हो गया।

राष्ट्रवादी लबादे में चीनी पिट्ठू

2018 में महातिर के मलेशिया के प्रधानमंत्री बनने से पहले नजीब रजाक ही प्रधानमंत्री थे और उन्हें घोर चीनपरस्ती के लिए जाना जाता था। मुहीद्दीन यासिन और अनवार इब्राहीम के साथ मिलकर महातिर ने अपनी चीन विरोधी योद्धा और मलय राष्ट्रीवादी की छवि बनाकर सत्ता हासिल की। अनवार इब्राहीम ने महातिर के कैम्प में शामिल होने से पहले ही शर्त रखी थी कि वे दोनों बारी बारी प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद महातिर ने कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया और इब्राहीम को प्रधानमंत्री पद देने के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की। महातिर के पीएम की कुर्सी से हटने में इस मामले की भी मुख्य भूमिका थी।

खुद को चीन विरोधी और मलय समर्थक प्रदर्शित करने वाले महातिर ने बाद में यू टर्न ले लिया और 2019 में प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने कहा कि मलेशिया को चीन के साथ टकराव नहीं करना चाहिए। महातिर इस पर चुप्पी साध जाते हैं कि मलेशिया चीन के हाथ की कठपुतली है जिसे अपने क्षेत्रीय हितों के चीन जैसा चाहता है वैसा नचाता है। महातिर कहते हैं, ‘मलेशिया बहुत छोटा देश है, वह चीन जैसी ताकत का सामना नहीं कर सकता।’ उनका यह बयान भी मलेशिया को शर्मिंदगी की स्थिति में ले जाता है, ‘आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते जिससे आप असफल हो जाएं। चीन हमारे लिए लाभदायक है इसलिए उसका विरोध करने के लिए हमें कम से कम हिंसक रास्तों के विकल्प को अपनाना होगा।’

मुस्लिम जगत का नेता बनने का मंसूबा

भारत विरोधी अभियान चलाने के साथ ही महातिर ने मलेशिया को मुस्लिम जगत का नया नेता बनाने की योजना कर भी काम शुरू कर दिया है। अभी तक मुस्लिम जगत पर इस्लामी देशों के संगठन (ओआईसी) का दबदबा है जिसमें सऊदी अरब जैसे खाड़ी के तमाम देश शामिल हैं। महातिर इसके समानांतर एक संगठन खड़ा करना चाहते हैं। पिछले वर्ष मलेशिया में हुए इस्लामी सम्मेलन में केवल 20 देश शामिल हुए थे। उनमें भी अधिकतर वे देश थे जो अपने कामों या नीतियों के कारण दुुनिया में अलग-थलग पड़े हैं। जिस पाकिस्तान के लिए महातिर ने इतना कुछ किया वह भी सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ। फिर भी महातिर ने सम्मेलन में कहा कि यह सम्मेलन ओआईसी का विकल्प बनेगा।

इन सारी बातों को अगर मिलाकर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि भारत द्वारा मलेशिया को दी गई व्यापारिक चोट महातिर की कुर्सी जाने का प्रमुख कारण बनी। उन्हें उनकी ही पार्टी ने निकाल बाहर किया। मलेशिया के मौजूदा प्रधानमंत्री मुहीद्दीन यासिन एक संतुलित व्यक्ति हैं जो भारत और मलेशिया के बीच स्थिरता लाने के मामले में प्रयासरत हैं।

नई पार्टी बनाई

महातिर की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है। 95 वर्षीय महातिर ने नई राजनीतिक पार्टी बनाई है। उन्होंने कहा कि देश की बहुसंख्यक मलय आबादी के हितों के संरक्षण में मलय केंद्रित पार्टियां असफल रही हैं, जिनमें उनके द्वारा 2016 में बनाई गई पीपीबीएम भी शामिल है। इसलिए उन्हें नया राजनीतिक दल बनाना पड़ा है।

 

 

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