एक राजनीति यह भी…।

रामकृपाल सिंह
चाहे जिस भी स्तर की हो, बचकानी हरकतें हास्य तो पैदा करती ही हैं। ऐसा ही कुछ इस बार छत्तीसगढ़ में हुए कांग्रेस अधिवेशन में छपे पोस्टर को देखकर हुआ।
इस पोस्टर में मौलाना अबुल कलाम आजाद की तस्वीर नहीं है लेकिन यह निश्चय ही एक भूल थी। इस पोस्टर में सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और डॉक्टर अंबेडकर भी हैं जो शायद पहली बार कांग्रेस के किसी पोस्टर में छपे हैं। सुभाष चंद्र बोस से तो नेहरू की नफरत जगजाहिर है। (यह नेहरु को लिखे पत्र में सुभाष जी ने खुद कहा है) और अंबेडकर तथा पटेल को कांग्रेस ने कभी महत्त्व नहीं दिया। इसका प्रमाण यह है कि नेहरू जी ने भारत रत्न शुरुआती दौर में स्वयं ही ले लिया लेकिन पटेल और अंबेडकर को भारत रत्न आजादी के करीब पैंतीस-चालीस साल बाद तब मिला जब गांधी परिवार सत्ता के बाहर हुआ।

नफरत की सीमा तक नाराजगी

लेकिन सबसे ज्यादा रोचक उक्त पोस्टर में भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव की तस्वीर लगी। श्री नरसिम्हा राव से गांधी परिवार नफरत की सीमा तक नाराज था। यहां तक कि उनके प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद गांधी परिवार के भय के कारण शायद ही कोई कांग्रेसी उनसे मिलने जाता था।
जब नरसिम्हा राव की मृत्यु हुई उस समय श्री मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और सत्ता की डोर सोनिया के हाथ में थी। नरसिम्हा राव के परिवार वाले उनका दाह- संस्कार दिल्ली में करना चाहते थे लेकिन सोनिया अड़ गईं और इसकी अनुमति नहीं दी। तब श्री राव का पार्थिव शरीर मजबूरन उनके परिवार वाले हैदराबाद ले गए।
इतना ही नहीं स्वर्गीय नरसिम्हा राव और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में अत्यंत निकट की मित्रता थी। श्री राव की मृत्यु पर श्री मनमोहन सिंह उनके निवास पर मातमपुर्सी करने चले गए। इसके लिए श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बुरी तरह फटकार लगाई। (इस घटना का विवरण श्री मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहकार ने अपनी पुस्तक में लिखा है)

एकाएक श्रद्धा उमड़ने का कारण

नरसिम्हा राव से इस सीमा तक नफरत और आज कांग्रेस के पोस्टर में उनकी तस्वीर? एकाएक श्री राव के प्रति कांग्रेस  की इतनी श्रद्धा कैसे उमड़ पड़ी?
कोई खास कारण नहीं है, बस इतना ही है कि श्री नरसिम्हा राव तेलंगाना  के थे और कुछ महीने बाद ही वहां विधानसभा का चुनाव होना है।(स्वतंत्र विचारक एवं राजनीतिक विश्लेषक रामकृपाल सिंह शुरू में माकपा से जुड़े और बाद में कांग्रेस के मुखपत्र ‘नया भारत’ के संपादक भी रहे। 11 मार्च 2023 को लखनऊ में उनका निधन हो गया। यह आलेख उनकी सोशल मीडिया पोस्ट से लिया गया है। )