दिल्ली के डिप्टी सीएम और आप नेता मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के खिलाफ सियासत तेज हो गई है। सिसोदिया को झूठे केस में फंसाने का दावा कर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को 8 विपक्षी नेताओं का साथ मिला है। इन दलों में एनसीपी, शिवसेना, सपा, राजद, J-k एनसी भी शामिल हैं। हालांकि, इस पत्र में कांग्रेस, स्टालिन की डीएमके और लेफ्ट पार्टियों से किसी भी नेता के हस्ताक्षर नहीं हैं। इससे स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि विपक्ष में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले एकजुटता दिखाने के प्रयास में जुटीं विपक्षी पार्टियों को लिए यह किसी झटके से कम नहीं है। आईए जानते हैं कि इन पार्टियों के दूरी बनाने के आखिर क्या मायने हैं?कांग्रेस ने क्यों बनाई दूरी?
इस सवाल के जवाब को समझने के लिए कुछ राजनीतिक घटनाओं पर ध्यान देना होगा। 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे। इससे पहले वहां लगातार 15 साल से कांग्रेस की शीला दीक्षित सत्ता पर काबिज थीं। 2013 में आम आदमी पार्टी ने राजधानी की चुनावी राजनीति में एंट्री की और 28 सीटों पर जीत हासिल की। 2008 में 43 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई। 2015 में जब दोबारा चुनाव हुए तो आप का ग्राफ 67 सीटों पर पहुंच गया। बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं। वहीं कांग्रेस शून्य पर आ गई। 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई।

अब दिल्ली से पंजाब का रुख करते हैं। पंजाब में 2017 में हुए चुनाव में 77 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। तब AAP वहां पैर पसार ही रही थी। पार्टी ने उस चुनाव में 20 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2022 आते आते स्थिति पूरी तरह बदल गई। AAP 92 सीटों पर पहुंच गई, तो कांग्रेस सिर्फ 18 पर सिमट गई।

अब गुजरात की बात करते हैं। गुजरात में 2017 में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। तब बीजेपी 99 सीटों के साथ सत्ता में आई थी। जबकि कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2022 में आम आदमी पार्टी ने भी गुजरात में ताल ठोकी। आप भले ही सिर्फ 5 सीटों पर जीतने में सफल रही, लेकिन सीधे तौर पर उसने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई। 2017 में जहां कांग्रेस को 42।2% वोट मिला था। वही, 2022 में सिर्फ 27% रह गया। आप को 13।1% वोट मिला।

इन तीनों नतीजों को देखकर साफ तौर पर कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने सीधे तौर पर न सिर्फ कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया, बल्कि दो राज्यों में उससे सत्ता भी छीन ली। दिल्ली और पंजाब कांग्रेस के हाथ से फिसल कर AAP की झोली में पहुंच गए। वहीं गुजरात में भी आप ने कांग्रेस के वोट काटे।

AAP-कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आमने सामने

अरविंद केजरीवाल जब अन्ना के आंदोलन से राजनीतिक पार्टी बना रहे थे, तब उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस पर खूब निशाना साधा था। अब जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं, तो कांग्रेस इस मौके को हाथ से गंवाना नहीं चाहती। यही वजह है कि कांग्रेस शराब नीति के मुद्दे पर न सिर्फ अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार पर निशाना साध रही है। बल्कि पंजाब में भी शराब नीति में जांच की मांग कर रही है। जब सिसोदिया गिरफ्तार हुए तो कांग्रेस ने आप के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया था। साथ ही सिसोदिया के इस्तीफे की मांग भी की थी।

आप और कांग्रेस ने एक दूसरे पर साधा निशाना

आम आदमी पार्टी ने सिसोदिया की गिरफ्तारी के मुद्दे पर साथ नहीं खड़े होने पर कांग्रेस की आलोचना की। आप नेता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और भाजपा दोनों चाहते हैं कि अन्य सभी राजनीतिक दलों का अस्तित्व समाप्त हो जाए। भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस कभी भी विपक्ष के साथ नहीं खड़ी होती है और केवल देश को मूर्ख बनाने के लिए भाजपा के साथ वाकयुद्ध करती है।

उधर, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि कांग्रेस शराब घोटालों की उचित जांच चाहती है। उन्होंने आम आदमी पार्टी पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, हम आप से पूछना चाहते हैं कि वे चुप क्यों थे, जब एजेंसियों ने हमें परेशान किया तो उनका क्या रुख था। सुप्रिया श्रीनेत का इशारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई की ओर था। जब इस मामले में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का समर्थन नहीं किया था।

डीएमके और लेफ्ट ने क्यों बनाई दूरी?

कांग्रेस के अलावा डीएमके और लेफ्ट ने भी इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी से दूरी बना ली। डीएमके चीफ स्टालिन ने हाल ही में अपना जन्मदिन मनाया था। इस दौरान तमाम विपक्षी दलों को न्योता भेजा गया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम केसीआर और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को न्योता नहीं भेजा गया था। दरअसल, तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस की गठबंधन में सरकार है। यही वजह है कि स्टालिन पहले भी कांग्रेस विरोधी दलों से लगातार दूरी बनाते नजर आए हैं। उधर, केजरीवाल को ममता बनर्जी का खुले तौर पर समर्थन मिल रहा है। ऐसे में लेफ्ट पार्टियों ने टीएमसी से पुरानी राजनीतिक अदावत को ध्यान में रखकर केजरीवाल से दूरी बनाकर रखी है। (एएमएपी)