कोरोना वायरस से जूझ रहे कई अफ्रीकी देशों में अब एक और जानलेवा वायरस का प्रकोप देखा गया है. दरअसल, मध्य अफ्रीकी देशों में मारबर्ग वायरस तेजी से फैल रहा है. मारबर्ग वायरस के प्रकोप से इक्वेटोरियल गिनी में 9 लोगों की मौत हो गई है. देश के स्वास्थ्य मंत्री ने सोमवार को उक्त जानकारी दी.

घातक रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है मारबर्ग वायरस

बताते चलें कि 2014 में इबोला का प्रकोप पश्चिम अफ्रीका में मुख्य रूप से गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया में हुआ था. इस दौरान इबोला के कारण 11 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. बताया जा रहा है कि मारबर्ग वायरस इबोला की तरह घातक रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है. इबोला मनुष्यों और अन्य प्राइमेट को प्रभावित करने वाली एक गंभीर, घातक बीमारी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) के अनुसार, सहायक उपचार के शुरुआती रोल-आउट से इबोला से होने वाली मौतों में काफी कमी आई है.

WHO ने बुलाई बैठक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ)) के अधिकारियों की ओर से कहा गया है कि मारबर्ग वायरस कोरोना और इबोला से भी अधिक खतरनाक और जानलेवा है. इस वायरस के प्रकोप पर चर्चा के लिए डब्ल्यूएचओ ने एक बैठक अभी बुलाई है. बैठक से पहले डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों ने मारबर्ग वायरस रोग की गंभीरता पर चर्चा की थी.

88 फीसदी तक होती है मृत्यु दर

डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों ने बताया था कि मारबर्ग वायरस रोग एक अत्यधिक विषाणुजनित रोग है, जो रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है, जिसमें मृत्यु दर 88 फीसदी तक होती है. यह उसी फैमिली का वायरस है, जो इबोला रोग का कारण बनता है. डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट पर बताया गया कि मारबर्ग वायरस रोग के संपर्क में आने वाले इंसानों को भयंकर बुखार आता है. इसका संक्रमण शुरू में रूसेटस बैट कॉलोनियों की खानों या गुफाओं में रहने वाले लोगों में फैला था. वहां हुई जांच के आधार पर यह कहा गया कि एक बार जब कोई व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो मारबर्ग संक्रमित लोगों के रक्त-स्राव, मानव से मानव के निजी अंगों के संपर्क में आने से फैल सकता है. इसके अलावा, रोगियों के कपड़े जैसे कि बिस्तर आदि का इस्‍तेमाल करने पर भी इसका संक्रमण फैलता है.

शोध में सामने आई ये जानकारी

जर्मनी में मारबर्ग और फ्रैंकफर्ट में और 1967 में बेलग्रेड (सर्बिया) में एक साथ हुए दो बड़े प्रकोपों ने इस तरह की बीमारी की शुरूआती पहचान कराई थी. वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका प्रकोप युगांडा से आयातित अफ्रीकी हरे बंदरों पर लैब में किए गए प्रयोगों के बाद सामने आया. इसके बाद, अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा में प्रकोप और छिटपुट मामले सामने आए. 2008 में युगांडा में रूसेटस बैट कॉलोनियों में एक गुफा का दौरा करने वाले यात्रियों में दो मामले दर्ज किए गए थे. (एएमएपी)