मलिक असगर हाशमी ।
प्रधानमंत्री इमरान खान का सियासी नौसिखियापन फिर उजागर हो गया। सरकार की निकृष्टता के कारण इस बार भी पाकिस्तान को फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर निकलने में कामयाबी नहीं मिली। इसके लिए उसे फिर चार महीने की मोहलत दी गई है।
पेरिस में शुक्रवार देर शाम समाप्त हुई एफएटीएफ की तीन दिवसीय बैठक में पाकिस्तान को फरवरी 2021 तक ‘ग्रे लिस्ट’ में रखने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया। बैठक में माना गया कि उसने 27 बिंदुओं में 21 पर सुधारात्मक कार्य किए हैं। शेष मामले में भी उसका प्रदर्शन ठीक-ठाक है। बावजूद इसके पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति इजाज़त नहीं देती कि उसे ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर रखा जाए। उसे काली सूची में जाने से बचाने के लिए उसके पुराने साथी देशों तुर्की, चीन एवं मलेशिया ने उसके पक्ष में वोट किया। पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर आने के लिए अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस सहित बारह देशों का समर्थन चाहिए। मगर भारत की सधी कूटनीति से पाकिस्तान को इसमें सफलता नहीं मिल पा रही। यहां तक कि यूएई और अरब देश भी उसके साथ न खड़े होकर भारत के साथ हैं। भारत ने एक तरह से विश्व बिरादरी को आश्वस्त कर दिया कि दुनिया में आतंकवाद का जनक पाकिस्तान है। इस देश में आतंकवादी संगठन पलते हैं। यह आतंकवादी संगठनों को फंडिंग करता है। मगर इन आरोपों से बाहर निकलने के ठोस प्रयास करने की बजाए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी सिर्फ इस बात से खुश हैं कि उनका मुल्क एफएटीएफ की काली सूची में जाने से फिर बच गया।
सफलता नहीं, बहुत बड़ी विफलता
हालांकि, यह सफलता नहीं, पाकिस्तान की बहुत बड़ी विफलता है। पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों के पत्रकारों का मानना है कि इमरान सरकार को जैसे प्रयास करने चाहिए, नहीं कर रही है। परिणामस्वरूप, ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर नहीं निकल पाने के चलते उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं यूरोपीय संघ से समुचित आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। विश्लेषकों की नजरों में इस वर्ष फरवरी से अक्तूबर के बीच ‘ग्रे लिस्ट’ से निकलने के लिए पाकिस्तान के पास सुनहरा मौका था।
इमरान खान भ्रष्टाचार मामले में लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे पूर्व प्रधानमंत्री मियाँ नवाज शरीफ को 15 जनवरी 2021 से पहले पाकिस्तान लाने का दावा कर रहे हैं। इसके लिए ब्रिटेन सरकार को पत्र भी लिखा है। कहते हैं, जरूरत पड़ी तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिसा जानसन से भी मुलाकात करेंगे। इस पर चुटकी लेते हुए सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब कहते हैं कि जब आपके बोरिस जानसन से इतने अच्छे संबंध हैं, उन्हें एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने को क्यों नहीं मनाते?
पाक की विदेशी पालिसी पूरी तरह ठस
पत्रकार मोना आलम कहती हैं कि ‘इस लंबी अवधि में पाकिस्तान सरकार पड़ोसी अफग़ानिस्तान का भी विश्वास नहीं जीत पाई।‘ पत्रकार इब्राहिम राजा मायूसी से कहते है, ‘देश की विदेशी पालिसी पूरी तरह ठस है। इससे एफएटीएफ के -ग्रे लिस्ट- से निकलने में दुश्वारियां आ रही हैं। इस मुद्दे पर विदेश स्तर पर व्यापक कार्य की जरूरत है। विदेश मंत्री को चाहिए कि वह वोट के हक़दार सभी बारह देशों के हुक्मरानों से मुलाकात कर अपनी उपलब्धि गिनाएं। मगर शाह महमूद कुरैशी पाकिस्तान से बाहर नहीं निकलते। कुछ दिनों पहले चीन इसलिए गए कि वहां एक अन्य मामले में पाकिस्तान का पेंच फंसा था।‘ इब्राहिम राजा के मुताबिक, ‘इमरान खान सरकार ने तुर्की के मामले में गल्फ मुल्कों से ताल्लुकात खराब कर लिए हैं। उन्हें देश हित सर्वपरि रखना होगा। इमरान खान अलग-अलग देशों के रहनुमाओं से मिलकर उन्हें समझा सकते हैं कि भारत के मामले में उनका रवैया चाहे जो हो, पर पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचाने के लिए उन्हें इनका साथ चाहिए।‘
‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर निकलना मुश्किल
इमरान खान भ्रष्टाचार मामले में लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे पूर्व प्रधानमंत्री मियाँ नवाज शरीफ को 15 जनवरी 2021 से पहले पाकिस्तान लाने का दावा कर रहे हैं। इसके लिए ब्रिटेन सरकार को पत्र भी लिखा है। कहते हैं, जरूरत पड़ी तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिसा जानसन से भी मुलाकात करेंगे। इस पर चुटकी लेते हुए सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अमजद शोएब कहते हैं कि जब आपके बोरिस जानसन से इतने अच्छे संबंध हैं, उन्हें एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने को क्यों नहीं मनाते? पत्रकार मोना आलम कहती हैं, ‘पाकिस्तान सरकार आर्थिक मोर्चे पर भी सुस्त है। कोरोना काल में पाकिस्तान को दूसरे देशों से संबंध बढ़ाने का अच्छा मौका मिला। हमारे देश में महारोग का प्रकोप कम है। ऐसे में कई देश कोरोना प्रभावित देशों के मुकाबले पाकिस्तान से कारोबारी रिश्ता बढ़ाना चाहेंगे। पाकिस्तान को इसका लाभ लेना चाहिए। उसे अपने प्रतिनिधि मंडल विकसित देशों में भेजने चाहिए। इसके लिए सांसदों का प्रतिनिधमंडल भी भेजा जा सकता है। मगर सरकार की तरफ ऐसा कोई प्रयास नहीं हो रहा। ऐसे में पाकिस्तान का ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर निकलना मुश्किल है। कर्ज के पैसे से पाकिस्तान का भविष्य नहीं संवारा जा सकता।‘
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