पुराने साथी और मित्र सुमित अवस्थी को बधाई देकर अपने ही शुभचिंतकों के कोपभाजन बन गए कार्टूनिस्ट इरफान
अजय विद्युत ।
सोशल मीडिया अब सोशल नहीं रहा। वह वैचारिक हिंसा फैलाने का औजार बन गया है। वहां के गुंडे समाज में मिलने वाले गुंडे बदमाशों से कम खतरनाक कतई नहीं हैं। इरफान जाने माने कार्टूनिस्ट हैं, तमाम बड़े मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। उनकी एक विचारधारा है। हरेक की होती है। कट्टरता या मेरा ही पक्ष सही है- ऐसा हिंसात्मक दुराग्रह न हो, तो हरेक की विचारधारा का सम्मान होना चाहिए। असहमति हो सकती है। लेकिन भाषाई अभद्रता बरतना और किसी का चरित्रहनन करना अब पढ़े लिखे आभासी मित्रों का नया शगल बन गया है। संभवतः इरफ़ान के तमाम मित्रों को लगा कि वे एक विचारधारा से अलग विचार रखने वालों से दोस्ती कैसे रख सकते हैं।
बात इतनी सी थी कि इरफ़ान ने फेसबुक पर अपने एक मित्र को उनकी उपलब्धि पर बधाई दी। इरफ़ान के कुछ फेसबुक फ्रेंड्स उनके मित्र की विचारधारा से सहमत नहीं थे या उससे अलग विचारधारा के पक्षधर थे। बस वे इरफ़ान की लानत मलामत पर पूरे जोश खरोश के साथ उतर पड़े।
ये सब क्या है?
बेजा बातें सुनकर चुप रह जाना शराफत नहीं कायरता का लक्षण है। आखिर आजिज आकर इरफ़ान को एक और पोस्ट लिखनी पड़ी-
‘मेरे पत्रकार मित्र सुमित अवस्थी के एबीपी न्यूज़ का सम्पादकीय हेड बनने पर मैंने बधाई दी, जो मेरे और उनके बीच विशुद्ध व्यक्तिगत रिश्तों के कारण दी गयी थी। लेकिन मेरी यह बात यहाँ मेरे बहुत सारे तथाकथित ‘शुभचिंतको’ पसंद नहीं आई। किसी ने इसे मेरा अपना पीआर करना बताया, किसी ने इसे मेरी दोस्ती का सार्वजानिक प्रचार करने का मकसद बताया। अगर यह मेरा अपना स्वयं का पीआर करना है तो अपने बेटे, बिटिया, पोते के जन्मदिन पर आपमें से बहुत से लोग यहाँ सार्वजानिक रूप से आकर आशीर्वाद मांगते है, वह क्या है?’
आपने और आपकी पत्नी ने ‘महान’ कार्य किया
‘आपकी बेटी ने कक्षा 12 में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किये, या आपने और आपकी पत्नी ने साथ में जीवन के कई साल गुज़ार कर एक महान कार्य किया है- ये सब क्या है? क्या यह घर की चारदीवारी में खुश होने की बात नहीं? उसे फेसबुक पर आप क्यूँ लाते हैं? जिस तरह आपको मेरा, मेरे एक मित्र को बधाई देना (जिसमे मैंने आपको उन्हें बाधाई देने को नहीं कहा) अच्छा नहीं लगा। वैसे ही मुझे भी आपका अपने लिए, आपके परिवार के लोगों के लिए सार्वजानिक मंच पर आकर आशीर्वाद मांगना अच्छा नहीं लगता। यह बात मैंने आपकी पोस्ट पर आकर तो कभी नहीं कही। रही चाटुकारिता करने वाली बात, तो चाटुकारिता तो तब होती, जब मैं सुमित अवस्थी की एंकरिंग के लिए उनकी तारीफ के झंडे गाड़ता। चलिए, अगर मैं ऐसा करता भी हूँ, तो यह मेरा अपना नजरिया है, जैसा आपका उनकी एंकरिग को लेकर है। अक्सर वैचारिक मतभेद के बाद भी पॉलिटिशियन एक दुसरे को मुबारकबाद देते हैं, तो क्या वह अपनी पार्टी से गद्दारी करते हैं, या वह अपनी विचारधारा का अपमान करते हैं।‘
तब कहीं नहीं नज़र आते
‘हैरत की बात है कि आज अचानक ही जिस तरह यहाँ झंडाबरदार मुझे टारगेट कर रहे हैं, वह तब कहीं नहीं नज़र आते, जब तथाकथित फासिस्ट अक्सर मेरे किसी कार्टून पर मेरे खिलाफ आकर हमलावर होते हैं। मुझे ‘पाकिस्तानी दलाल’, ‘कांग्रेसी और वामपंथी चमचा’, ‘कटवा’, ’मुल्ला’ जैसे शब्द प्रयोग करते हैं। तब मैं अकेला ही भिड़ता हूँ। मैं अपने कार्टूनों में किसीको नहीं बख्शूंगा, लेकिन यह भी है कि अगर कोई शख्स कोई तारीफ का काम करेगा- भले ही वह मेरी विचारधार से मेल नहीं खाता हो- उसकी तारीफ़ भी करूगा।’
बरसों के याराने गए
दिक्कत यह है कि फेसबुक- या कोई भी सोशल साइट हो- आपके मित्र आपको लेकर एक धारणा बना लेते हैं। जब तक आप उनके भावों या विचारों का पोषण करते हैं तब तक तो लाइक, प्रशंसात्मक कमेंटों का दौर चलता है। लेकिन जहां आपने उनकी विचारधारा से अलग कोई बात की, वे अपने चेहरे में प्रकट हो जाते हैं। एक गाना था- एक जरा सी बात पर बरसों के याराने गए, लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए।
इरफान की पोस्ट पर उनके कुछ ‘मित्रों’ की प्रतिक्रियाएं देखिए-
वीरेंद्र सेंगर- इरफान भाई ! आप अच्छे कार्टूनिस्ट हैं लंबी पारी खेल रहे हैं। बधाई! आप अपना पीआर कर रहे हों, तो अकेले में कीजिए। इतने बड़े मंच पर गोदी मीडिया के एक चंपू एंकर की तारीफ आपके सौजन्य से अच्छी नहीं लगी। ये बात कुछ तकलीफ से कह रहा हूं। क्योंकि एक पत्रकार की इतनी आलोचना, एक पत्रकार खुशी से नहीं कर सकता। इन लोगों के कारनामे से पूरी मीडिया शर्मसार हुई है। आपको नहीं लगता?
वसीम अकरम त्यागी- आपके दोस्त हैं इसलिए मैं नहीं कह रहा हूं कि वे एक घटिया सांप्रदायिक एंव कुंठित एंकर हैं।
किशोर श्रीवास्तव– दो विपरीत ध्रुव। ऐसे साम्प्रदायिक नफरतियों से भी आपकी दोस्ती है और हम जैसे प्रेम-भाईचारे के पक्षधर, बचपन के साथी पीछे रह जाते हैं।
जहरपगे दोस्तों को नमस्ते!
एक शरीफ आदमी क्या करे। आखिर थक हारकर इरफान को भी ऐेसे जहरपगे दोस्तों को नमस्ते करनी पड़ी। लेकिन भाषा की मर्यादा वहां भी नहीं लांघी-
‘जिन लोगों को मेरी राय से इत्तेफाक नहीं है, वह बराए मेहरबानी मेरे पेज पर नहीं आयें। अपने उपदेश अपने पेज पर ही दें। शुक्रिया।‘