#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

दिसम्बर 1989 की बात है, मैंने पहली बार कार्डिफ से लन्दन इंटरसिटी ट्रेन से सफर किया था। वह ट्रेन मुझे इतनी आरामदेह और सुविधाजनक लगी कि मैंने भारत में किसी को पत्र लिखा: यदि यह ट्रेन ब्रिटेन से भारत तक चले तो मैं हवाई जहाज के बजाए इस ट्रेन से सफर करना पसंद करूंगा।

इस बात को आज कोई बत्तीस साल हो गए हैं। इतने सालों बाद अब जा कर भारत में एक ऐसी ट्रेन शुरू हुई है, जोकि हवाई जहाज का मुक़ाबला कर रही है।  उस भारतीय ट्रेन का नाम है: वंदे भारत।

पहली वंदे भारत ट्रेन सन् 2019 में वाराणसी से नई दिल्ली के लिए शुरू  हुई थी। अभी हाल में एक चार्टर्ड एकाउंटेंट ने इस ट्रेन से सफर किया और कहा कि हवाई जहाज के मुक़ाबले यह ट्रेन बहुत आरामदेह है इसका खाना बहुत अच्छा और बहुत स्वादिष्ट है। और खाना इतना ज्यादा होता है कि कई  लोग उतना खा नहीं पाते और बचा हुआ अपने किसी बैग में रख लेते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रेन समय से चलती है और समय से पहुँचती है। और भी इसमें ऐसी तमाम सुविधाएं हैं जोकि हवाई जहाज से बेहतर हैं। जैसे कि इसमें आप इन्टरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि हवाई जहाज में आप इन्टरनेट इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। ट्रेन का लुक-डिजाइन भी देखने में अच्छा लगता है।

इस ट्रेन की एक्जीक्यूटिव क्लास की सीट 360 डिग्री पर घुमाई जा सकती हैं। बाकी चेयर क्लास की सीटों में भी लेग स्पेस हवाई जहाज की तुलना में ज्यादा होता है। इससे यात्रियों को अपने पैर आगे तक फैलाने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है। इसके टायलेट में भी स्पेस ज्यादा है और साफ सुथरे हैं।

लखनऊ – नई दिल्ली के बीच जो शताब्दी एक्सप्रेस चलती है उसके स्थान पर भी वंदे भारत चलाने का प्लान है।

वंदे भारत की स्पीड 120-130 किलोमीटर प्रति घण्टा है। वैसे किसी-किसी मार्ग पर इसकी स्पीड कम भी है, क्योंकि वहाँ का ट्रैक इतनी अधिक गति के लायक नहीं है। जिस-जिस रेलवे ट्रैक पर राजधानी या शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनें चलती हैं, वहाँ पर 120-130 की स्पीड से यह ट्रेन चलाई जा रही है।

अगस्त 2023 तक 75 वंदे भारत ट्रेनें चलेंगी

अगस्त 2023 तक भारत में इस प्रकार की 75 ट्रेनें चलाने का प्रोग्राम है और इसमें से सात ट्रेनें 2022 तक पटरी पर दौड़ लगीं हैं। भारत सरकार इस ट्रेन को कितना महत्व दे रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन सात ट्रेनों में से छह को प्रधान मंत्री ने स्वयं हरी झंडी दिखाई है।

वंदे भारत ट्रेन एक हाई स्पीड ट्रेन है, लेकिन यह वैसी नहीं है जैसी कि बुलेट ट्रेन होती है। बुलेट ट्रेन की स्पीड 300-350 किलोमीटर प्रति घण्टा होगी। बुलेट ट्रेन अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलेगी। उसका रेलवे ट्रैक ही बिलकुल अलग होगा। इस पर काम टेजे से चल रहा है।

नियर वर्ल्ड क्लास ट्रेन

वैसे भी वंदे भारत ट्रेन एक यूरोप और चीन की तरह की वर्ल्ड क्लास ट्रेन नहीं है। इसके निर्माता सुधांशु मणिजी का कहना है कि यह नियर वर्ल्ड क्लास ट्रेन है। अर्थात इसकी टेक्नॉलजी और सुविधाएं किसी भी विश्वस्तरीय ट्रेन के निकटतर है।

सुधांशु मणिजी के नेतृत्व में चेन्नई ईटीग्रल कोच फैक्ट्री की एक टीम ने  इसका  निर्माण 18 महीने में सन् 2018 में किया। शुरू में इसका नाम ट्रेन 18 था। बाद में प्रधान मंत्री कार्यालय के कहने पर इसका नाम वंदे  भारत रखा गया। सुधांशु मणिजी उस ईटीग्रल कोच फैक्ट्री के जनरल मैनेजर थे।

यह पूर्णत: मेक इन इंडिया ट्रेन है

यह पूर्णत: मेक इन इंडिया ट्रेन है। जब यह पहली बार बनी, तब इसमें लगभग 15 प्रतिशत चीजें विदेशी थीं। अब धीरे-धीरे यह प्रतिशत कम होता जा रहा है। इस ट्रेन के निर्माण पर लगभग 98 करोड़ रुपए की लागत आई। यदि यह ट्रेन विदेश में बनवाई गई होती, तो इस पर करीब 250 करोड़ की लागत आती। पहली ट्रेन लांच होने के बाद करोना-काल पड़ जाने के कारण इसकी आगे की लांचिंग में व्यवधान भी आया।

रेलवे ट्रैक के दोनों ओर फेंसिंग जरूरी

यूरोप में रेलवे ट्रैक के दोनों ओर फेंसिंग लगी होती है। ऐसा भारत में अधिकांश जगहों पर नहीं है। इस कारण कुछ ऐसी दुर्घटनाएँ हुईं हैं जब कि इससे जानवर कट गए। वंदे भारत विरोधियों का कहना है कि पहले से पर्याप्त तैयारी नहीं की गई, इसलिए ये हादसे हुए।

किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि कुछ विरोधी तत्व इस ट्रेन को जलाने का प्रयास करने लगें। इस पर ईंटे-पत्थर फेंकने लगें। या कुछ नहीं तो ट्रेन के सामने ही ले जाएँ विरोध प्रदर्शन करने के लिए। पता नहीं ऐसे तत्वों से निपटने के लिए सरकार ने कोई तैयारी की है या नहीं।

वंदे भारत ट्रेन उभरते भारत की पहचान

वंदे भारत ट्रेन विश्व में उभरते भारत की पहचान बन गई है। दूसरे देशों से भी इसकी मांग आने लगी है। हो सकता है कि सन् 2026 से इसका एक्सपोर्ट अर्थात निर्यात भी होने लगे।

वंदे भारत ट्रेन सुधांश मणिजी के कुशल नेतृत्व के परिणाम है, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के पहले इस ट्रेन का निर्माण कार्य पूरा का ठान लिया था और उसे सफलतापूर्वक पूरा किया।

रिटायरमेंट के बाद सुधांश मणिजी अपने गृह नगर लखनऊ वापस आ गए और यहीं इन्दिरा नगर में रहते हैं। आपने इस ट्रेन के निर्माण की कहानी अपनी अंग्रेजी पुस्तक My Train 18 Story में लिखी है। इस पुस्तक का पाँचवाँ संस्करण अमेज़न पर उपलब्ध है। आपकी अगली पुस्तक भी जल्दी ही बाज़ार में आने वाली है जिसमें मिर्जा गालिब और शेक्सपियर की तुलना की गई है।

अब भारत सरकार चार सौ वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण की तैयारी कर रही है।

(इस लेख के लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)