इस साल के अंत में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मेलन के एजेंडे को अंतिम रूप देने के लिए चार और पांच मई, 2023 को गोवा में विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए भारत द्वारा हाल ही में भेजे गए आमंत्रण ठुकराने को लेकर पाकिस्तान मुश्किल में फंस गया है, क्योंकि उसका यह कदम चीन को नाराज कर सकता है, जो रूस के साथ एससीओ का सह-संस्थापक है। दूसरी तरफ अगर वह आमंत्रण स्वीकार करता है, तो वहां के कट्टरपंथियों को बढ़ावा मिलने की आशंका है, जो पाकिस्तान के मौजूदा आर्थिक संकट और आगामी चुनावों में इसका फायदा उठा सकते हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गंभीर संकट में हैं, इसलिए उन्होंने माना है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की पूर्व शर्त कल्पना से परे है, लेकिन मुल्क को आर्थिक पतन से बचाने के लिए उन्हें इससे सहमत होना पड़ेगा, जो विपक्ष और कट्टरपंथियों को उन्हें घेरने का मौका दे सकता है। लेकिन विदेश मंत्रियों की बैठक के निमंत्रण को स्वीकार करने से एक सकारात्मक अंतरराष्ट्रीय छवि बन सकती है और पाकिस्तान में लोग इससे विमुख नहीं होंगे, जैसा कि अतीत में भी देखा गया है। कूटनीति में, किसी भी शत्रुतापूर्ण राष्ट्र के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए एक कदम आगे या पीछे करना हमेशा तर्कसंगत होता है। भारत ने इसी सिद्धांत पर काम किया है और एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में पाकिस्तान की भागीदारी चाहता है, जो भारत की अध्यक्षता में हो रही है।

एससीओ बैठक की तैयारी एक बोझिल कवायद है और रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों और पर्यावरण मंत्रियों जैसे नौ देशों के अन्य मंत्रिस्तरीय प्रमुख भी एजेंडे को अंतिम रूप देने के लिए मार्च, 2023 से व्यापक चर्चा करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि एससीओ सदस्य सितंबर, 2022 की बैठक के प्रस्तावों को आगे बढ़ाएंगे और क्षेत्र और दुनिया के सामने मौजूद ज्वलंत मुद्दों पर विचार करेंगे। यह तय है कि सदस्य राष्ट्र ड्रग्स के खतरे, कट्टरता, मानव संकट और काबुल शासन की महिला विरोधी मानसिकता, अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांजिट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) और तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (टीएपीआई) परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

एससीओ विशेषज्ञों की राय है कि साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता है, जो संघर्षों को दूर कर सके। एससीओ और ब्रिक्स के साथ इंटरबैंक कंसोर्टियम (जो अभी सदस्यों के विचाराधीन है), आम वित्तीय कमी की समस्या को हल कर सकता है। एससीओ एकमात्र ऐसा संगठन है, जिसने अपने आंतरिक मतभेदों के बावजूद, वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपनी प्रासंगिकता कुछ हद तक बनाए रखी है। यह उस मूल्य को प्रदर्शित करता है, जो प्रत्येक सदस्य संगठन में रखता है। और उनके हितों के टकराव को देखते हुए, यह हाल के दिनों में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता प्रतीत होता है। ब्रेजिंस्की थ्योरी के अनुसार, जो देश मध्य एशिया पर हावी है, वह यूरेशिया पर हावी है, और जो यूरेशिया पर हावी है, वह दुनिया पर हावी है। एससीओ के गठन के बाद से ही चीन और रूस ने इस पर ध्यान दिया है। शंघाई फाइव ने वास्तव में मानवीय आधार पर और मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए अन्य देशों में हस्तक्षेप का विरोध किया है।

भारत ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने की पहल की है और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को एससीओ बैठक में भाग लेने के लिए बुलाया जा सकता है, जो भविष्य में बातचीत की बहाली की दिशा में माहौल बनाने का अवसर प्रदान कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने शरीफ के इस बयान का संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने साहसपूर्वक यह स्वीकार किया कि भारत के साथ दशकों तक दुश्मनी करके और तीन युद्ध लड़कर पाकिस्तान ने सबक सीख लिया है, इसलिए अब अपने पड़ोसी के साथ वार्ता की मेज पर बैठकर शांति चाहता है। दुर्भाग्य से, शरीफ को अपना बयान वापस लेना पड़ा और अनुच्छेद 370 आदि को निरस्त करने के मुद्दे को उठाना पड़ा, जिसके लिए कट्टरपंथियों और भारत लॉबी द्वारा बनाए गए दबाव को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह खुला रहस्य है कि चीन पाकिस्तान की विदेश नीति को निर्देशित करता है और यदि चीन भारत में होने वाली एससीओ बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालता है, तो शरीफ उसे नजर अंदाज करने की हिम्मत नहीं कर सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि एससीओ के सदस्य क्षेत्रीय एकीकरण हासिल करने, कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने और सीमा पार स्थिरता को मजबूत करने में योगदान दे सकते हैं, जो पहले से ही खतरे में है। भारत की ऊर्जा जरूरतें बढ़ रही हैं और एससीओ कूटनीति के माध्यम से इसे पूरा किया जा सकता है। टीएपीआई और ईरान-पाकिस्तान-भारत (आईपीआई) जैसी रुकी हुई परियोजनाओं के निर्माण पर एससीओ सदस्यों के साथ सीधी बातचीत से उसे गति दी जा सकती है। इसी तरह एससीओ मध्य-एशिया तक सीधी पहुंच प्रदान करता है, जिससे भारत और मध्य एशिया के बीच व्यापार बाधाओं को दूर किया जा सकता है। आर्थिक मोर्चे पर भारत को दूरसंचार, आईटी, बैंकिंग, वित्त और फार्मास्यूटिकल्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मध्य एशियाई देशों में एक बड़ा बाजार बनाने का अवसर मिल सकेगा। भू-राजनीतिक रूप से एससीओ अपनी ‘कनेक्ट सेंट्रल एशियन पॉलिसी’ को लागू करने के लिए एक मार्ग प्रदान करता है, क्योंकि मध्य एशिया विस्तारित पड़ोस का हिस्सा है। चीन और पाकिस्तान पर अंकुश लगाने के अलावा एशिया में अग्रणी भूमिका निभाने की भारत की आकांक्षा एससीओ के माध्यम से संभव हो सकती है, क्योंकि इसमें भारत का पुराना भरोसेमंद मित्र रूस शामिल है।

यूरोपीय संसद के शोधकर्ता के अनुसार, एससीओ ने कभी भी प्रत्याशित क्षेत्रीय सहयोग हासिल नहीं किया है, इसका कारण इसकी संस्थागत कमजोरी, संयुक्त परियोजनाओं के लिए आम वित्तीय धन की कमी और परस्पर विरोधी राष्ट्रीय हित हैं। यूक्रेन युद्ध के कारण समरकंद में हुआ सम्मेलन अस्त-व्यस्त हो गया था। एससीओ के अध्यक्ष के रूप में भारत शांति स्थापित करने के लिए मध्य एशियाई देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग के समरकंद संकल्प को आगे बढ़ाना चाहेगा। अपेक्षा के अनुरूप भारत इसे यूक्रेन युद्ध से दूर रखने का प्रयास करेगा, लेकिन आतंकवाद में सहयोग को रेखांकित करने के अलावा अफगानिस्तान के मसले पर भी इसमें चर्चा होगी। (एएमएपी)