दर्द का पहाड, पहाड का दर्द-1

व्‍योमेश चन्‍द्र जुगरान ।
पौड़ी में शाम कंडोलिया में कुक्‍की भाई मिल गए। ऐसा बहुत कम होता है कि मैं पौडी में होउूं और कुक्‍की भाई से भेंट न हो। खास बात यह है कि उनसे मिलना अनायास होता है। सायास भेंट तब हो पाती है जब शहर के मुख्‍य बाजार में उनके होटल के पास से गुजरना हो। आप चाहकर भी नजर नहीं चुरा सकते… और वह भी प्‍यार से पास बैठाकर चाय-बिस्‍कुट के बिना आगे नहीं बढने देते। 
कुक्‍की भाई का पूरा नाम कुशलानंद है, पर शहर उन्‍हें इसी निकनेम से पुकारता है। वह पौडी के उन प्रतिष्ठित परिवारों में हैं, जिन्‍हें यह शहर कला, साहित्‍य और खेल में अपना लोहा मनवाने के लिए जानता है। कुक्‍की भाई को राजनीतिक चर्चाएं खूब भाती हैं, पर मेरे संग चर्चा का केंद्रबिंदु पौड़ी शहर ही होता है। मंडलीय मुख्‍यालय के वैभवशाली अतीत से पगे पौड़ी शहर का वर्तमान उन्‍हें विद्रोह की हद तक अस्‍वीकार्य है। पर यह विद्रोह कुछ न कर पाने की लाचारी के कारण पीड़ाजनक उदासी में कैद होकर रह जाता है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि उत्‍तराखंड राज्‍य का गठन और देहरादून को राजधानी बनाने से पौड़ी को सबसे अधिक घाटा उठाना पड़ा है। एनडी तिवारी के नेतृत्‍व में 2002 में पहली निर्वाचित सरकार बनने के बाद यहां के सभी मंडलीय कार्यालय रातोंरात हैरतअंगेज ढंग से देहरादून शिफ्ट कर दिए गए। मंडलीय मुख्‍यालय का दर्जा तो आज भी पौड़ी को हासिल है, पर मात्र कागजी और दिखावटी। अब यहां कोई मंडलीय अधिकारी नहीं बैठता। कमिश्‍नरी नाम भर को है और हमेशा तालाबंद कैंप कार्यालय स्‍थापित कर कमिश्‍नर साहब भी देहरादून ही बैठते हैं।
शहर में भारी पैमाने पर देहरादून पलायन हो चुका है। अधिकांश पुराने और कद्दावर नगरवासी पौड़ी छोडकर देहरादून जा बसे हैं। बदले में आसपास के गांवों की आबादी शहरीकरण व सुविधाओं के वशीभूत बड़ी संख्‍या में यहां आकर बस गई है। इस अन्तर्प्रान्तीय पलायन ने शहर पर तगड़ा दबाव बढाया है। शीतल जलवायु और पर्वतराज हिमालय की भव्‍यता को निहारने का सुख देने वाला एक निहायत खूबसूरत शहर आज असंतुलित विकास का शिकार होकर रह गया है। ‘बजट खाउू’ साबित हुए उत्‍तराखंड पलायन आयोग का मुख्‍यालय 2017 में पौड़ी में खोलकर सरकार ने मानो जले पर नमक छिडक डाला। मजेदार बात यह है कि आयोग के अध्‍यक्ष महाशय भी देहरादून में ही विराजते हैं।
कुक्‍की भाई की बातों में यही सारी व्‍यथा नए घटनाक्रमों के साथ सामने आती रही है।  इस मर्तबा मिले तो कुशलक्षेम पूछने के बाद आदतन सीधे मुद्दे पर आ गए। कहने लगे-  नेता बहुतेरे देख रहा हूं, पर लीडर और लीडरशिप कहीं नहीं दिख रही है। उनका इशारा पौड़ी के हाल के सालों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की ओर था। बोले- दखिए,  मुलायम सिंह ने अपने क्षेत्र के लिए क्‍या कुछ नहीं किया। लीडर वो होता है जो समुदायों के साथ-साथ अपने इलाके को भी पहचान देता है। हमारे जिले से तो उत्‍तराखंड के चार-चार मुख्‍यमंत्री हुए, पर पौड़ी का हाल आपके सामने है। शहर के विकास से जुड़ी एक भी योजना परवान नहीं चढ सकी। उन्‍होंने बताया कि बस स्‍टेशन से ऊपर निगाह दौड़ाइए। विधायक बने अभी एक साल भी नहीं हुआ कि तीनेक कमरे का छोटा सा घर तीन मंजिल ऊंचा मकान बन गया। इन लोगों की नैतिकता कहां गई। कुछ तो सब्र कर लेते। इधर विधायक बने और उधर संपत्तियां बढ़ने लगीं। समाज में क्‍या मैसेज देना चाहते हैं।
मैंने हंसकर कहा, भाई साहब इन्‍होंने इतना तो किया कि अपने मकान के लिए अपने गृहनगर को ही चुना, वरना तो पिछले सभी देहरादून में कोठियां लगाकर बैठ गए। कुक्‍की भाई जोर से हंसे और बोले- … तो ये जनाब कौन यहां टिकने वाले हैं। हम लोग अगली बार मिलेंगे तो इनके भी दून बंगले का पता-ठिकाना दे दूंगा। हमेशा की तरह संक्षिप्‍त बातचीत कर उन्‍होंने विदा ली और मैं संबंधित तिमंजिला मकान को देखने की जिज्ञासा लिए आगे बढ़ गया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)