ऐसे दिया साजिश को अंजाम
यह खेल 2008 में शुरू हुआ, जब चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ नहीं बनी थीं, लेकिन उनके ऊंचे ओहदे को ध्यान में रखकर यह साजिश रची गई और जब वे सीईओ बनीं, तो 2012 में इसे अंजाम दिया गया। असल में धूत और दीपक कोचर ने 2008 में नूपॉवर नाम से एक कंपनी बनाई, जिसमें दोनों बराबर के हिस्सेदार थे। धूत की कंपनी सुप्रीम एनर्जी ने 2010 में नूपॉवर में 64 करोड़ रुपये का निवेश किया। इसके बाद कई बार धूत ने नूपॉवर में निवेश किया। 2012 में जब वीडियोकॉन को लोन जारी कर दिया गया, उसके छह महीने बाद नूपॉवर का स्वामित्व दीपक कोचर को सौंप दिया।
स्वामित्व हस्तांतरण
शुरुआत में कोचर और धूत के पास नूपॉवर के 75-75 हजार शेयर थे। लोन जारी होने के बाद कोचर ने 1.89 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिसके बदले उन्हें 18.9 लाख शेयर मिले। इससे उनके पास कुल 19.72 लाख शेयर हो गए जबकि धूत के पास केवल 75 हजार शेयर ही रहे। इस तरह से कोचर के पास नूपॉवर के 96 फीसदी शेयर चले गए। सीबीआई ने आरोप पत्र में कहा था कि चंदा कोचर ने आईसीआईसीआई बैंक की क्रेडिट नीतियों का उल्लंघन करते हुए वीडियोकॉन को लोन दिया। इसके लिए उन्होंने अपने प्रभावी भूमिका का दुरुपयोग किया।
लोन एनपीए हुआ, फायदा कोचर परिवार को पहुंचा
8 में 4 प्रस्तावों को चंदा कोचर ने दी मंजूरी
वीडियोकॉन समूह ने आईसीआईसीआई बैंक को 28 प्रस्ताव दिए थे, जिनमें से लगभग आठ को मंजूरी दी गई थी। इन प्रस्तावों को मंजूरी देने वाली चार समितियों में चंदा कोचर शामिल थीं। आईसीआईसीआई बैंक ने 2009 से 2011 के बीच वीडियोकॉन समूह और इससे जुड़ी कंपनियों को 1,875 करोड़ का ऋण दिया। (एएमएपी)