नब्बे के दशक से पहले यूक्रेन सोवियत संघ (अब रूस) का हिस्सा हुआ करता था। साल 1991 में भाषा और दूसरी वजहों से यूक्रेन टूटकर आजाद देश बन गया। इसके बाद भी लंबे समय तक ये अप्रत्यक्ष ढंग से रूसी दखल झेलता रहा। रूस अलग होकर भी मजबूत था, लेकिन यूक्रेन में गरीबी और महंगाई लगातार बढ़ने लगी। इसी बात पर यूक्रेन में रूसियों के खिलाफ गुस्सा बढ़ा। धीरे-धीरे वो कंफर्ट जोन से बाहर आकर दूसरे देशों से घुलने-मिलने लगा। यहां तक कि सैन्य मामलों में भी वो आजाद होने लगा। रूस इस बात पर परेशान तो हुआ लेकिन दोनों देशों का तनाव खुलकर तब आया, जब यूक्रेन ने खुद को नाटो में शामिल करने की अपील की।
यूक्रेन की नाटो से जुड़ने की बात क्यों है रूस पर खतरा
नाटो यानी नॉर्थ अटलाटिंक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन वो संगठन है, जिसमें रूस का कट्टर दुश्मन अमेरिका भी शामिल है। ये संगठन युद्ध जैसे हालातों में एक-दूसरे की मदद करते हैं। ऐसे में यूक्रेन अगर नाटो से जुड़ जाए तो बड़े-बड़े देश रूस के खिलाफ उसका साथ देंगे। इसी बात ने रूस की सरकार को गुस्सा दिला दिया। उसने साल 2021 के आखिर में ही यूक्रेन की सीमाओं पर सैनिक तैनात करने शुरू कर दिए और 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला ही कर दिया। तब से युद्ध चल रहा है।
इससे दोनों ही देशों का बड़ा नुकसान हुआ
अलग-अलग सोर्स के मुताबिक यूक्रेनियन सेना के अलावा अब तक 7 हजार से ज्यादा आम नागरिक भी मारे गए हैं। लगभग 7 मिलियन लोग अपना देश छोड़कर दूसरी जगहों पर पनाह लिए हुए हैं। देश के लगभग हर शहर में युद्ध के चलते नौकरियां कम हुईं और महंगाई बढ़ चुकी है। यहां तक कि भागे और डरे हुए नागरिक तस्करी का शिकार तक हो रहे हैं। रूस के बारे में खुलकर कोई जानकारी नहीं आ रही, लेकिन माना जा रहा है कि वहां भी हाल खास अच्छे नहीं होंगे।
जल्दी युद्धविराम न हो, तो दोनों देशों की आग पूरी दुनिया में फैल जाएगी और चाहे-अनचाहे हर कोई युद्ध का हिस्सा होगा। कुछ देश रूस का साथ देंगे। कुछ अमेरिका की तरफ खड़े होंगे। वहीं एक तीसरा पाला भी होगा। इसमें कुछ ऐसे देश शामिल होंगे, जिनका दोनों ही खेमों से कुछ न कुछ वास्ता है और जो जंग नहीं चाहते हुए भी उसका हिस्सा बन चुके होंगे। इनमें भारत भी हो सकता है।
शक और चुनौती के हालात बनेंगे
एक कंप्यूटर सिस्टम है, जो भौगोलिक आधार पर अलग-अलग तरह की जानकारियां जमा करता है। जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) की कई रिपोर्ट्स यही इशारा कर रही हैं। रक्षा विशेषज्ञ और जर्मनी के फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट रूडोल्फ जी एडम ने जीआईएस के डेटा को देखते हुए इसी तरह का दावा किया। इसके मुताबिक तीन धड़े एक-दूसरे को शक और चुनौती की नजर से देखेंगे और यही बात आगे चलकर लड़ाई बढ़ाएगी।
कौन से देश किस तरफ?
पश्चिमी उदारवादी और पूंजीवादी देश एक तरफ होंगे। इसमें अमेरिका, कनाडा, यूके, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। दक्षिण कोरिया भी इसी तरफ होगा क्योंकि एक समय पर अमेरिका ने उसकी भारी मदद की थी।
दूसरा खेमा कौन सा
इस हिस्से में रूस होगा, जिसकी तरफ बेलारूस, इरान, सीरिया, वेनेजुएला और उत्तर कोरिया होंगे। चीन ऑन एंड ऑफ तरीके से रहेगा, लेकिन उसकी ज्यादा संभावना इसी पक्ष में रहने की है। इसकी एक वजह अमेरिका की बजाए खुद को सुपरपावर की तरह देखना है। तो दुश्मन का दुश्मन दोस्त की तर्ज पर चीन कूटनीति खेल सकता है।
तीसरा हिस्सा बिल्कुल नया हो सकता है
इसमें विकासशील देश होंगे। भारत इनका अगुआ हो सकता है, जो कि विकसित देशों के लिए खतरा बनकर उभरा है। इसके साथ बाकी दक्षिण एशियाई देश होंगे। दक्षिण अमेरिका और अरब देश भी इस समूह में होंगे, जिनका आमतौर पर दोनों खेमों से पाला पड़ता है, और जो युद्ध रोकना चाहते हैं।
कोविड वैक्सीन का असमान बंटवारा भी बनेगा वजह
इस दौरान बड़े इंटरनेशनल संगठन, जो आमतौर पर शांति की बात करते हैं, वे कमजोर हो जाएंगे। यूनाइटेड नेशन्स की अपनी कोई आवाज नहीं बचेगी और न ही ऑर्गेनाइजेशन फॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप किसी तरह शांति ला सकेगा। इनकी बजाए क्षेत्रीय संगठन, जो किसी एक देश के लिए काम करते हों, ज्यादा मजूबत हो सकते हैं। वही चाहें तो जंग के बीच शांति ला सकेंगे। बड़े संगठनों से देशों के उखड़ने का एक कारण कोविड वैक्सीन भी बनेगी। महामारी के तबाही मचाने के दौर में भी वैक्सीन का बराबर बंटवारा नहीं हुआ, जिसने बहुत से कमजोर देशों को वेस्ट, खासकर अमेरिका से दूर कर दिया।
दुनिया में ताकत को लेकर बहुत बड़े बदलाव हो सकते हैं
शुरू करते हैं रूस के दोस्त ईरान से। दोनों ही पर अमेरिकी पाबंदी है, इस वजह से दोनों आपस में दोस्त बन गए और फिलहाल यूक्रेन से लड़ाई में भी ईरान अपने एक ताजा दोस्त की हथियारों और ड्रोन्स से मदद कर रहा है। ये दोनों देश ताकतवर भी हैं और आक्रामक भी। ऐसे में इनका साथ होना बड़ा खतरा हो सकता है। भारत जिस तरह से लगातार इकनॉमी में आगे आ रहा है, सबकी उम्मीदें इस तरफ हैं। ऐसे में वो कमजोर देशों के लीडर की तरह उभरकर तीसरे खेमे का नेतृत्व भी कर सकता है। बहुत मुमकिन ये भी है कि भारत शांति की अपील करे, जो सुनी भी जाए।
क्या वाकई तीसरी जंग हो सकती है?
रक्षा विशेषज्ञ लगातार इसे लेकर चेता रहे हैं। कोविड से कमजोर हुई दुनिया में महंगाई बढ़ी। देशों के अंदरुनी हालात बिगड़ रहे हैं। इसपर रूस-यूक्रेन युद्ध ढेर पर चिंगारी का काम कर रहा है। थके और परेशान देश आपस में उलझकर वाकई में जंग के हालात ला सकते हैं। एक्सपर्ट्स के अलावा आम लोग भी यही सोचने लगे हैं। दिसंबर 2022 इंटरनेशनल फर्म Ipsos ने एक सर्वे कराया, जिसमें शामिल 34 देशों के ज्यादातर लोगों ने माना कि जल्द ही तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। भारत भी सर्वे का हिस्सा था, जहां लगभग 79 प्रतिशत लोगों ने युद्ध की आशंका जताई।(एएमएपी)