पांचवीं तक बच्चे अंग्रेजी की बजाय अपनी मातृ भाषा में पढ़ेंगे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई शिक्षा नीति में कई क्रांतिकारी और साहसिक कदम उठाए गए हैं। नई शिक्षा नीति के मुताबिक देश में पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई अंग्रेजी में नहीं होगी। बच्चों को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में पढ़ाया जाएगा।
छठे दशक में शिक्षा नीति बनाने के लिए बनी कोठारी कमेटी ने त्रि-भाषा फार्मूले की सिफारिश की थी। यह सिफारिश लागू होने से पहले ही दम तोड़ गई। दुनिया भर के शिक्षाविद इस बात पर एकमत हैं कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए। विदेशी भाषा( अंग्रेजी) में शिक्षा से बच्चों का विकास कुंद हो जाता है।
अंग्रेजों ने भारतीय प्रतिभा और भारतीय संस्कृति को खत्म करने के लिए मैकाले की शिक्षा नीति लागू की थी। जिसका मकसद सिर्फ क्लर्क पैदा करना था। दुर्भाग्य से आजादी के बाद भारतीय शासकों ने भी इस नीति को जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि देश में शिक्षा की दुर्दशा हो गई।
पिछले कुछ दशकों से प्राथमिक शिक्षा के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ गई है। ये स्कूल अंग्रेजी के नाम पर पैसा कमाने की मशीन बन गए हैं। ये स्कूल गरीबों के बच्चों को एक ही सपना दिखाते हैं कि उनका बच्चा भी अमीरों और बड़े लोगों के बच्चों की तरह अंग्रेजी बोलेगा। शिक्षा के स्तर से इन स्कूलों का कोई लेना देना नहीं है। नतीजा यह हुआ कि बच्चे अधकचरी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
“सब कुछ जानते हुए भी कोई सरकार ऐसा कदम उठाने का साहस नहीं जुटा पा रही थी। छह साल से मोदी सरकार की शिक्षा नीति बन रही थी। देर की वजह से लोग नाउम्मीद होते जा रहे थे। पर अंतत: सरकार ने बहुत ही साहसिक कदम उठाया है। यह भारत की शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन की आधारशिला बनेगी।”
इस प्रवृत्ति के दबाव में कई ऐसे राज्य जहां प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में दी जाती थी, वह भी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा अपनाने लगे। शिक्षा शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चा जब अपनी मातृ भाषा में पढ़ता है तो उसे ग्रहण करने की उसकी क्षमता बढ़ जाती है।
सब कुछ जानते हुए भी कोई सरकार ऐसा कदम उठाने का साहस नहीं जुटा पा रही थी। छह साल से मोदी सरकार की शिक्षा नीति बन रही थी। देर की वजह से लोग नाउम्मीद होते जा रहे थे। पर अंतत: सरकार ने बहुत ही साहसिक कदम उठाया है। यह भारत की शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन की आधारशिला बनेगी।
नई शिक्षा नीति में स्कूलों को यह भी छूट दी गई है कि वे चाहें तो आठवीं क्लास तक अंग्रेजी न पढ़ाएं।