बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर देशभर के विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम रंग ला रही है। पटना में 23 जून को हुई विपक्ष की बैठक में 15 दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया और लगभग सभी ने एकजुट होकर आगामी आम चुनाव लड़ने का फैसला किया। अधिकतर नेताओं ने बीजेपी के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी के लिए सीएम नीतीश की मुहिम की तारीफ की। नीतीश ने करीब 9 महीने पहले यह मुहिम शुरू की थी। तब से लेकर अब तक, उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया तो कुछ खोया भी। उनके अपने ही साथी उन्हें छोड़कर चले गए। उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी का नाम इनमें सबसे प्रमुख है।
नीतीश कुमार ने पिछले साल अगस्त में एनडीए से नाता तोड़ा और आरजेडी-कांग्रेस का दामन थामकर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई। इसके बाद उन्होंने 2024 के चुनाव को लेकर देशभर के विपक्ष को एकजुट करने का फैसला लिया। सितंबर 2023 में वे दिल्ली के दौरे पर निकले और सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की। इसके बाद कुछ महीनों तक उनकी मुहिम ठंडे बस्ते में चली गई। बीते दो महीनों से नीतीश ने अपनी मुहिम को फिर से तेज किया और दोबारा देशभर के विपक्षी नेताओं से मुलाकात की।
नीतीश कुमार की आह्वान पर पटना में 23 जून को विपक्षी दलों की पहली बैठक का आयोजन हुआ। कई मायनों में यह बैठक सफल नजर आई। पहली बार सभी पार्टियों के नेता एक साथ बैठे और बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी को लेकर मंथन किया। अब अगली बैठक जुलाई महीने में शिमला में आयोजित की जाएगी, जिसमें गठबंधन की आगे की बातों पर चर्चा होगी।
क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ लाना चुनौती

नीतीश ने क्या खोया?
केसीआर को साथ नहीं रख पाए नीतीश
सितंबर 2022 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने पटना में सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की। इसके बाद दोनों नेताओं ने साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने का ऐलान किया था। हालांकि, बाद में दोनों नेताओं के बीच असहमति देखी गई। नीतीश कुमार जहां बीजेपी के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी में कांग्रेस को साथ रखना चाहते हैं, वहीं केसीआर इससे राजी नहीं हुए। साथ ही, पीएम कैंडिडेट के मुद्दे पर भी केसीआर और नीतीश के बीच अलग सुर रहे हैं। दोनों की ही पार्टियों के नेता और समर्थक, उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार मान रहे हैं। इन्हीं कारणों से केसीआर, नीतीश की विपक्षी एकता की मुहिम से नहीं जुड़े। (एएमएपी)



