भ्रष्टाचार की जांच से क्यों डर रहा विपक्ष।
प्रदीप सिंह।
अंधेरे से सबको डर लगता है। और जब जीवन के ही अंधेरे में जाने की आशंका हो तो स्वाभाविक है कि डर ज्यादा ही होता है। दोनों मामलों में लोग चिल्लाते हैं। उन्हें लगता है कि चिल्लाने से डर भाग जाएगा। वह भागेगा कहां, वह तो आपके अंदर ही है। देश में विपक्ष के कई नेता आजकल डरे हुए हैं। इसलिए चिल्ला रहे हैं। वे जानते हैं कि इससे बच नहीं पाएंगे। पर सबसे आसान होता है अपने मन को बहलाना। तो संसद से सड़क तक विपक्ष का जो रवैया दिख रहा है वह मन के बहलाने को खयाल अच्छा है गालिब, वाला मामला है।
विपक्ष के नेताओं की जिद
ये हंगामा क्यों बरपा है। भ्रष्टाचार की जांच से इतनी बेचैनी है, जैसे कोई सल्तनत छीन रहा हो। कहीं यह चोर मचाए शोर वाला मामला तो नहीं है। देश का कानून है कि जब तक कोई दोषी सिद्ध नहीं होता, वह निर्दोष है। पर प्रश्न तो यह है कि साबित होगा कैसे? क्या बिना जांच के यह संभव है। जाहिर है कि दोषी या निर्दोष साबित करने की पहली सीढ़ी जांच है। उसके बाद ही अदालत उस जांच को कानून के तराजू पर तौल कर अपना फैसला सुनाएगी। विपक्ष के नेताओं की जिद है कि बिना जांच के हमें निर्दोष घोषित करो। सरकार ऐसा नहीं करती है तो वह तानाशाह है। तो प्रधानमंत्री को यदि जनतांत्रिक नेता के रूप में पहचान बनाए रखनी है तो जांच ही नहीं जांच एजेंसियों को ही बंद कर दें।
अघोषित ‘समझौता’!
राजनीतिक लोगों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की इतने बड़े पैमाने पर जांच इससे पहले कभी नहीं हुई। उसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि राजनीतिक दलों में एक अघोषित समझौता था कि, एक दूसरे के भ्रष्टाचार की अनदेखी करेंगे। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस समझौते को मानने से मना कर दिया। सार्वजनिक एलान कर दिया कि न खाउंगा और न खाने दूंगा। लोगों को नारे के पहले हिस्से से कोई समस्या नहीं थी। पहले लोगों को लगा कि यह चुनावी भाषण बाजी है इसलिए गंभीरता से नहीं लिया। फिर धीरे धीरे समझ में आया कि ये तो अपनी घोषणा पर अमल भी कर रहे हैं। तो अब पूरे विपक्षी खेमे में खलबली है। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा था कि जो विपक्षी एकता नेता नहीं करा सके वह ईडी ने करा दी। विपक्ष ने उनकी बात को सच साबित कर दिया।
न सरकार से राहत, न अदालत से
जो दल और नेता एक दूसरे के साथ खड़े होना भी पसंद नहीं करते वे भ्रष्टाचार की जांच के विरोध में गले मिलने को तैयार हैं। उन्हें लग रहा है कि यह उनके अस्तित्व का सवाल है। सरकार से डरे ही हुए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने और डरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली अदालतों से कहा है कि वे भ्रष्टाचार के मामलों में सख्ती बरतें। न सरकार से राहत मिल रही और न ही अदालत से राहत की उम्मीद नजर आ रही है। आधार दर्जन से ज्यादा नेता महीनों से जेल में हैं और जमानत मिलने के आसार नहीं दिख रहे। पहली बार देश में ऊपर से और ऊपर वालों पर के भ्रष्टाचार पर ऐसा प्रहार हो रहा है।
बचाव के हथियार
विपक्ष के पास अपने बचाव के दो हथियार हैं। एक, मोदी सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों का राजनीतिक दुरुपयोग कर रही है। दूसरा, केवल विपक्ष के नेताओं के खिलाफ ही भ्रष्टाचार की जांच क्यों हो रही है। इसका मतलब है कि यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। जहां तक पहले प्रश्न का उत्तर है तो जांच एजेंसियों का दुरुपयोग या उपयोग तो अदालत में ही साबित होगा। यह नेताओं के बयान से तो होने वाला नहीं। अब रहा दूसरा प्रश्न कि विपक्ष ही क्यों? मतलब ये कि विपक्ष का सारा आरोप पक्षपात का है। क्या इसका मतलब यह समझा जाय कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं की भी जांच हो तो एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप वापस। पहली बात तो यह कि भ्रष्टाचार की जांच कोई सत्य नारायण भगवान की कथा का प्रसाद तो है नहीं कि सबको मिलना चाहिए। एक दर्जन राज्यों में गैर भाजपा दलों की सरकारें हैं उन्हें भाजपा नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच से किसने रोका है। दस साल कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार रही तो किसी भाजपा नेता के भ्रष्टाचार की जांच क्यों नहीं की। इसके दो ही अर्थ हैं। एक, भाजपा के किसी नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला बनता ही नहीं है। दूसरा, भाजपा के ऐसे नेताओं से कांग्रेस की मिलीभगत थी। अब कांग्रेस ही बताए कि सच क्या है।
लोग मान बैठे थे- सब मिले हुए हैं
इस पूरे प्रकरण में सबसे अच्छी बात क्या है। आप कहेंगे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ किसी ने तो जांच शुरु की। बात सही है, वरना लोग मान बैठे थे कि सब मिले हुए हैं। पर मेरी नजर में उससे भी बड़ी बात है, भ्रष्टाचारियों में कानून का डर। पिछले नौ साल में टेक्नालॉजी का इस्तेमाल इतने बड़े पैमाने पर बढ़ा है कि बहुत से मामलों भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही खत्म हो गई है। ये काम वही कर सकता है जिसने न खाने और न खाने देने का वास्तविक प्रण लिया हो। आजाद भारत इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि एक सरकार नौ साल से लगातार सत्ता में है और उस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। विपक्ष झूठी कहानी गढ़ कर लाता है वह कानून और जनता की अदालत से खारिज हो जाती है। और उस पर लगे आरोप न कानून की अदालत खारिज करती है और न ही जनता की अदालत।
जब कुछ न सूझे तो गाली
विपक्ष की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि वह न तो अपने दाग छिपा पा रहा है और न ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कोई दाग लगा पा रहा है। उसकी रणनीति है कि जब कुछ न सूझे तो गाली दो। आपने हाथी को चलते हुए देखा होगा। उसके पीछे कुत्ते भौंकते हुए चलते हैं। पर हाथी कभी पलट कर जवाब नहीं देता। वह जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है फिर भी जवाब नहीं देता। यहां हाथी और कुत्ते का इस्तेमाल रूपक के रूप में किया गया है। कोई इसे अपने ऊपर न ले। तो भ्रष्टाचार की जांच तो रुकने वाली नहीं है। पर दिल्ली से लंदन तक आपको यह करुण क्रंदन कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो सुनाई देगा ही। राहत की कोई उम्मीद तब तक नहीं है, जब तक मतदाता हाथी को गणेश रूप में स्वीकार करके, हाथ जोड़े खड़ा रहेगा।
(आलेख ‘दैनिक जागरण’ से साभार)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)