प्रदीप सिंह।
सत्ता का मोह आसानी से छूटता नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही था। चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के दस हफ्ते में ही उन्हें हटाकर राजीव खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। बल्कि यह कहना चाहिए कि राजीव इसके लिए बहुत उतावले थे। यह बात पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने अपनी पुस्तक ‘माई प्रेसीडेंशियल ईयर्स’ में लिखी है। वेंकटरमण ने लिखा है कि राजीव गांधी ने उनसे वादा किया था कि चंद्रशेखर सरकार को कम से कम एक साल चलाएंगे।
वेंकटरमण लिखते हैं कि फरवरी में राजीव गांधी मुझसे मिलने आए। तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के बारे में बात करने के बाद उन्होंने बताया कि उनके और चंद्रशेखर सरकार के बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद हैं। इसमें खाड़ी युद्ध में अमेरिकी विमानों में भारत में तेल भरने का मुद्दा, अयोग्य घोषित सांसदों के सरकार में बने रहने और सरकार की पंजाब व जम्मू-कश्मीर की नीति प्रमुख थे। पूरी बातचीत के दौरान राजीव गांधी ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस लेने या वैकल्पिक सरकार की बात नहीं की।
एक धड़ा राजीव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार
उसी दिन शाम को पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता एचकेएल भगत राष्ट्रपति से मिलने आए। भगत ने सरकार और कांग्रेस के बीच मतभेद के मुद्दों पर विस्तार से बात की। उन्होंने संकेत दिया कि देवीलाल और अरुण नेहरू के साथ चंद्रशेखर की पार्टी का एक धड़ा राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार है। राष्ट्रपति भौंचक्के रह गए। उनके मन में सवाल उठा कि बिना शर्त समर्थन का लिखित आश्वासन और मौखिक रूप से एक साल सरकार चलाने के वादे का क्या हुआ। उन्होंने भगत से कहा कि बदलती निष्ठाओं के इस दौर में कांग्रेस का यह कदम मिट्टी के घोड़े पर सवार होकर नदी पार करने जैसा होगा। कांग्रेस को कुछ और समय तक चंद्रशेखर सरकार के साथ रहना चाहिए और मतभेद दूर करने की कोशिश करना चाहिए। साथ ही उन्होंने चेताया भी कि ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। फिर वैकल्पिक सरकार की सारी कोशिश बेकार हो जाएगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक काम बजट या वोट ऑन एकाउंट पास करने की जरूरत है। वेंकटरमण चाहते थे कि भगत ये सारी बातें राजीव गांधी को बताएं। पर उन्हें पता नहीं था कि भगत ने ऐसा किया या नहीं।
इस बीच ये अफवाहें चलने लगीं कि देवीलाल, अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान राजीव के नेतृतव का समर्थन करने को तैयार हैं। वेंकटरमण लिखते हैं कि “पांच फरवरी, 1990 को लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के मुख्य सचेतक रंगराजन कुमार मंगलम राष्ट्रपति से मिलने आए। उन्होंने संसदीय कामों में चंद्रशेखर सरकार के तालमेल की दिक्कते बताईं। उन्होंने यह भी कहा कि राजीव गांधी का मन अल्पमत सरकार को बाहर से समर्थन देने के प्रयोग से उचट गया है। पर वे सरकार को गिराना नहीं चाहते।“
राजीव गांधी दिग्भ्रमित नजर आए। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि प्रधानमंत्री बनें या न बनें। क्योंकि स्थायी समर्थन का विश्वास नहीं हो रहा था। इस बीच एक नया बखेड़ा हो गया। राजीव गांधी के घर के बाहर हरियाणा पुलिस के दो सिपाही पकड़े गए। राजीव गांधी ने इसे मुद्दा बना लिया। उनकी मांग थी कि हरियाणा के गृहमंत्री को हटाया जाय, हरियाणा की ओम प्रकाश चोटाला सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल बर्खास्त हों। इसके विरोध में कांग्रेस ने संसद की कार्यवाही का बायकॉट शुरू कर दिया।
राजीव गांधी नई सरकार का नेतृत्व करने को तैयार
वेंकटरमण के मुताबिक थोड़ी देर बाद राजीव गांधी मिलने आए। उन्होंने बताया कि समान विचार वाली पार्टियों और नेताओं के साथ आने पर वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिश हो रही है। एक वरिष्ठ माकपा नेता इन पार्टियों और नेताओं में आमराय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वेंकट रमण लिखते हैं कि मुझे राजीव गांधी की सोच में स्पष्ट बदलाव नजर आया। वे न केवल नई सरकार का नेतृत्व करने को तैयार अपितु इसके लिए उतावले भी हैं। अखबार इन खबरों से भरे हुए थे कि इक्कीस फरवरी को राष्ट्रपति के संसद के दोनों सदनों से संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने से पहले ही सत्ता परिवर्तन हो सकता है।
उन्होंने तय किया वे प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और राजीव गांधी से अलग अलग खुलकर बात करेंगे। उन्हें राजीव गांधी दिग्भ्रमित नजर आए। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि प्रधानमंत्री बनें या न बनें। क्योंकि स्थायी समर्थन का विश्वास नहीं हो रहा था। इस बीच एक नया बखेड़ा हो गया। राजीव गांधी के घर के बाहर हरियाणा पुलिस के दो सिपाही पकड़े गए। राजीव गांधी ने इसे मुद्दा बना लिया। उनकी मांग थी कि हरियाणा के गृहमंत्री को हटाया जाय, हरियाणा की ओम प्रकाश चोटाला सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल बर्खास्त हों। इसके विरोध में कांग्रेस ने संसद की कार्यवाही का बायकॉट शुरू कर दिया।
…और सरकार गिर गई
छह मार्च को सुबह पौने दस बजे प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राष्ट्रपति से मिलने आए। वेंकटरमण के मुताबिक चंद्रशेखर बहुत संयत थे। उन्होंने बताया कि संसद में क्या हुआ। चंद्रशेखर ने कहा कि कांग्रेस का यही रवैया रहा तो तो वे लोकसभा अध्यक्ष से सदन की कार्यवाही थोड़ी देर के लिए रोकने का अनुरोध करेंगे। ताकि वे अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप सकें। चंद्रशेखर के जाते ही वेंकट रमण ने पीवी नरसिंह राव को फोन किया और स्थिति की गंभीरता बताई। कहा कि वे राजीव को समझाएं कि सरकार कुछ महीने और चलने दें। थोड़ी ही देर में सवा बारह बजे राजीव गांधी राष्ट्रपति भवन पहुंचे। राष्ट्रपति उन्हें स्थिति की गंभीरता समझाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन वे हरियाणा पुलिस के दो सिपाहियों के मुद्दे पर अड़े रहे और इसे अपनी अपमान बताते रहे। फिर राष्ट्रपति ने उन्हें बताया कि चंद्रशेखर कुछ ही क्षण में अपना इस्तीफा देने आ रहे हैं। वेंकटरमण लिखते हैं कि इस बात का राजीव गांधी पर कोई असर नहीं पड़ा। और चंद्रशेखर सरकार गिर गई।