आधुनिकता के दौर में आज भले ही शहरों से गांव तक मॉल और नेटवर्किंग संस्कृति पनप रही हो, लोग मंगल और चांद में बसने का ख्वाब देख रहे हों। पर कुछ प्राचीन परंपराएं आज भी इन झंझावातों के बीच अपना अस्तित्व बचाने में न सिर्फ सफल रही हैं, बल्कि एक बहुत बड़ी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ बनी हुई हैं। उन्हीं में एक है सप्ताह में एक दिन किसी खास गांव में लगने वाली साप्ताहिक हाट। साइबर क्रांति ने पूरी दुनिया को एक जगह सिमट दिया है, इसके बावजूद इस वैज्ञानिक युग में भी साप्ताहिक हाटों की महत्ता कम नहीं हुई है। आज भी ये हाट ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का आधार बनी हुई हैं।आज भी एक नीयत दिन पर किसी खास गांव में हाट लगती है, जहां सूखी और ताजा मछली से लेकर साग—सब्जी, जड़ी—बूटी, अंग्रेजी दवा, फल, बीज, पौधे, कपड़े, बेल्ट, चश्मा, कृषि के यंत्र, सोना-चांदी के गहने, गंडा-ताबीज, फटे पुराने नोटों की बदली, टेलरिंग, खाद्य सामग्री से लेकर मवेशी तक की खरीद-बिक्री होती है। कहने का तात्पर्य है कि हाट एक ऐसी जगह है, जहां वाहन छोड़कर जरूरत का हर सामान सुई-धागा हो तेल-मसाले जरूरत की हर चीज वहां मिलती है। साप्ताहिक हाट लोगों के मिलने-जुलने और सुख-दु:ख की बातें करने का एक माध्यम है। सुदूर ग्रामीण इलाकों में तो आज भी चिट्ठी-पत्री को डाकिया हाटों में ही बांटते हैं। सार्वजनिक या सरकारी जमीन पर लगने वाली हाटों की बंदोबस्ती प्रशासन द्वारा की जाती है, जबकि निजी जमीन पर लगनेवाली हाट से गांव वाले राजस्व की वसूल करते हैं।

आज भी कायम है वस्तु विनिमय प्रणाली


गांव-देहात में लगनेवाली साप्ताहिक हाटों में आज भी कहीं-कहीं वस्तु विनिमय प्रणाली(बार्टर सिस्टम) लागू है, सामान के बदले सामान की खरीद-बिक्री की जाती है। हाटों में चूड़ा, मुरही(मुर्रा) की बिक्री धानया चावल के बदले की जाती है। यदि आपको चूड़ा आदि खरीदना हो, तो आपको उसके बदले धान या चावल देना होगा। कुछ क्षेत्रों में चावल-धान, गेंहू जैसे अनाज देकर ग्रामीण अपनी जरूरत की दूसरी वस्तु खरीदते हैं। खूंटी जिले में वैसे तो सैकड़ों गांवों साप्ताहिक हाट लगती है। पर खूंटी जिले में कुछ ऐसी हाट हैं, जो खूंटी ही नहीं, दूसरे जिलों में भी विख्यात हैं, जहां हर हाट में 50 हजार से अधिक की भीड़ जुटती है। खूंटी की सोमवार और शुक्रवार को लगने वाली हाट के अलावा मुरहू, मारंगहादा, तपकारा, जम्हार, रनिया आदि बड़ी हाट हैं, जहां दूसरे जिलों के व्यापारी भी दुकानदारी के लिए पहुंचते हैं।

गांवों के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण

कर्रा प्रखंड के गोविंदपुर स्टेशन में लगनेवाले जम्हार बाजार(हाट) में दुकान लगाने वाले महावीर साहू कहते हैं कि सप्ताह में एक दिन लगनेवाली हाट सही मायने में आज भी ग्रामीणों के जीवन का आधार हैं। हर व्यक्ति शहर जाकर दैनंदिनी के सामान की खरीदारी नहीं कर सकता। वह अपनी सभी आवश्कताओं को इन्हीं हाटों से पूरा करता है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि वह हाट में आनेवाले दुकानदारों और ग्राहकों को सुविधा और सुरक्षा दे। हाट में ही बीजों की दुकान लगानेवाले बमरजा गांव के कैलाश महतो कहते हैं कि चार-पांच किलोमीटर के क्षेत्रफल में हर दिन कहीं न कहीं हाट लगती ही है और दुकानदारों का दाना-पानी इसी से चल जाता है।

सरकार दे रही है सुविधा : मसीह गुड़िया

खूंटी जिला परिषद के अध्यक्ष मसीह गुड़िया और तोरपा प्रखंड के उप प्रमुख संतोष कुमार कर कहते हैं कि सरकार द्वारा हाटों की परंपरा को बरकरार रखने के लिए कई सुविधा दे रही है। हाट वाले स्थानों पर शेड आदि बनाये जा रहे हैं।

सैकड़ों वर्षों से लग रहा रांची का बुध बाजार

भले ही आज रांची झारखंड की राजधानी बन गई हो और जरूरत व सुख-सुविधा की हर वस्तु सभी जगहों पर उपलब्ध हों, पर अब भी अपर बाजार में बुधवार के दिन लगनेवाली साप्ताहिक हाट अपनी गरिमा को बरकरार रखे हुए है। यह कोई नहीं बता सकता है कि अपर बाजार में हाट कब से लग रही है, पर इतना तो जरूर है कि यह सैकड़ों वर्ष पुरानी है। कुछ लोग बताते हैं कि अपर बाजार के इस स्थान पर हाट उस समय से लग रही है, जब रांची का पुराना नाम करची टोली था, जो मात्र एक कस्बा था। इतने दिनों के बाद भी हाट की यह परंपरा आज भी राजधानी में कायम है। वैसे यहां बुधवार के अलावा शनिवार को भी हाट लगती है।(एएमएपी)