ब्रिटेन, मुसलमान और पर्सनल लॉ

-डॉ. संतोष तिवारी ।

वर्ष 1982 में मुझे  टॉमसन फाउंडेशन स्कॉलरशिप मिली थी। उन दिनों  मैं लखनऊ में  अमृत प्रभात अखबार में काम करता था। इस स्कॉलरशिप के लिए उस वर्ष  केवल दो भारतीय  पत्रकारों का चयन किया गया था लंदन में पत्रकारिता पर एक एडवांस डिप्लोमा कोर्स करने के लिए।  इन दो पत्रकारों में से एक मैं था और दूसरे थे  श्रवण गर्ग।


 

लन्दन में मेरे हॉस्टल के पास ही एक बाजार था टूटिंग। इसमें भारतीयों की कई दुकानें थीं। एक पाकिस्तानी की मिठाई की दुकान थी। समोसा, बूंदी के लड्डू, बंगाली मिठाई, नमकीन सभी कुछ मिलता था।

वह मुझे पाकिस्तानी समझ बैठा

Tamil Nadu Police Arrest Bakery Owner For 'No Muslim Staff' Ad, Face  Question Over No Action

 

मैं लंदन की बड़ी मस्जिद का पता जानना चाहता था। इसलिए उस पाकिस्तानी दुकानदार से बात की। उस समय मेरे हाथ में अरबी भाषा का एक अखबार था, जिसे देखकर वह मुझे पाकिस्तानी समझ बैठा। उसने खूब खुलकर पाकिस्तान सरकार की आलोचना की। बोला दिल्ली में अभी भी सौ रुपये की कुछ कीमत है, लेकिन कराची में तो कुछ भी नहीं है। उसने सुझाव दिया कि जिस तरह कुछ पश्चिमी यूरोपीय देशों ने अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए यूरोपीय यूनियन बना रखी है, वैसी ही एक यूनियन भारत, पाकिस्तान और उस क्षेत्र के अन्य देशों के बीच में भी बननी चाहिए।

फिर एक दिन मैं लंदन की सबसे बड़ी मस्जिद भी गया। खूबसूरत रीजेंट पार्क के निकट यह शहर के बीचों-बीच स्थित है। वहां पांच हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। इस मस्जिद से लगा हुआ एक इस्लामिक सांस्कृतिक केंद्र भी है। मस्जिद के अहाते में कई लंबी-लंबी कारें खड़ी थीं। वहां कोई महिला नहीं दिखाई दे रही थी। पास खड़े एक व्यक्ति से मैंने पूछा कि क्या वह मस्जिद में काम करता है? उसके ‘हां’ कहने पर मैंने उसे अपना परिचय दिया। उसने मुझसे पूछा कि आप यहां क्या करने आए हैं? लोग लंदन आते हैं तो नाइट क्लब वगैरह घूमते हैं, कोई यहां नहीं आता।

थोड़ी देर बातचीत के बाद उसने मस्जिद के इमाम को मेरे बारे में खबर भेजी। इमाम स्वयं उठकर मुझसे मिलने आए। वह काफी समझदार व्यक्ति थे। लखनऊ भी आ चुके थे। उन्हें हिंदुस्तान के बारे में भी अच्छी जानकारी थी। इमाम सऊदी अरब के रहने वाले थे और शायद लखनऊ में नदवा में कभी पढ़े थे। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर गोरों से ज्यादा है। और ब्रिटेन के अधिकांश मुसलमान भारतीय  और पाकिस्तानी मूल के हैं।

मुस्लिम आबादी बढ़ेगी तो पर्सनल लॉ लागू करने की मांग करेंगे

The other side of the triple talaq debate - columns - Hindustan Times

मैंने पूछा हमारे देश में तो मुसलमानों के पारिवारिक मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ कानून के अंतर्गत निपटाए जाते हैं। क्या ब्रिटेन में भी ऐसी ही व्यवस्था है? तो उन्होंने कहा कि नहीं, ब्रिटेन में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां ब्रिटिश कानून के अनुसार ही सारे विवाद तय होते हैं।

उन्होंने कहा कि जब धीरे धीरे मुस्लिम आबादी का प्रतिशत ब्रिटेन में बढ़ जाएगा, तब हम लोग मुस्लिम पर्सनल ला लागू करने की मांग रखेंगे।

मैं ब्रिटेन में मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-गिरजाघर सब जगह गया। लेकिन यहां यह बताना जरूरी है कि गिरजाघरों की प्रार्थना सभाओं में जाने वालों की संख्या घट रही है। हालांकि उस समय पोप के ब्रिटेन आगमन पर वहां बड़ी जबरदस्त भीड़ थी। मेरे विचार से यह भीड़ शायद मात्र कौतूहलवश इकट्ठा हुई थी।

मस्जिदों से घृणा फैलाने वाले भाषण

Regent's Park mosque attack: Knifeman 'stabs man leading call to prayer in  neck' - Irish Mirror Online

वर्ष 2017 में लंदन के रीजेंट पार्क की यह मस्जिद भी आलोचना का पात्र भी बनी। 15 जनवरी 2017 को चैनल 4 में  एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म  ‘अंडरकवर मास्क’ दिखाई गई।  लगभग एक वर्ष में गुप्त तरीके से छुपकर बनाई गई इस फिल्म में दिखाया गया कि ब्रिटेन की विभिन्न मस्जिदों में किस प्रकार दूसरे धर्मों के खिलाफ घृणा फैलाने वाले भाषण दिए जाते हैं। इन भाषणों के फुटेज इस फिल्म में दिखाए गए।

पता नहीं किसने कितनी शादियां कीं

Muslim Marriage – I Was There

ब्रिटेन से छपने वाले ऑक्सफ़ोर्ड जर्नल ऑफ लॉ एंड रिलिजन (खंड 6, अंक 3, वर्ष 2017 पृष्ठ संख्या 523 से 543) में पैट्रिक एस. नाश का शोध लेख  प्रकाशित हुआ है। लेख में कहा गया है कि आज ब्रिटेन में मुस्लिम लोगों की आबादी कुल जनसंख्या का 5 फीसदी हो गई है और अन्य लोगों की तुलना में यह 10 फीसदी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।

आज ब्रिटेन में जो मुस्लिम हैं उनमें से लगभग 47 फीसदी वे लोग हैं जो कि ब्रिटेन में ही पैदा हुए हैं।

ब्रिटिश कानून के विरुद्ध

लेख में कहा गया है कि आज ब्रिटेन में लगभग 85 शरिया काउंसिल चल रही हैं. इनकी सही-सही संख्या किसी को पता नहीं है। ये शरिया काउंसिल मुसलमानों के खास तौर से शादी  विवाह के मामले शरीयत के कानून के अनुसार निपटा रहे हैं जो कि इंग्लिश लॉ अर्थात ब्रिटिश कानून के विरुद्ध है।

विवाह रजिस्टर्ड नहीं करा रहे मुस्लिम

इस लेख में बताया गया कि ब्रिटेन में एक समस्या यह हो रही है कि मुस्लिम लोग अपने विवाह रजिस्टर्ड नहीं करा रहे हैं। यह पता नहीं चल रहा है किस-किस ने कितनी शादियां कीं। लगभग 80  प्रतिशत मुस्लिम शादियां रजिस्टर्ड नहीं हैं।  इसी प्रकार तलाक के अनेक मामलों का भी कानूनी तौर से पता नहीं चलता। अनधिकृत पत्नियों की संख्या से ब्रिटेन में एक नया टाइम बम बनने जा रहा है।

(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)

 

 

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