मदर टेरेसा और उनके कार्यों का विश्लेषण- 3 एवं अंतिम
ओशो ।
मैं गरीब लोगों की सेवा नहीं करना चाहता। मैं उनकी मैं गरीबी को समाप्त करके उन्हें समर्थ बनाना चाहूँगा। बहुत हो चुकीं ऐसी बेतुकी बातें। मेरी रूचि उन्हें गरीब बनाए रखने में नहीं है जिससे कि मैं उनकी सेवा करके लोगों की निगाह में पुण्य कमाऊं।
उनकी गरीबी दूर होना मेरे लिए ज्यादा आनंद का विषय है। दस हजार सालों से मूर्ख गरीब लोगों की सेवा करते आए हैं पर इससे कुछ नहीं बदला। अब हमारे पास समर्थ टेक्नोलॉजी है जिससे हम गरीबी समाप्त करने में सफलता पा सकें।
ज़रा इनका अहंकार देखिये
तो अगर किसी को क्षमा किया जाना चाहिए तो इसके पात्र ये लोग हैं। पोप, मदर टेरेसा आदि-इत्यादि लोगों को क्षमा किया जाना चाहिए। ये लोग अपराधी हैं पर इनका अपराध देखने समझने के लिए तुम्हें बहुत बड़ी मेधा और सूक्ष्म बुद्धि चाहिए। ज़रा इनका अहंकार देखिये, दूसरों से बड़ा होने का अहं। वे कहती हैं, ”मैं तुम्हें क्षमा करती हूँ, मुझे तुम्हारे लिए बड़ा खेद है”। वे प्रार्थना करती हैं, ”ईश्वर की अनुकम्पा आपके साथ हो और आपका ह्रदय प्रेम से भर जाए”।
बकवास है यह सब!
मैं किसी ऐसे ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो मानव जैसा होगा। जब ऐसा ईश्वर है ही नहीं तो वह कृपा कैसे करेगा मुझ पर या किसी और पर? ईश्वरत्व को केवल महसूस किया जा सकता है। ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है जिसे पाया जा सके या जीता जा सके। यह तुम्हारी ही शुद्धतम चेतनता है। और ईश्वर को मुझ पर कृपा क्यों करनी चाहिए? मैं ही तुम्हारी कल्पना के सारे ईश्वरों पर कृपा बरसा सकता हूँ। मुझे किसी की कृपा के लिए प्रार्थना क्यों करनी चाहिए? मैं पूर्ण आनंद में हूँ मुझे किसी कृपा की आवश्यकता है ही नहीं। मुझे विश्वास ही नहीं है कि कहीं कोई ईश्वर है। मैंने तो हर जगह देख लिया मुझे कहीं ईश्वर के होने के लक्षण नजर नहीं आए। यह ईश्वर केवल सत्य से अनजान लोगों के दिमाग में वास करता है। ध्यान रखना मैं नास्तिक नहीं हूँ। पर मैं आस्तिक भी नहीं हूँ।
ईश्वर मेरे लिए कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक उपस्थिति है, जिसे केवल ध्यान की उच्चतम और सबसे गहरी अवस्था में ही महसूस किया जा सकता है। उन्ही क्षणों में तुम्हें सारे अस्तित्व में बहता ईश्वरत्व महसूस होता है। कोई ईश्वर कहीं नहीं है लेकिन ईश्वरत्व है!
ईश्वररहित और ईश्वरीय
मैं गौतम बुद्ध के बारे में कहे गये एच जी वेल्स के बयान को प्रेम करता हूँ। उसने कहा था,” गौतम बुद्ध सबसे बड़े ईश्वररहित व्यक्ति हैं लेकिन साथ ही वे सबसे बड़े ईश्वरीय व्यक्ति हैं।
यही बात तुम मेरे बारे में कह सकते हो: मैं ईश्वररहित व्यक्ति हूँ लेकिन मैं ईश्वरीयता को जानता हूँ।
ईश्वरीयता एक सुगंध जैसी है, परम आनंद का अनुभव, परम स्वतंत्रता का अनुभव। तुम ईश्वरीयता के सामने प्रार्थना नहीं कर सकते। तुम इसका चित्र नहीं बना सकते। तुम यह नहीं कह सकते कि ईश्वर तुम्हारा भला करे- और ऐसा तो खास तौर पर नहीं कह सकते– कि ईश्वर की कृपा तुम्हारे साथ रहे पूरे 1981 के दौरान! तब 1982 का क्या होगा?
महान साहस, महान साझेदारी- ऐसी उदारता!
“…और तुम्हारा ह्रदय प्रेम से भर जाए”। मेरा ह्रदय प्रेम के अतिरेक से पहले ही भरा हुआ है। इसमें किसी और के प्रेम के लिए जगह बची ही नहीं। और मेरा ह्रदय किसी और के प्रेम से क्यों भरे? उधार का प्रेम किसी काम का नहीं। ह्रदय की अपनी सुगंध होती है।
लेकिन इस तरह की बकवास को बहुत धार्मिक माना जाता है। वे इस आशा से यह सब लिख रही हैं कि मैं उन्हें बहुत बड़ी धार्मिक मानूंगा। लेकिन जो मैं देख पा रहा हूँ वे एक बेहद साधारण, औसत इंसान हैं जो कि आप कहीं भी पा सकते हैं। औसत लोगों से अटी पड़ी है धरती।
मैं उन्हें मदर टेरेसा कह कर पुकारता रहा हूँ पर मुझे उन्हें मदर टेरेसा कह कर पुकारना बंद करना चाहिए क्योंकि हालांकि मैं कतई सज्जन नहीं हूँ पर मुझे समुचित जवाब तो देना ही चाहिए। उन्होंने मुझे लिखा है- मि. रजनीश, तो अब से मुझे भी उन्हें मिस टेरेसा कह कर संबोधित करना चाहिए। यही सज्जनता भरा व्यवहार होगा।
अहंकार पिछले दरवाजे से आ जाता है। इसे बाहर निकाल फेंकने का प्रयत्न मत करो।
देखते ही गुस्से में आग बबूला हो गयीं
कलकत्ते से मुझे एक न्यूज-कटिंग मिली है। पत्रकार ने बताया कि वह मदर टेरेसा के बारे में मेरे बयान – कि वे बेतुकी हैं- की कटिंग लेकर मदर टेरेसा के पास गया। वे कटिंग देखते ही गुस्से में आग बबूला हो गयीं और कटिंग फाड़ कर फेंक दी। वे इतनी क्रोधित थीं कि कोई बयान देने के लिए तैयार नहीं हुईं। पर बयान तो उन्होने दे दिया- कटिंग को फाड़ कर।
पत्रकार ने कहा, ”मैं तो हैरान हो गया उनका बर्ताव देखकर। मैंने उनसे कहा कि कटिंग तो मेरी थी और मैं तो उस बयान पर उनकी प्रतिक्रिया जानने उनके पास गया था”।
और ये लोग समझते हैं कि वे धार्मिक हैं। वास्तव में कटिंग फाड़ कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि मैंने जो कुछ उनके बारे में कहा था वह सही था : कि वे औसत और बेतुकी हैं। अब कटिंग फाड़ना एक बेतुकी बात है।
अब मुझे तो दुनिया भर से इतने ज्यादा कॉम्प्लीमेंट्स – “इनवर्टेड कौमाज़” वाले- मिलते हैं कि अगर मैं उन सबको फाड़ने लग जाऊं तो मेरी तो अच्छी खासी एक्सरसाइज इसी हरकत में हो जाए। …और तुम्हें पता ही है एक्सरसाइज मुझे कितनी नापसंद है।
(ओशो के अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित)
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