BOB ने भारतीय भाषाओं का सबसे बड़ा पुरस्‍कार स्‍थापित कर रचा इतिहास 

डॉ.ओम निश्‍चल। 
हाल में बैंक आफ बड़ौदा द्वारा भारतीय भाषाओं को पुरस्‍कार देकर प्रोत्‍साहित करने के लिए भारतीय भाषाओं के साहित्‍य और उसके हिंदी अनुवाद के लिए अनुवादक को भी राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान से पुरस्‍कृत करने योजना प्रचारित की गयी। विभिन्‍न भारतीय भाषाओं से शार्टलिस्‍ट एवं लांग लिस्‍ट की गयी कृतियों में मोहसिन खान का उर्दू उपन्‍यास ‘अल्‍लाह मियां का कारखाना’ पुरस्‍कृत हुआ है तथा उसके हिंदी अनुवादक को भी पुरस्‍कृत किया गया है। उर्दू लेखक मोहसिन खान को 21 लाख और उसके अनुवादक डा. सईद अहमद संदीलवी को 15 लाख की राशि प्रदान की गयी है। किन्‍तु राजभाषा के कुछ लोग तथा हिंदी के समर्थक प्रसन्‍न नहीं हैं। वे उर्दू को राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान के रूप में नवाजे जाने की अवधारणा से ही सहमत नहीं हैं। सारा विवाद उर्दू की मूल कृति को पुरस्‍कृत किए जाने पर उठाया जा रहा है। उनका कहना है यह भारतीय भाषा तो है पर राष्‍ट्रभाषा तो स्‍वाभाविक रूप से हिंदी ही है। इसलिए इस सम्‍मान का नाम राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान के बजाय भारतीय भाषा सम्‍मान रखा जाता तो बेहतर होता।

पुरस्‍कृत उर्दू उपन्‍यास को लेकर कोलाहल

पुरस्‍कार का जिक्र आते ही हिंदी वालों की यह मानसिकता है कि किसी और की उपलब्‍धि को साधारणतया पचा नहीं पाते। पुरस्‍कार की योजना बनी नहीं कि ऐसे लोगों का कोलाहल शुरु हो जाता है। किन्‍तु सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में शायद यह पहला उपक्रम है जो अपने संसाधनों से भारतीय भाषाओं के साहित्‍य और हिंदी के बीच पुल और सौहार्द बनाने वाले लेखकों-अनुवादकों को पुरस्‍कृत कर रहा है। इससे पहले इफको कंपनी है जो कथाकार उपन्‍यासकार श्रीलाल शुक्‍ल के नाम पर 15 लाख का पुरस्‍कार किसी हिंदी लेखक को देती है। बैंकों में राजभाषा के प्रयोग को लेकर जो उत्‍साह 1984 के आसपास से अब तक देखा जाता रहा है उसका श्रेय बैंकों के हिंदी अधिकारियों को ही जाता है। बैंक आफ बड़ौदा में दशकों पहले से ऐसे राजभाषा प्रमुख रहे हैं जिनका अपना स्‍वयं का साहित्‍यिक बैक ग्राउंड रहा है। डॉ. सोहन शर्मा, व डॉ. हरियश राय कथाकार रहे तो डॉ. जवाहर कर्णावट सुपरिचित राजभाषा विशेषज्ञ जो राजभाषा के क्षेत्र में महाप्रबंधक पद तक पहुंचे। बैंक आफ बडौदा के अलावा ऐसा कोई बैंक नहीं है जहां हिंदी अधिकारियों को समय पर बेहतर प्रोन्‍नति दी गयी हो। कई जगहों पर अच्‍छे अच्‍छे हिंदी अधिकारियों को स्‍केल 3 के बाद प्रोन्‍नति नहीं मिल सकी। जबकि इस बैंक के मुख्‍य प्रबंधक स्‍तर पर ही तमाम अधिकारी कार्यरत हैं जबकि पीछे तमाम ऐसे बैंक रहे हैं जहां उच्‍चतम पद ही बमुश्‍किल मुख्‍य प्रबंधक का हुआ करता था।

राजभाषा नीति अनुपालन में BOB अव्‍वल

बैंक आफ बड़ौदा की ही यह दरियादिली है कि वह हिंदी को लेकर अलग तरह से सोचता विचारता है तथा इसके ढांचें में कार्यरत राजभाषा के अधिकारी हिंदी और अपनी भारतीय भाषाओं की गरिमा को लेकर पूर्णतया सजग है। सीबीएस प्रणाली पर जहां अन्‍य बैंकों में हिदी में अनेक गत्‍यावरोध है, यहां अपने सिस्‍टम को हिंदी के अनुकूल बनाने के लिए तकनीक के स्‍तर पर बहुत काम हुआ है। जिन अर्थों में राजभाषा नीति के कार्यान्‍वयन की रूपरेखा और लक्ष्‍य गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग ने तय किए उनका बेहतरीन अनुपालन बैंक आफ बड़ौदा के कार्यालयों व शाखाओं में देखने को मिलता है।

भाषाई सामंजस्‍य : पुरस्‍कार पहल

जहां तक हाल में दिए गए प्रथम बैंक आफ बड़ौदा राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान का प्रश्‍न है, यह कितनी अच्‍छी बात है कि भारतीय भाषाओं के साहित्‍य और उनके अनुवाद को प्रोत्‍साहित करने का जो काम प्रदेश और केंद्र की साहित्‍य अकादेमियों को करना चाहिए था वह काम पहली बार एक बैंक ने कर दिखाया है। बैंक के प्रबंध निदेशक एवं मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी श्री संजीव चड्ढा ने इस योजना को भारतीय भाषाओं के बीच सामंजस्‍य पैदा करने व हिंदी में श्रेष्‍ठ भारतीय साहित्‍य उपलब्‍ध कराने के लिए मूर्त रूप दिया है जिसकी घोषणा उन्‍होंने जयपुर में हुए लिटरेचर फेस्‍टिवल में अभी छह महीने पहले जनवरी 2023 में की थी। जाहिर है पहली बार इस संकल्‍प को प्रतिश्रुति और व्‍यावहारिक रूप देने में थोडी कठिनाइयां आई हों, प्रविष्‍टियां कम आई हों, क्‍योंकि इस तरह के भारतीय भाषाओं या राष्‍ट्रीय भाषाओं के साहित्य को शार्ट लिस्‍ट करना, फिर उनके अनुवाद की जांच करना तथा उसे अतिम पुरस्‍कार निर्णयन की परिणति तक पहुचना कोई आसान काम नही है । इसी तरह के अनुवाद पुरस्‍कार के लिए साहित्‍य अकादेमी को पूरे साल भर सूची बनाने से लेकर अंतिम निर्णय तक पहुंचने, विभिन्‍न भाषाओं के अनुवाद की जांच के लिए अलग अलग जूरी निर्धारित करने के लिए बहुत मशक्‍कत करनी होती है। जूरी गठित करने के लिए ही पुरस्‍कार योजना के अंतर्गत हर विधा, तथा हर भाषा को लेकर सैकड़ों विद्वानों की आधार सूची से नाम चुनने होते हैं जो कि विवेकपूर्ण निर्णय कर सकें। तब जाकर इस सम्‍मान की राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मान्‍यता मिलती है। पहली बार बैंक आफ बड़ौदा जिस तरह किसी भी संस्‍था का सहयोग लिए बिना अपने स्‍तर पर जूरी का गठन, साहित्‍य का चयन अनूदित पुस्‍तकों का चयन कर अंतिम  निर्णय तक पहुंचा है तथा विद्वान निर्णायकों के सहयोग से पुरस्‍कार घोषित कर सका है,  यह बहुत ही उल्‍लेखनीय कदम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए।

चर्चा और विवाद

जहां तक विवाद और चर्चा का प्रश्‍न है,  इसके कई छोर हैं। सुनने में आया है कि कुछ लोग इसे राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान नाम देना उचित नहीं मानते। उनमें से एक डॉ. बरुण कुमार, निदेशक राजभाषा, रेल मंत्रालय का कहना है कि राष्‍ट्रभाषा के रूप में हिंदी की सहज मान्‍यता है। वही है जो राष्‍ट्रभाषा है, शेष सारी भारतीय भाषाएं हैं। इसलिए यह नाम देना उचित नहीं जान पड़ता। उनका कहना है कि राष्‍ट्रभाषा का अर्थ है राष्‍ट्रव्‍यापी भाषा जो कि हिंदुस्‍तान में केवल  हिंदी ही है। इसीलिए उसे बाद में 1949 में संविधान सभा ने राजभाषा यानी आफिसियल लैंग्‍वेज का दर्जा दिया। उनके अनुसार उर्दू के लेखक व उसके हिंदी अनुवादक को पुरस्‍कृत किया गया, यह अच्‍छी बात है किन्‍तु इसे राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान के रूप में न देकर भारतीय भाषा सम्‍मान नाम देना चाहिए था क्‍योंकि उर्दू आठवीं अनुसूची में होने के नाते भारतीय भाषाओं में एक है किन्‍तु वह राष्‍ट्रभाषा नहीं है। अपने फेसबुक स्‍टेटस पर उनका वक्‍तव्‍य इस प्रकार है : ” बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा उर्दू कृति (‘अल्लाह मियां का घर’ – मोहसिन खान) को  राष्ट्रभाषा सम्मान पुरस्कार  दिए जाना अजीब लग रहा है। तब तो अगली साल ये बांग्ला ओडिया तमिल वगैरह में से किसी को दिया जा सकेगा। तब इसका नाम राष्ट्रभाषा सम्मान नहीं होकर भारतीय भाषा सम्मान जैसा कुछ होना चाहिए था। भारत की कोई घोषित राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी वाले चाहे जितना सभी भारतीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा कहते रहें, हिंदीतर भाषी “हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है” कहकर ही हिंदी का विरोध करते हैं और राष्ट्रभाषा शब्द को ही disown करते हैं। जनता जनार्दन में राष्ट्रभाषा कहने पर हिंदी का ही मतलब लिया जाता है। ‘राष्ट्रभाषा सम्मान’ कहने से सामान्य जनता में यह संदेश जाता है कि बैंक हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहा है, लेकिन दरअसल वह हिंदी नहीं बल्कि सभी भाषाओं को राष्ट्रभाषा मानकर पुरस्कार औरों को दे रहा है। यह सामान्य जन में भ्रम पैदा करता है। बुकर प्राइज से प्रेरणा लेकर यह पुरस्कार हिंदी अनुवाद के लिए दिया गया है। तो फिर ‘बुकर’ जैसा कोई न्यूट्रल शब्द रखते, ‘राष्ट्रभाषा’ जैसा भारी भरकम शब्द की जरूरत नहीं थी। ‘भारतीय भाषा सम्मान ‘कह सकते थे।” दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना यह भी है कि आठवी अनुसूची की सारी भाषाएं राष्‍ट्रभाषाएं हैं या राष्‍ट्रीय भाषाएं हैं। यानी वे राष्‍ट्र की भाषाए हैं जो इसके किसी भी भूभाग में बोली समझी व लिखी जाती हैं।
कहना न होगा कि इस विचार या अवधारणा पर भी बैंक के उच्‍चाधिकारियों में काफी विमर्श हुआ होगा कि इस राष्‍ट्रीय सम्‍मान का नाम क्‍या रखा जाए। जूरी में भी शामिल विद्वान लेखक गीतांजलि श्री, डॉ पुष्‍पेश पंत, डॉ अनामिका, अरुण कमल व प्रभात रंजन की राय भी ली गयी होगी तथा उन्‍हें भी राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान नाम जँचा होगा। कृतियों के लेखकों व उनके अनुवादकों के नाम के चयन में भी उपयुक्‍तता देखी गयी होगी। इसलिए यह कहना कि इसे राष्‍ट्रभाषा सम्‍मान कहना उचित नहीं है, समीचीन नहीं जान पड़ता।
ज्ञातव्‍य है कि इस पुरस्‍कार के लिए पुस्‍तक के पहले संस्‍करण वाले कुल 12 उपन्‍यास लांग लिस्‍ट में चुने गए थे। इनमें उड़िया का एक, उर्दू के चार, पंजाबी का एक, नेपाली का एक, बॉंग्‍ला के दो, मराठी का एक व तमिल के दो उपन्‍यास चयनित हुए थे,   जिनमें से 6 उपन्‍यास (अल्‍लाह मियां का कारखाना-उर्दू; अभिप्रेत काल-उड़िया; नदीष्‍ट-मराठी; भागा हुआ लड़का-बांग्‍ला; नेमतखाना-उर्दू;  चीनी कोठी-उर्दू ) शार्टलिस्‍ट हुए । प्रस्‍तावित पुरस्‍कार योजना में सर्वश्रेष्‍ठ कृति के लेखक को 21 लाख व उसके अनुवादक को 15 लाख के अलावा अन्‍य पांच चयनित कृतियों के लिए प्रत्‍येक मूल लेखक को 3 लाख व हिंदी अनुवादक को 2 लाख की राशि पुरस्‍कार स्‍वरूप प्रदान की गयी है।

उर्दू कृतियों का वर्चस्‍व

इस पुरस्‍कार में उर्दू की तीन कृतियां व उड़िया, मराठी, बांग्‍ला की एक एक कृति चुनी गयी। अर्थात पुरस्‍कार में उर्दू व उसके अनुवाद का वर्चस्‍व रहा है। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि इस चयन में वामपंथी रूझान काम करता जान पड़ता है इसीलिए इसमें उर्दू के तीन-तीन उपन्‍यास चुने गए हैं। किन्‍तु लिपि में अंतर के बावजूद उर्दू और हिंदी के क्रियापदों की शैली एक है। दोनों भाषाएं गंगा-जमुनी तहजीब का हिस्‍सा मानी जाती हैं। उर्दू मुगलों के शासन के दौरान तालीम व बोलचाल का हिस्‍सा बनी व अदब में भी अपनी जड़ें जमाती गयी। गालिब, मीर, जौक, शम्‍शुर्रहमान फारूकी व कुर्रतुलऐन हैदर जैसे तमाम लेखकों की कृतियां इसी तहजीब का हिस्‍सा हैं। हिंदी के साहित्‍य को समृद्ध करने के लिहाज से भारतीय भाषाओं की जितनी भी कृतियां अनूदित होकर हिंदी पाठक संसार का हिस्‍सा बनें, यह हिंदी के उदार आंचल के लिए अच्‍छा है। हर भारतीय लेखक यह चाहता है कि वह हिंदी में अनूदित होकर हिंदी विश्‍व का हिस्‍सा बने व देश विदेश में व्‍यापकता से पढ़ा जाए। इसीलिए शायद भारतीय भाषाओं के बीच सामंजस्‍य का पुल बनाने वाले अनुवादकों के लिए साहित्‍य अकादेमी, उप्र हिंदी संस्‍थान, हिंदी अकादमी दिल्‍ली ने पुरस्‍कार की व्‍यवस्था की है। साहित्‍य अकादेमी अनूदित कृति को, हिंदी संस्‍थान व हिंदी अकादमी दिल्‍ली भारतीय भाषाओं के अनुवादक को उनके समग्र अवदान के लिए पुरस्‍कृत करते हैं। अब बैंक आफ बड़ौदा ने हिंदी में सर्वाधिक बड़े छह पुरस्‍कारों को स्‍थापित कर यानी 61 लाख के पुरस्‍कार देने वाली सर्वाधिक बड़ी संस्‍था बन गयी है। आशा है अन्‍य सार्वजनिक उपक्रम देर सबेर अपने सीएसआर की निधियां हिंदी व भारतीय भाषाओं के विकास, प्रोत्‍साहन व पुरस्‍कार के लिए खर्च करेंगे जो कि भारतीय साहित्‍य व भाषाई सौहार्द को बढा़ने वाला महत्‍तम योगदान माना जाएगा।
(लेखक हिंदी के सुधी आलोचक, कवि एवं भाषाविद हैं)