मदर टेरेसा और उनके कार्यों का विश्लेषण-1

ओशो ।

मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार मिलने पर ओशो ने मदर टेरेसा के कार्यों का विश्लेषण किया था, जिससे मदर टेरेसा और उनके समर्थक नाराज हो गये थे। मदर ने 1980 के दिसंबर माह के अंत में ओशो को पत्र लिखा। 


 

राजनेता और पादरी हमेशा से मनुष्यों को बांटने की साजिश करते आए हैं। राजनेता बाह्य जगत पर राज जमाने की कोशिश करता है और पादरी मनुष्य के अंदरूनी जगत पर। इन दोनों ने मानवता के खिलाफ गहरी साजिशें मिलकर की हैं। कई बार तो अंजाने ही इन लोगों ने ऐसे कार्य किये हैं। इन्हे खुद नहीं पता होता ये क्या कर रहे हैं। कई बार इनकी नीयत नहीं होती गलत करने की, पर चेतना से रहित उनके दिमाग क्या सुझा सकते हैं?

अभी हाल में मदर टेरेसा ने मुझे एक पत्र लिख भेजा। मुझे उनके पत्र की गंभीरता पर कुछ नहीं कहना। उन्होंने निष्ठा से भरे शब्दों से पत्र लिखा है, पर यह चेतना रहित दिमाग की उपज है। उन्हें स्वयं नहीं ज्ञात है कि वे क्या लिख रही हैं। उनका लिखना यांत्रिक है, जैसे रोबोट ने लिख दिया हो।

वे लिखती हैं, “मुझे अभी आपके भाषण की कटिंग मिली। मुझे आपके लिए बेहद खेद हुआ कि आप ने ऐसा कहा (सन्दर्भ – नोबल पुरस्कार)। आपने मेरे नाम के साथ जो विशेषण इस्तेमाल किये उनके लिए मैं पूरे प्रेम से आपको क्षमा करती हूँ।“

वे मेरे प्रति खेद महसूस कर रही हैं। मुझे उनका पत्र पढ़कर आनंद आया! उन्होंने मेरे द्वारा उपयोग में लाये गये विशेषणों को समझा ही नहीं। वे चेतन नहीं हैं वरना वे अपने प्रति खेद महसूस करतीं मेरे प्रति नहीं। उन्होंने मेरे भाषण की कटिंग भी अपने पत्र के साथ भेजी है। मैंने जो विशेषण इस्तेमाल किये थे, वे थे– धोखेबाज (डेसिवर), कपटी (शार्लटन) और पाखंडी या ढोंगी (हिपोक्रेट) ।

अंतिम परिणाम स्पष्ट है

मैंने उनकी आलोचना की थी और कहा था कि उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए था। और इस बात को उन्होंने अन्यथा ले लिया। अपने पत्र में वे लिखती हैं “सन्दर्भ : नोबल पुरस्कार”। यह आदमी- नोबल- दुनिया के सबसे बड़े अपराधियों में से एक था। पहला विश्वयुद्ध उसके हथियारों से लड़ा गया था, वह हथियारों का बहुत बड़ा निर्माता था।

1979 में मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार मिला

मदर टेरेसा नोबल पुरस्कार को मना नहीं कर सकीं। प्रशंसा पाने की चाह, सारे विश्व में सम्मान पाने की चाह, नोबल पुरस्कार तुम्हें सम्मान दिलवाता है, सो उन्होंने पुरस्कार सहर्ष स्वीकार किया।

इसलिए मैंने मदर टेरेसा जैसे व्यक्तियों को धोखेबाज (डेसिवर) कहा। वे जानबूझ धोखा नहीं देते। निश्चित ही उनकी नीयत धोखा देने की नहीं है। लेकिन यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, अंतिम परिणाम स्पष्ट है। ऐसे लोग समाज में लुब्रीकेंट का कार्य करते हैं ताकि समाज के पहिये, शोषण का पहिया, अत्याचार का पहिया यूँ ही आसानी से घूमता रहे। ये लोग न केवल दूसरों को बल्कि खुद को भी धोखा दे रहे हैं।

और मैं ऐसे लोगों को कपटी (शार्लटन) भी कहता हूँ, क्योंकि एक सच्चा धार्मिक आदमी, जीसस जैसा आदमी, नोबल पुरस्कार पायेगा? असंभव है यह! क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि सुकरात को नोबल पुरस्कार दिया जाए, या कि अल-हिलाज मंसूर को इस पुरस्कार से नवाजे सत्ता? अगर जीसस को नोबल नहीं मिल सकता, और सुकरात को नोबल नहीं मिल सकता, और ये लोग सच्चे धार्मिक, चेतन मनुष्य हैं… तब मदर टेरेसा कौन हैं?

Good Morning Jesus: Mother Teresa's Simplest Advice Heals the Lonely | by Joseph Serwach | Catholic Way Home | Sep, 2020 | Medium

जीसस अपराधी, मदर टेरेसा संत

सच्चा धार्मिक व्यक्ति विद्रोही होता है, समाज उसकी आलोचना करता है, निंदा करता है। जीसस को समाज ने अपराधी करार दिया और मदर टेरेसा को संत कह रहा है। यह बात विचारणीय है, अगर मदर टेरेसा सही हैं तो जीसस अपराधी हैं और अगर जीसस सही हैं तो मदर टेरेसा एक कपटी मात्र हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं। कपटी लोगों को समाज बहुत सराहता है क्योंकि ये लोग समाज के लिए सहायक सिद्ध होते हैं, समाज की जैसी भ्रष्ट व्यवस्था चली आ रही होती है उसे वैसे ही चलने देने में ये लोग बड़ी भूमिका निभाते हैं।

मैंने जो भी विशेषण इस्तेमाल किये वे सोच समझ कर इस्तेमाल किये। मैंने बिना विचारे कोई शब्द इस्तेमाल नहीं करता। और मैंने पाखंडी या ढोंगी (हिपोक्रेट) शब्द का इस्तेमाल किया। ऐसे लोग पाखंडी हैं क्योंकि इनकी आधारभूत जीवन शैली बंटी हुई है। सतह पर एक रूप और अंदर कुछ और रूप।

वे लिखती हैं, ‘प्रोटेस्टेंट परिवार को बच्चा गोद लेने से इसलिए नहीं रोका गया था कि वे प्रोटेस्टेंट थे बल्कि इसलिए कि उस समय हमारे पास कोई बच्चा नहीं था जो हम उन्हें गोद दे सकते थे’।

अचानक सारे अनाथालय खाली हो गये

अब उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए दिया गया है कि वे हजारों अनाथों की सहायता करती हैं और उनकी संस्था में हजारों अनाथालय हैं। अचानक उनके अनाथालय में एक भी बच्चा उपलब्ध नहीं रहता? और भारत में कभी ऐसा हो सकता है कि अनाथ बच्चों का अकाल पड़ जाए?

और उस प्रोटेस्टेंट परिवार को एकदम से इंकार नहीं किया गया था। यदि एक भी अनाथ बच्चा उपलब्ध नहीं था और उनके सारे अनाथालय खाली हो गये थे तो मदर टेरेसा सात सौ ननों का क्या कर रही हैं? इन ननों का काम क्या है? सात सौ ननें? वे किसकी माताओं की भूमिका निभा रही हैं? एक भी अनाथ बच्चा नहीं – अजीब बात है – और वो भी कलकत्ता में! सड़क पर कहीं भी तुम्हें अनाथ बच्चे दिखाई दे जायेंगे– तुम्हें कूड़ेदान तक में बच्चे मिल सकते हैं। उन्हें सिर्फ बाहर देखने की जरुरत थी और उन्हें बहुत से अनाथ बच्चे मिल जाते। तुम आश्रम से बाहर जाकर देखना, अनाथ बच्चे मिल जायेंगें। तुम्हें खोजने की भी जरुरत नहीं, वे अपने आप आ जायेंगें!

अचानक उनके अनाथालय में अनाथ बच्चे नहीं मिलते।… और अगर उस परिवार को एकदम से इंकार किया जाता तब भी बात अलग हो जाती। लेकिन परिवार को एकदम से इंकार नहीं किया गया था, उनसे कहा गया था, ”हाँ, आपको बच्चा मिल सकता है, आवेदन पत्र भर दीजिए”। आवेदन पत्र भरा गया था। जब तक कि परिवार ने अपने सम्प्रदाय का नाम जाहिर नहीं किया था तब तक उनके लिए बच्चा उपलब्ध था। पर जैसे ही उन्होने आवेदन पत्र में लिखा कि वे प्रोटेस्टेंट चर्च को माने वाले मत के हैं, अचानक से मदर टेरेसा की संस्था के अनाथालयों में अनाथ बच्चों की किल्लत हो गयी, बल्कि अनुपस्थिति हो गयी।

और असली कारण प्रोटेस्टेंट परिवार को बताया, पर कैसे? अब यही पाखण्ड है! यही धोखेबाजी है। यह गन्दगी से भरा है। कारण भी उन्हें इसलिए बताना पड़ता है क्योंकि बच्चे वहाँ थे अनाथालयों में। कैसे कहते कि अनाथ बच्चे नहीं हैं? उनकी तो हरदम प्रदर्शनी लगी रहती है वहाँ।

इन अनाथ बच्चों को रोमन कैथोलिक चर्च के रीति रिवाजों और विधि विधान के मुताबिक़ पाला पोसा गया है, और इनके मनोवैज्ञानिक विकास के लिए यह बहुत बुरा होगा अगर उन्हें इस परम्परा से अलग हटाया गया। आपको उन्हें गोद देने का असर उन पर यह पड़ेगा कि उनके विकास की गति  छिन्न भिन्न हो जायेगी। हम उन्हें आपको गोद नहीं दे सकते क्योंकि आप प्रोटेस्टेंट हैं।”

क्योंकि आप प्रोटेस्टेंट हैं…

उन्होंने मुझे भी आमंत्रित किया है: आप किसी भी समय आ सकते हैं और आपका स्वागत है हमारे अनाथालय और हमारी संस्था देखने आने के लिए। उनका सदैव ही प्रदर्शन किया जाता है।

बल्कि, उस प्रोटेस्टेंट परिवार ने पहले ही एक अनाथ बच्चे का चुनाव कर लिया था। अतः वे कह नहीं पायीं ,” हमें खेद है, बच्चे नहीं हैं अनाथालय में”।

उन्होंने परिवार से कहा.” इन अनाथ बच्चों को रोमन कैथोलिक चर्च के रीति रिवाजों और विधि विधान के मुताबिक़ पाला पोसा गया है, और इनके मनोवैज्ञानिक विकास के लिए यह बहुत बुरा होगा अगर उन्हें इस परम्परा से अलग हटाया गया। आपको उन्हें गोद देने का असर उन पर यह पड़ेगा कि उनके विकास की गति  छिन्न भिन्न हो जायेगी। हम उन्हें आपको गोद नहीं दे सकते क्योंकि आप प्रोटेस्टेंट हैं।”

वही असली कारण था। और बच्चा गोद लेने का इच्छुक परिवार कोई मूर्ख नहीं था। पति यूरोपियन यूनिवर्सिटी में प्रोफसर है। वह स्तब्ध रह गया, उसकी पत्नी स्तब्ध रह गयी। वे इतनी दूर से बच्चा गोद लेने आए थे पर उन्हें इंकार कर दिया गया क्योंकि वे प्रोटेस्टेंट थे। यदि उन्होंने आवेदन पत्र में ‘कैथोलिक’ लिखा होता तो उन्हें तुरंत बच्चा मिल जाता।

हिंदू बच्चों को कैथोलिक चर्च के अनुसार पाला

Mother Teresa to be made a saint in September | Mother Teresa | The Guardian

एक और बात समझ लेने की है : ये बच्चे मूलभूत रूप से हिंदू हैं। अगर मदर टेरेसा को इन बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास और हित की इतनी चिंता है तो इन बच्चों का पालन पोषण हिंदू धर्म के अनुसार करना चाहिए। पर उन्हें कैथोलिक चर्च के अनुसार पाला गया है। और इस सबके बद उन्हें प्रोटेस्टेंट परिवार को गोद न देना, और प्रोटेस्टेंट कोई बहुत अलग नहीं है कैथोलिक लोगों से। क्या अंतर है कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में? केवल कुछ मूर्खतापूर्ण अंतर…! (जारी)

(ओशो के अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित)

 

 

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