अखिलेश यादव ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का संकल्प लेते हुए सियासी हवाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू कर दी हैं। अधिकतम सीटें जीतने को कार्ययोजना उन्होंने कोलकाता में बना ली है जिस पर अमल अब यूपी में करने की तैयारी है। इस मुहिम के तहत वह कांग्रेस और बसपा को किनारे करने में जुट गए हैं। इन दोनों को भाजपा जैसा बताने की उनकी कोशिश कितना रंग लाएगी और वह इसके जरिए गैर-भाजपाई वोटों में कितना ध्रुवीकरण अपने पक्ष में कर पाते हैं, इस सवाल का जवाब आने वाले वक्त में मिलेगा।यूपी में सपा को भाजपा के मुकाबले एकमात्र विपक्ष के तौर पर वह बताते रहे हैं और इसके जरिए सपा राष्ट्रीय राजनीति में तीसरा मोर्चा बना रहे नेताओं को समझाने में लगी है कि यूपी में जब तक भाजपा को शिकस्त नहीं दी जाएगी तब तक राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हटा पाना मुश्किल होगा। यूं तो कांग्रेस से सपा के रिश्तों में बहुत मधुरता भी नहीं तो बहुत तल्खी भी नहीं रही। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के लिए अखिलेश यादव ने सद्भावना शुभकामना भी जताई थीं। इधर कुछ समय से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का रुख कांग्रेस के प्रति आक्रामक होने लगा, उसका असर सपा के रुख पर दिखने लगा। कोलकाता कार्यकारिणी से पहले से सपा से साफ कर दिया कि वह रायबरेली और अमेठी सीट कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ेगी। हाल में बसपा के प्रति भी अखिलेश के रवैये में कठोरता आई है।
अखिलेश ने एक ओर राम चरित मानस की चौपाइयों पर प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को ज्यादा तवज्जो न देने का संदेश दिया है, वहीं खुद को आस्थावान हिंदू धार्मिक मान्याताओं को मानने वाले शख्स के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है। सपा अपने जातीय समीकरण को भी पुख्ता बनाए रखना चाहती है। दलित वोटों में वह बसपा की हिस्सेदारी खत्म करने की कोशिश में है।

लोकसभा की सभी सीटों पर जुटने का आह्वान
अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं से 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य लेकर चलने को कहा। उन्होंने यह बातें मंगलवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता अवधेश प्रसाद के साथ आए कार्यकर्ताओं से कहीं। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता बूथस्तर तक संगठन को मजबूत करें।(एएमएपी)



