भारत में कई राज्यों ने साल 2003 में बंद हुआ पुरानी पेंशन व्यवस्था को लाने की घोषणा की है। कई राज्यों में इसकी मंजूरी भी मिल चुकी है। हालांकि, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने इसे सही नही माना है। उनका कहना है कि कुछ राज्यों के इस निर्णय का बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि देश की अधिकांश जनता के पास कोई सामाजिक सुरक्षा का जाल नहीं है। उनके टैक्स के पैसे पर सरकारी कर्मचारियों को यह विशेषाधिकार देना गलत है।आपको बता दें कि पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के तहत कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन मिलती है। एक कर्मचारी पेंशन के रूप में अपने अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत राशि पाने का हकदार है। वहीं, नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत कर्मचारी अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत पेंशन के लिए योगदान करते हैं, जबकि सरकार इसका 14 प्रतिशत हिस्सा देती है। ओपीएस को एनडीए सरकार ने एक अप्रैल 2004 से बंद कर दिया था।

सुब्बाराव ने कहा, “ऐसे देश में जहां अधिकांश लोगों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा जाल नहीं है। सुनिश्चित पेंशन वाले सरकारी कर्मचारी को विशेषाधिकार प्राप्त है। जनता के टैक्स के पैसे से उन्हें और भी अधिक विशेषाधिकार देना नैतिक रूप से गलत और आर्थिक रूप से हानिकारक होगा।”

सुब्बारावने कहा कि यदि राज्य सरकारें ‘पे एज यू गो’ पेंशन योजना पर वापस लौटती हैं तो पेंशन का बोझ मौजूदा राजस्व पर पड़ेगा। इसका मतलब यह हुआ कि स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और सिंचाई जैसी व्यवस्थाओं से हमारा ध्यान भटकेगा।

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारों ने अपने कर्मचारियों के लिए ओपीएस को फिर से शुरू करने के अपने फैसले के बारे में केंद्र सरकार और पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) को सूचित कर दिया है।

पंजाब सरकार ने 18 नवंबर 2022 को एनपीएस के तहत आने वाले राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू करने के संबंध में एक अधिसूचना जारी की। झारखंड ने भी ओपीएस पर लौटने का फैसला किया है।(एएमएपी)