अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की ओर से खुलासा किया गया था कि चीन का एक जासूसी गुब्बारा कनाडा के बाद अमेरिका के आसमान में उड़ान भर रहा है। इतना ही नहीं शनिवार को सामने आया कि चीन का एक और जासूसी गुब्बारा लैटिन अमेरिका के ऊपर मौजूद है। माना जा रहा है कि चीन इन गुब्बारों के जरिए अमेरिका और उसके आसपास के क्षेत्र से अहम जानकारियां जुटाने की कोशिश कर रहा है। इसको देखते हुए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपनी चीन यात्रा को टाल दी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के आदेश पर अमेरिकी वायुसेना ने रविवार को चीन के इस जासूसी गुब्बारे को मार गिराया। इसके लिए अमेरिकी फाइटर जेट F-22 का इस्तेमाल हुआ। इस फाइटर जेट की मदद से जासूसी गुब्बारे पर AIM-9X SIDEWINDER मिसाइल से हमला किया गया और उसे नष्ट कर दिया गया।
अमेरिकी कार्रवाई पर चीन ने क्या चेतावनी दी?
चीन ने अपने असैन्य एयरशिप को अमेरिका में मार गिराने पर तीखी प्रतिक्रिया दी। चीन ने कहा कि अमेरिका की यह कार्रवाई राजनीतिक स्टंट के अलावा कुछ नहीं है। हम जरूरत पड़ने पर करारा जवाब देंगे। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि गुब्बारा जमीन पर लोगों के लिए सैन्य या शारीरिक खतरा पेश नहीं करता है। यह बात अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने भी मानी। इसके बावजूद, अमेरिका ने बल प्रयोग पर जोर देकर और अंतरराष्ट्रीय अभ्यास का गंभीर उल्लंघन किया है। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन अपनी कंपनियों के वैध अधिकारों और हितों की दृढ़ता से रक्षा करेगा, जबकि आगे आवश्यक कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित रखेगा।
तो क्या दोनों देशों के बीच हालात और बिगड़ सकते हैं?
इसे समझने के लिए हमने विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य पटेल से बात की। उन्होंने कहा, ‘ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चीन और अमेरिका किसी मुद्दे को लेकर आमने-सामने आए हों। उत्तर और दक्षिण कोरिया, ताइवाइन समेत कई मसलों को लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी रही है। दोनों देश विकसित हैं और दुनिया में अपनी अलग ताकत रखते हैं। ऐसे में दोनों के बीच इस तरह की बातें होना लाजिम है। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं कि दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो जाए। अभी भले ही दोनों देश एक दूसरे को लेकर आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं, लेकिन दोनों के बीच युद्ध या युद्ध जैसे हालात की संभावना न के बराबर है।’
क्या पहले कभी दोनों देशों के बीच हालात बिगड़े हैं?
डॉ. आदित्य कहते हैं, अक्टूबर 1950 में उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच जंग हुई थी। तब अमेरिका ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया था, जबकि चीन उत्तर कोरिया के साथ था। उस वक्त अमेरिकी एयरफोर्स के बी-29 और बी-51 बमवर्षक विमान ने उत्तर कोरिया में भारी तबाही मचाई थी। अमेरिकी सेना उत्तर कोरिया की सेना को पीछे धकेलते हुए यालू नदी के किनारे पहुंच गई थी। एक तरह से अमेरिकी सेना चीन के बॉर्डर तक पहुंच गई थी।
एक तरफ चीन और सोवियत रूस, उत्तर कोरिया की कम्युनिस्ट सरकार के साथ खड़े थे। वहीं, दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय देश दक्षिण कोरिया के साथ थे। तीन साल तक चली इस जंग में दोनों तरफ से 28 लाख से ज्यादा आम नागरिक और सैनिक मारे गए या गायब हो गए थे।
कोरिया में युद्ध के बाद अमेरिका ने दबाव डालकर संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग कराई और दक्षिण कोरिया की सुरक्षा का जिम्मा ले लिया। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान को सरेंडर कराने वाले अमेरिकी जनरल मैकऑर्थर के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी कोरिया पहुंची। देखते ही देखते खतरनाक नापाम बम के साथ अमेरिकी फाइटर उड़ान भरने लगे। नापाम बम में खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता था, जो इंसान को भाप में बदलने की क्षमता रखता था। इसके बाद चीन ने भी खुलकर उत्तर कोरिया का साथ देना शुरू कर दिया। उधर, सोवियत संघ भी उत्तर कोरिया को हथियार दे रहा था।
अमेरिकी सेना की मिसाइलों ने विमानों ने उत्तर कोरिया के गांवों को तबाह कर दिया था। जनवरी 1951 तक अमेरिकी सेना ने उत्तर कोरिया की कम्युनिष्ट सेना को न सिर्फ 38 पैरलल के पीछे धकेला था, बल्कि यालू नदी के करीब पहुंच गई थी। यालू नदी चीन और उत्तर कोरिया के बॉर्डर पर है। ऐसे में चीन भी अलर्ट हो गया। चीन को लगने लगा कि अमेरिका अब उसकी सीमा में घुस जाएगा। चीनी एयरफोर्स ने अमेरिका से सीधी जंग शुरू कर दी। MiG-15 फाइटर जेट्स को जंग में उतार दिया। नवंबर के पहले सप्ताह में मिग फाइटर जेट ने अमेरिकी सेना के दिन में किए जाने वाले हमलों को लगभग रोक दिया था। यालू नदी के किनारे मोर्चा संभाले चीन के दो लाख से ज्यादा सैनिकों ने अचानक अमेरिकी सैनिकों पर हमला बोल दिया।
इससे अमेरिकी सेना के सर्वोच्च अधिकारी डगलस मैकऑर्थर तिलमिला गए। उन्होंने चीन के अलग-अलग शहरों में परमाणु बम इस्तेमाल करने का भी फैसला कर लिया था। इस बात की जानकारी जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति को मिली उन्होंने बिना देर किए जनरल मैकऑर्थर को पद से बर्खास्त कर दिया। जुलाई 1953 में जब ड्वाइट डेविड आइजनहावर अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने कहा कि जंग खत्म करने के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी करना पड़ा तो वो करेंगे। हालांकि, इसके बाद 27 जुलाई 1953 को संधि के लिए सभी पक्ष तैयार हो गए। एक बार फिर से सीमा वही 38 पैरलल तय हुई जो जंग से पहले थी। (एएमएपी)