मनमोहन वैद्य ।
गोलवलकर की किताब ‘वी एंड अवर नेशनहुड डिफाइंड’ की खूब चर्चा करेंगे पर उन्हौने ही कहा था, “भारतीयकरण का यह अर्थ नहीं कि कोई अपनी पूजा-पद्धति त्याग दे। यह बात हमने कभी नहीं कही और कभी कहेंगे भी नहीं।” लेकिन लेफ्ट लिबरल जमात यह बात आपको कभी नहीं बताएगी। उसका धर्म है संघ के खिलाफ दुष्प्रचार। वे खुद को कहते हैं उदार (लिबरल) और आचरण में हैं अनुदार (कंजरवेटिव)
भारत में, वाम-उदारवादी (लेफ़्ट-लिबरल) के नाम से एक जमात विशेषत: कांग्रेस शासन के दौरान सत्ता-व्यवस्था के सहयोग और संरक्षण में फली-फूली है। मैं नहीं जानता कि ‘वाम-उदारवादी’ जैसे विरोधाभासी शब्द को किसने गढ़ा, क्योंकि प्रत्यक्ष व्यवहार में इस जमात का आचरण ठीक इसके विपरीत, अत्यंत ‘अनुदार’ ही दिखता है।
ये लोग, उनके बारे में अतिशय अनुदार और असहिष्णु होते हैं जो उनकी विचारधारा से सहमत नहीं हैं। इन्हीं लोगों ने लगातार झूठ और निराधार आरोपों के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध तथा निषेध किया है, और संघ कार्य की गति को रोकने का भरसक प्रयास भी।
लेकिन संघ कार्यकर्ताओं के निरंतर अथक प्रयास एवं ईश्वर की कृपा से समस्त भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भौगोलिक और संख्यात्मक विस्तार तथा प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर उस ‘अनुदार-वाम’ गुट की कलई उतर रही है, जनता के बीच बहस के मुद्दों और जनमानस पर इनकी पकड़ ढीली हो रही है। भारत की जनता, दंभ में लिपटे उनके भेदभावपूर्ण रवैये और अहं भाव को पहचान कर उनका विरोध कर रही है।
वामपंथ का अनुदार चेहरा
भारत के निमार्ताओं के मन में भारत की परिकल्पना (जो भारत के संविधान में पूर्ण रूप से अभिव्यक्त हुई है) बहुलता में विश्वास रखने वाले, विविधता का उत्सव मनाने वाले, एकत्र आकर खुले मन से स्वस्थ चर्चा-विमर्श करने वाले भारत की रही है। अनुदार वामपंथ इसके ठीक उलट है। जब पूर्व राष्ट्रपति डॉ़ प्रणव मुखर्जी को संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था, तो इसी जमात ने निमंत्रण स्वीकार करने पर उनकी कड़ी आलोचना की थी। डॉ. मुखर्जी के पास सार्वजनिक जीवन का लंबा अनुभव है, साथ ही वह एक अनुभवी राजनेता भी हैं। वह आजीवन कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे, फिर भी उन्हें आमंत्रित करना संघ की खुली और उदार मानसिकता का परिचायक है, वहीं जिस जमात ने उनका विरोध किया, इस प्रकरण से उसकी अनुदार-असहिष्णु मानसिकता अनावृत्त हो गई।
इसी जमात के लोगों का अनुदारपूर्ण रवैया तब खुल कर सामने आया जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकारियों को जयपुर साहित्य समारोह में आमंत्रित किए जाने पर इन्होंने उसका भरसक विरोध किया और अंत में पूरे कार्यक्रम का बहिष्कार भी किया।
संघ हिटलर को पूजता है
एक लेख ने मेरा ध्यान खींचा। लेख विद्वतापूर्ण अंदाज में झूठी बातों का एक पुलिंदा था। सबसे बड़ा झूठ यह है कि ‘संघ हिटलर को पूजता है, सम्मान करता है।’ मैं चार दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हूं। मैंने कभी भी संघ के किसी वरिष्ठ अधिकारी को हिटलर या नाजीवाद का महिमामंडन करते नहीं सुना। संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अपने कॉलेज के दिनों में मैंने हिटलर पर जो किताब पढ़ी थी उसका नाम था- ‘नाजी भस्मासुर का उदय और अस्त।’
गोलवलकर की किताब
मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग में मौजूद यह अनुदार जमात हमेशा श्री एम़ एस. गोलवलकर की किताब ‘वी एंड अवर नेशनहुड डिफाइंड’ को उद्धृत करती आयी जो 1938 में पहली बार तब प्रकाशित हुई थी, जब श्री गोलवलकर संघ के पदाधिकारी नहीं थे। यह किताब संघ के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। वास्तव में यह किताब विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई बाबाराव सावरकर की एक मराठी पुस्तक का अनुवाद थी। इसे एम़ एस. गोलवलकर ने नहीं लिखा था।
श्री एम़ एस. गोलवलकर यानी श्री गुरुजी ने 1972 में पत्रकार सैफुद्दीन जिलानी को एक विस्तृत साक्षात्कार दिया था, जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया था। ये वामपंथी तथाकथित विद्वान उसका उद्धरण कभी नहीं देते हैं, क्योंकि उसमें ऐसा सत्य मौजूद है, जो उनके लिए असुविधाजनक हैं, और उनके दुष्प्रचार अभियान को ध्वस्त करने के लिए काफी हैं। साक्षात्कार के कुछ अंश-
डॉ. जिलानी: भारतीयकरण पर बहुत चर्चा हुई, भ्रम भी बहुत निर्माण हुए, क्या आप बता सकेंगे कि ये भ्रम कैसे दूर किये जा सकेंगे?
गुरुजी: भारतीयकरण की घोषणा जनसंघ द्वारा की गई, किंतु इस मामले में संभ्रम क्यों होना चाहिये? भारतीयकरण का अर्थ सबको हिंदू बनाना तो है नहीं। हम सभी को यह सत्य समझ लेना चाहिये कि हम इसी भूमि के पुत्र हैं। अत: इस विषय में अपनी निष्ठा अविचल रहनी अनिवार्य है। हम सब एक ही मानवसमूह के अंग हैं, हम सबके पूर्वज एक ही हैं, इसलिये हम सबकी आकांक्षाएं भी एक समान हैं- इसे समझना ही सही अर्थों में भारतीयकरण है।
भारतीयकरण का यह अर्थ नहीं कि कोई अपनी पूजा-पद्धति त्याग दे। यह बात हमने कभी नहीं कही और कभी कहेंगे भी नहीं। हमारी तो यह मान्यता है कि उपासना की एक ही पद्धति संपूर्ण मानव जाति के लिये सुविधाजनक नहीं।
(मनमोहन वैद्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सह सरकार्यवाह हैं)