संयुक्त विपक्ष या G-8, आगे का रास्ता क्या है?
कांग्रेस इसे विपक्षी एकजुटता तो बता रही है लेकिन क्या बाकी अन्य दल भी कांग्रेस के साथ आएंगे? कांग्रेस अध्यक्ष मलिकर्जुन खड़गे का तो कहना यह है कि विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए एक साथ आना जारी रखेंगे। खड़गे ने पीएम मोदी के उस दावे का भी खंडन किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2024 का लोकसभा चुनाव जीतेगी। लेकिन वहीं आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘संयुक्त विपक्ष (19 दलों का) अडानी समूह के मुख्य मुद्दे तक ही सीमित है।’ यह कांग्रेस पार्टी द्वारा पेश की जा रही तस्वीर के बिल्कुल विपरीत है।
इस विपक्षी एकजुटता के भी नेतृत्व की अगर बात की जाए तो गैर-यूपीए विपक्षी दल भी इससे ज्यादा प्रभावित नजर नहीं आए। चाहे वह बीआरएस के के. केशव राव हों या आम आदमी पार्टी (आप) के संजय सिंह, उन्होंने सुनिश्चित किया कि एकजुट विपक्षी मंच में उनकी मौजूदगी 2024 के मुद्दे को लेकर नहीं है। हां, वे 2024 में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार तो हैं लेकिन इसका ये मतलब ना निकाला जाए कि वो इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़े हैं।
क्या सभी विपक्षी दलों को मंजूर होगा कांग्रेस का नेतृत्व?
विपक्षी एकजुटता के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही यह मुद्दा भी सुलझ जाएगा। कांग्रेस सांसद हुसैन ने इंडिया टुडे से कहा, ‘जब विपक्षी दल कुछ मुद्दों को उठाने के लिए एक साथ आते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने वैचारिक मतभेदों को छोड़ देंगे। मतभेद होंगे, नेतृत्व का सवाल वहीं रहेगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘चुनावों की घोषणा होने पर नेतृत्व के सवाल का जवाब दिया जा सकता है। फिलहाल, विपक्षी दल राष्ट्र से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक साथ आए हैं। 19 राजनीतिक दल अपने-अपने क्षेत्रों में और कुछ तो राष्ट्रीय स्तर प्रासंगिक हैं। फिलहाल विपक्ष के तमाम दल एक साथ आए हैं। इनमें टीएमसी, आप और बीआरएस जैसे राजनीतिक दल भी शामिल हैं।’

G-8 के नेताओं ने किया किनारा
हालांकि, जहां तक बीआरएस और आप का संबंध है, वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि वर्तमान एकता अडानी मुद्दे तक ही सीमित है। इस मामले को लेकर आप सांसद संजय सिंह ने कहा, ‘अडानी-मोदी मुद्दे पर 19 विपक्षी पार्टियां एक साथ आ गई हैं। मोदी सरकार द्वारा अपना पक्ष रखने के लिए किए गए लाखों करोड़ के वित्तीय घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाना चाहिए।’ अडानी के माध्यम से राजनीतिक शासन बरकरार है… इस संयुक्त विपक्षी मोर्चे को किसी भी चुनावी गठबंधन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। चुनावी घटनाक्रम को एक अलग चश्मे से देखा जाना चाहिए।’
बीआरएस सांसद के. केशव राव ने भी कहा कि नेतृत्व का सवाल बाद में सुलझाया जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आठ मुख्यमंत्रियों का G-8 मंच एक शासन मंच से अधिक है। आपको बता दें कि गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों द्वारा तैयार किए गए साझा मंच G-8 की पहली बैठक अप्रैल के मध्य में होने की उम्मीद है। लेकिन सवाल अब भी बरकरार है कि क्या अडानी मुद्दे, राहुल गांधी की अयोग्यता और संसद में विपक्ष की रणनीति के मामले में बन रही नई एकजुटता, G-8 के कामकाज को प्रभावित तो नहीं करेगी?
झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद माजी ने बताया, ‘एक प्लेटफॉर्म के तौर पर G-8 एक ऐसा विचार था जिस पर चर्चा की गई। हालांकि, अभी इसकी निश्चित शुरुआत होनी बाकी है।’ बता दें कि माजी को JMM के प्रमुख और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का करीबी माना जाता है। सीएम सोरेन भी G-8 प्लेटफॉर्म का हिस्सा हैं।
G-8 में कौन से नेता?
गौरतलब है कि G-8 में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शामिल हैं।(एएमएपी)



