डॉ. संतोष कुमार तिवारी ।
लगभग बांसठ वर्ष पुराना परिचय ट्रस्ट, मुंबई, गुजराती भाषा में अब तक साढ़े चौदह सौ से अधिक पुस्तिकाएँ प्रकाशित कर चुका है। यह ट्रस्ट हर वर्ष चौबीस पुस्तिकाएँ प्रकाशित करता है। ये पुस्तिकाएँ बोलचाल की गुजराती भाषा में होती हैं।
ये विभिन्न विषयों पर होती हैं। जैसे कि अभिनय कला, कार्ल मार्क्स, नकली दांत, याज्ञवलक्य का तत्वचिंतन, प्रेस काउंसिल आफ इंडिया, क्षय रोग, सचिन तेंदुलकर, विक्रम साराभाई, क्लोरेस्टाल बढ्ने की समस्या, चार्ली चैपलिन, आदि। ये पुस्तिकाएँ इन विषयों के विषशेषज्ञों द्वारा लिखी जाती हैं। जैसे कि अभिनय कला पुस्तिका गुजराती रंगमंच के जाने-माने कलाकार चन्द्रकान्त ठक्कर ने लिखी थी। उन्होंने लंदन के रायल एकडेमी आफ ड्रामेटिक आर्ट्स से डिप्लोमा कोर्स किया था। इसी प्रकार मैनेजमेंट विषय की पुस्तिका प्रसिद्ध उद्योगपति मफ़तलाल ने लिखी थी। गुजराती साहित्य को समृद्ध करने में परिचय ट्रस्ट की अभूतपूर्व भूमिका रही है।
मोरारजी देसाई ने भी परिचय पुस्तिकाएँ लिखीं
जाने-माने गुजराती लेखक चन्द्रकान्त बक्षी (1932-2006), भारत के पूर्व प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई (1896-1995) ने परिचय ट्रस्ट के लिए एक से अधिक पुस्तिकाएं लिखी हैं। चन्द्रकान्त भाई की परिचय पुस्तिकाओं के विषय थे – मिस्र की संस्कृति, रोमन संस्कृति, आधी सदी में आए सामाजिक बदलाव; और मोरारजी भाई के विषय थे – जगत के धर्म, लोकशाही समाजवाद, हरिजनों की समस्या, आदि।
पुस्तिकाएँ बहुत कम मूल्य पर
ये पुस्तिकाएँ बहुत कम मूल्य पर उपलब्द्ध कराई जाती हैं। वर्ष 2003 में ये पुस्तिकाएँ 36 पृष्ठों (कवर पेज सहित) की होती थीं। इनका मूल्य केवल छ्ह रुपये था। अब इनकी पृष्ठ संख्या कवर पेज सहित 64 हो गई है और मूल्य बढ़ कर 20 रुपये हो गया है। वर्ष 1958 में जब परिचय ट्रस्ट स्थापित हुआ था, तब इन पुस्तिकाओं का मूल्य दस पैसे होता था। यह ट्रस्ट कोई व्यापारिक संस्था नहीं है और लाभ कमाना इसका उद्देश्य नहीं है।
वर्ष 2003 में परिचय ट्रस्ट की पुस्तिकाओं का वार्षिक चंदा 120 रुपये था, जो कि अब बढ़ कर 400 रुपये हो गया है। आजकल इसका त्रिवार्षिक चंदा 1000 रुपये और पाँच वर्ष का चंदा 1800 रुपये है।
नवजीवन ट्रस्ट की भूमिका
वर्ष 2004 तक परिचय ट्रस्ट की पुस्तिकाओं का मुद्रण नवजीवन प्रेस अहमदाबाद में होता था और इनको बेचने का उत्तरदायित्व भी नवजीवन ट्रस्ट का था। महात्मा गांधी द्वारा स्थापित नवजीवन ट्रस्ट भी कोई व्यापारिक संस्था नहीं है और लाभ कमाना उसका उद्देश्य नहीं है। वर्ष 2005 में परिचय ट्रस्ट ने पुस्तिकाओं के मुद्रण और बिक्री का काम नवजीवन ट्रस्ट से हटा कर एक व्यापारिक संस्थान इमेज पब्लिकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया। ऐसा समझा गया कि इस व्यापारिक संस्थान के जरिए परिचय ट्रस्ट की पुस्तिकाओं का बेहतर प्रकाशन और प्रसार होगा। व्यापारिक संस्थान से टाई-अप होने के बाद परिचय ट्रस्ट के एक ट्रस्टी श्री जीतेंद्र देसाई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी प्रकार एक और ट्रस्टी श्रीमती इंदिराबेन डगली ने भी त्यागपत्र दे दिया था। श्री जीतेंद्र देसाई (1939-2011) नवजीवन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी भी थे।
फिलहाल यह व्यापारिक संस्थान परिचय ट्रस्ट का काम करने में अब असमर्थ हो गया है। नतीजा यह हुआ है कि अक्तूबर 2019 के बाद से अभी तक परिचय ट्रस्ट की कोई भी पुस्तिका प्रकाशित नहीं हो पायी है। करोना संक्रमण के कारण परिचय ट्रस्ट का मुंबई आफिस भी काफी समय से बन्द है।
नवजीवन ट्रस्ट, अहमदाबाद , के एक ट्रस्टी श्री कपिलभाई दवे का कहना है कि ऐसी संभावना है कि परिचय ट्रस्ट का फिर नवजीवन ट्रस्ट से टाई-अप हो जाए। और इन पुस्तिकाओं के मुद्रण और बिक्री का काम फिर नवजीवन ट्रस्ट करने लगे। इसकी संभावना इसलिए भी है कि परिचय ट्रस्ट, मुंबई के एक ट्रस्टी श्री धीरुभाई मेहता नवजीवन ट्रस्ट, अहमदाबाद के चेयरमैन भी हैं।
यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि श्रीमती इंदिराबेन डगली परिचय ट्रस्ट के संस्थापक श्री वाडीलाल डगली (1926-1985) की विधवा थीं। वह श्री डगली के निधन के बाद परिचय ट्रस्ट की ट्रस्टी बनीं थीं।
परिचय ट्रस्ट बनाने की प्रेरणा कैसे मिली
श्री वाडीलाल डगली जब शिकागो यूनिवर्सिटी में थे तब उन्होंने वहाँ देखा कि विभिन्न विषयों पर छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ सरल अंग्रेजी भाषा में निकलती हैं। वे पुस्तिकाएँ एक ही बार में बैठ कर पढ़ी जा सकती थीं। ज्ञान का प्रकाश फैलाने में डगलीजी को वे पुस्तिकाएँ बहुत उपयोगी लगीं। उन्होंने यह बात भारत लौटने पर अपने एक पुराने अध्यापक पंडित सुखलालजी और अपने मित्र यशवंत दोशीजी को बताई। पंडित सुखलालजी अहमदाबाद के सी. एन. विद्यालय में पढ़ाते थे। डगलीजी और यशवंत दोशीजी की स्कूली शिक्षा अहमदाबाद में हुई थी और वे दोनों ही पंडित सुखलालजीजी के छात्र थे। पंडित सुखलालजी की प्रेरणा से ही वर्ष 1958 में परिचय ट्रस्ट की स्थापना हुई। उद्येश्य था – विभिन्न विषयों पर छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ सस्ते मूल्य पर निकाल कर गुजराती भाषी लोगों का ज्ञानवर्धन किया जाए। ये पुस्तिकाएँ उन लोगों के लिए थीं जो मोटी-मोटी पुस्तकें नहीं पढ़ सकते हैं। मानवजाति को शांतिमय, दृढ़ आशावादी और चेतनापूर्ण बनाना परिचय ट्रस्ट का ध्येय रहा है।
मुख्य उद्येश्य: मातृ भाषा की सेवा
ये लोग अंग्रेजी में भी परिचय पुस्तिकाएँ निकाल सकते थे, परंतु इनका मुख्य उद्येश्य था अपनी मातृ भाषा की सेवा करना।
पंडित सुखलालजी को परिचय ट्रस्ट को पहला अध्यक्ष बनाया गया और वाडीलाल डगली व यशवंत दोशी इसके सम्पादक और ट्रस्टी थे। इसके अन्य ट्रस्टी थे – जयवर्धन तख्तावाला, उमाशंकर जोशी, किशनलाल दीवानजी और महेंद्र देसाई।
पंडित सुखलालजी का जन्म सन् 1880 मे हुआ था। सन् 1970 में जब वह 90 वर्ष के हो गए, तब उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)