बता दें कि गुरुवार को जैसे ही न्यायिक सुधार बिल इजरायली संसद से पास हुआ, नेतन्याहू के रक्षा मंत्री ने इसका विरोध किया और प्रधानमंत्री से इसे टालने का अनुरोध किया लेकिन पीएम नेतन्याहू ने रक्षा मंत्री को पद से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद पहले से ही आंदोलन कर रहे आमजन उग्र हो गए।
उग्र प्रदर्शनकारी यरूशलम में पीएम नेतन्याहू के आवास के बाहर तक जा पहुंचे थे। उन्हें हटाने के लिए पुलिस को वाटर कैनन का भी इस्तेमाल करना पड़ा था। विरोध-प्रदर्शनों को देखते हुए चिंतित राष्ट्रपति इसाक हर्जोग ने पीएम नेतन्याहू से न्यायिक सुधार योजना की प्रक्रिया को तत्काल रोकने की अपील की थी। इसके बाद पीएम ने ऐलान किया। नेतन्याहू ने कहा कि उन्होंने वास्तविक संवाद को अवसर देने के लिए ही विवादास्पद कानून पर फिलहाल आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है।
इजरायल में न्यायिक सुधार लागू होता तो क्या बदलाव आते:-
- कानूनों की समीक्षा और उन्हें खारिज करने की सुप्रीम कोर्ट की ताकत घट जाती।
- संसद में बहुमत के जरिए कोर्ट के फैसलों को बदला जा सकता।
- बदलावों से जजों को नियुक्ति करने वाली कमेटी में सरकार का प्रतिनिधित्व बढ़ जाता और सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों में जजों की नियुक्ति में भी सरकार का फैसला निर्णायक होता।
- मंत्रियों के लिए उनके कानूनी सलाहकारों की सलाह मानना जरूरी नहीं रह जाता। अभी उन्हें ये सलाह माननी पड़ती है। ये कुछ प्रमुख बदलाव प्रस्तावित थे, जिसका विरोध हो रहा है।
न्यायिक सुधार का क्यों हो रहा विरोध
पीएम नेतन्याहू के आलोचक इसे न्यायपालिका को सरकार और संसद के अधीन लाने की कोशिश बता रहे हैं। आलोचकों का यह भी मानना है कि ये कानून नेतन्याहू के लिए बनाए जा रहे थे ताकि उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाया जा सके। कानूनी बदलावों को लेकर इजरायल दो धड़ों में बंट चुका था।(एएमएपी)