प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं लहरी बाई की तारीफ।
लहरी बाई ने बताया, मैं बचपन से ही घर में बेवर की खेती देख रही हूं। उसके बीज को सहेजने की जानकारी घर में मिली। मैंने भी बीजों को संरक्षित करना शुरू कर दिया। मुझे बीज संरक्षित करना अच्छा लगता है। बेवर बीज की खेती से उत्पन्न होने वाले अनाज को खाने से शरीर हृष्ट-पुष्ट रहता है। आयु भी लंबी होती है। मैंने अपने खेत में धान और कोदो की खेती की। सामुदायिक अधिकार वाले जंगल की जमीन पर भी मैं पारंपरिक खेती करने में इन बीजों का इस्तेमाल करती हूं।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को ने 2023 को ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया है। इस लिहाज से लहरी बाई की यह उपलब्धि बेहद खास है। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को ट्वीट कर उनकी तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि लहरी बाई ने श्रीअन्न के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है। उनके प्रयासों से दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी।
लहरी बाई बैगा जनजाति से आती हैं। उनके पिता का नाम सुखराम और माता का नाम चेती बाई है। खास बात यह है कि उन्होंने अपने दम पर यह बीज बैंक तैयार किया है। उन्होंने इसके लिए कोई सरकारी मदद नहीं ली है। इसके लिए डिंडोरी के कलेक्टर ने उन्हें जिले का ब्रांड एम्बेसडर घोषित किया है। इस साल गणतंत्र दिवस के मौके पर कलेक्टर विकास मिश्रा के साथ लहरी बाई ने भी ध्वजारोहण किया था। कलेक्टर ने लहरी बाई की फोटो कलेक्ट्रेट के सभागार कक्ष में लगवाया है।
25 से ज्यादा प्रकार के बीज संरक्षित
लहरी बाई के बीज बैंक में 25 से ज्यादा प्रजाति के बीज हैं। इनमें कांग की चार प्रजाति हैं। भुरसा कांग, सफेद कलकी कांग, लाल कलकी कांग, करिया कलकी कांग है। वही मढिया की प्रजाति में चावर मढिया, लाल मढिया, गोद पारी मढिया, मरामुठ मढिया। सलहार की तीन प्रजाति में बैगा सलहार, काटा सलहार, ऐंठी सलहार है। साभा की प्रजाति में भालू सांभा, कुशवा सांभा, छिदरी सांभा। कोदो के प्रजाति में बड़े कोदो, लदरी कोदो, बहेरी कोदो, छोटी कोदो। कुटकी की प्रजाति में बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाहि कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया के अलावा दलहनी फसल. बिदरी रवास, झुंझुरु, सुतरु, हिरवाए बैगा राहर के बीज मौजूद हैं।
पूर्वजों से मिली श्रीअन्न की जानकारी
लहरी बाई बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही उन्हें उनके पूर्वजों से बेवर खेती करना और उसके बीज को सहेजने की जानकारी मिली है। बेवर बीज की खेती से उत्पन्न होने वाले पौष्टिक अनाज को खाने से शरीर पुष्ट रहता है और आयु भी लंबी होती है। इसके चलते लहरी बाई ने अपने खेत में धान और कोदो की फसल के साथ-साथ सामुदायिक अधिकार वाले जंगल की जमीन में पारंपरिक खेती में इस्तेमाल करने वाले बीजों को सहेजने का काम किया है।
जगा रहीं पारम्परिक खेती की अलख
लहरी बाई पारंपरिक खेती को बचाने और इसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से अब तक 350 से ज्यादा किसानों को बीज बैंक के जरिये बीज वितरित कर चुकी हैं। लहरी बाई ने तीन विकासखंडों समनापुर, बजाग और करंजिया के ग्रामों में बेवर बीज वितरित किये हैं। इनमें किवाड़, चपवार, गौरा, ढाबा, जीलंग, अजगर, लमोठा, धुरकुटा का जामुन, टोला, कांदावानी, तातर, सिलपीढ़ी, डबरा, ठाड़पथरा,पांडपुर, लिमहा, दोमोहनी, केन्द्रा, लदरा, पीपरपानी, बर्थना, कांदाटोला, सैला ग्राम शामिल हैं। लहरी गांव-गांव जाकर बीज बांटती हैं और फसल पैदा होने पर बीज की मात्रा के बराबर वापस ले लेती हैं।
लहरी बाई बताती हैं कि खेती से ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में लोग मोटे अनाज की खेती करना धीरे-धीरे बंद करने लगे और हम बचपन से ही मोटे अनाज खाते आ रहे हैं। मुझे लगने लगा कि अब ये बीज विलुप्त हो जाएंगे। मैं उन्हें अपने घर पर इकट्ठा करने लगी। उसके लिए मुझे सुबह से आसपास के गांव में जाना पड़ता। कई लोगों की बात सुनती, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने बीज लाकर पहले खुद अपने खेत में लगाया और जब बीज ज्यादा हो गया तो उसे बीज बैंक में रखती गई। लोगों को घर-घर जा जाकर समझाती कि मोटे अनाज खाने से शरीर ठीक रहता है। ताकत मिलती है। उसके फायदे बताए तो फिर धीरे-धीरे लोग मुझसे ही बीज मांगने लगे। मैं गांव-गांव जाकर बीज बांटने लगी। धीरे-धीरे ग्रामीणों को भी समझ में आ रहा है और उसकी खेती फिर शुरू कर रहे हैं। जब कोई किसान बीज लेता है तो फसल कटाई के बाद जब अनाज घर लेकर आता है तो उससे जितना बीज दिया उससे एक किलो बढ़कर अनाज लेती हूं।
माता पिता की सेवा के लिए नहीं की शादी
लहरी बाई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उन्हें सिर्फ अक्षर ज्ञान है। बुजुर्ग और बीमार पिता सुखराम और माता चेती बाई की देखभाल के कारण शादी भी नहीं की है। लहरी बाई की मां चेती बाई का कहना है कि उनकी बेटी लहरी उनकी बहुत सेवा करती है। साथ ही खेती किसानी कर भरण-पोषण के लिए अनाज इकट्ठा करती है। लहरी बाई समेत उनके 11 बच्चे थे। इनमें पांच बेटे और छह बेटियां थीं, लेकिन धीरे धीरे कर नौ बच्चों की मौत हो गई। अब लहरी और एक अन्य बेटी ही बची है जिसकी शादी हो चुकी है। अपने बूढ़े मां बाप की सेवा करने क लिए लहरी बाई ने शादी नहीं की है। (एएमएपी)