भू बैकुंठ कहे जाने वाले और भारत के चार धामों में एक बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट गुरुवार को  प्रात: 7 बजकर 10 मिनट पर परम्परा और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खुल गए हैं। इस अवसर पर भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से आए श्रद्धालु बारी-बारी से भगवान की एक झलक पाने के लिये दर्शन पर पर जुटे हैं। बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है। कहते हैं कि हर व्यक्ति को जीवन में एक बार बदरीनाथ के दर्शन अवश्य करने चाहिए।

 

कपाट खुलने के दौरान हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा हुई तो वहीं परिसर में सेना की मधुर धुन पर यात्री भी थिरके। बदरीनाथ के सिंह द्वार से यात्रियों के दर्शन शुरू हो गए हैं। कपाट खुलने के दौरान धाम में करीब 20 हजार तीर्थयात्री पहुंचे। कपाटोद्घाटन के लिए टिहरी राजा के प्रतिनिधि के रूप में माधव प्रसाद नौटियाल भी धाम में मौजूद रहे। वहीं बदरीनाथ यात्रा को लेकर तीर्थयात्रियों में भी उत्साह और उल्लास का माहौल है। यात्रा पड़ावों पर जगह-जगह तीर्थयात्रियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। बदरीनाथ में तीर्थयात्रियों और स्थानीय श्रद्धालुओं के करीब 400 वाहन पहुंच गए हैं। बदरीनाथ के साथ ही धाम में स्थित प्राचीन मठ-मंदिरों को भी गेंदे के फूलों से सजाया गया है।

माणा में ग्रामीणों की चहल-पहल शुरू

इस बार बदरीनाथ हाईवे पर कंचन गंगा और रड़ांग बैंड में हिमखंड पिघल गए हैं। यहां अलकनंदा के किनारे कुछ जगहों पर ही बर्फ जमी है। बदरीनाथ धाम के आंतरिक मार्गों पर अभी भी बर्फ है, जिसे नगर पंचायत बदरीनाथ के पर्यावरण मित्रों की ओर से साफ किया जा रहा है। वर्ष 2013 की आपदा में बह चुके लामबगड़ बाजार में भी दुकानें खुलने लगी हैं। देश के प्रथम गांव माणा में भी ग्रामीणों की चहल-पहल होने लगी है। बुधवार को बदरीनाथ धाम पहुंंचे अधिकांश श्रद्धालु माणा गांव पहुंचे। बदरीनाथ में आर्मी हेलीपैड से मंदिर परिसर तक साफ-सफाई काम भी पूरा हो गया है।

भगवान शिव से मांग लिया था निवास

शास्त्रों में बदरीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ बताया है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं। दूसरा भगवान विष्णु का निवास बदरीनाथ बताया गया है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव से मांग लिया था।

जानिए कैसे पड़ा “बदरीनाथ” नाम

कहा जाता है कि एक बार मां लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गईं तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब मां लक्ष्मी की नाराजगी खत्म हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय इस स्थान पर बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बदरीनाथ नाम दिया।

दो पर्वतों के बीच बसा

बदरीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इन पर्वतों को नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अपने अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्रीकृष्ण के रूप में पैदा हुए थे।

दीपक का खास महत्व

बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक का विशेश महत्व होता है। कहा जाता है कि 6 महीने तक बंद कपाट के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं।(एएमएपी)