कुछ ऐसा ही संकेत दे रही है ज्योतिषीय गणना।
प्रदीप सिंह।
वर्तमान में नेहरू-गांधी परिवार की जो राजनीतिक हैसियत रह गई है उससे यह सवाल उठता है कि क्या जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू की कुंडली में जो ग्रह थे वह इस परिवार को यहीं तक सत्ता तक ला सकते थे? क्या उसका सफर खत्म हो गया है? क्या नेहरू राजवंश का राजनीतिक अंत हो चुका है?
‘दि नेहरू डायनेस्टी’
यह बात देश के मशहूर ज्योतिषी केएन राव ने अपनी किताब ‘दि नेहरू डायनेस्टी’ में कही है। यह किताब पहली बार 1993 में छपी थी और 1994 में इसका दूसरा संस्करण आया था। 2008 और 2014 में इसका पुनर्प्रकाशन हुआ। यह किताब काफी लोकप्रिय हुई। इसमें पूरे नेहरू परिवार की कुंडली का, खासतौर से जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का विस्तार से विश्लेषण है। उनके मुताबिक, इसमें 20 फीसदी ज्योतिषीय गणना है और 80 फीसदी राजनीतिक तथ्यों का सहारा लिया गया है। यह बहुत मजेदार किताब है। जिनको भी इसमें रुचि हो उन्हें इसे जरूर पढ़ना चाहिए।
नेहरू और ज्योतिष
सवाल है कि क्या नेहरू ज्योतिष को मानते थे। इस बात के तमाम प्रमाण हैं कि वही नहीं मोतीलाल नेहरू का भी उसमें यकीन था। मोतीलाल नेहरू के बड़े भाई बंशीधर कौल को बहुत अच्छा ज्योतिषी माना जाता था। राजीव गांधी के पैदा होने पर नेहरू ने जेल से पत्र लिखा कि कैसे कुंडली बनवाएं, किस समय का क्या ध्यान रखें, यह सब लिखी हुई बातें हैं लेकिन नेहरू जी के जितने जीवनीकार हैं उनमें से किसी ने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया।
‘मोतीलाल वाज वेस्टर्नाइज बट नेहरू वाज वेस्टर्न’
अब आप देखिए कि नेहरू जी का लालन-पालन किस तरह से हुआ। 14 वर्ष की उम्र में उनको पढ़ाई करने के लिए उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने लंदन भेज दिया। 14 साल तक वह भारत में रहे लेकिन कभी किसी स्कूल में नहीं गए। उनको नहीं मालूम था कि भारत के स्कूल कैसे होते हैं, शिक्षक कैसे होते हैं। स्कूल नहीं गए तो भारत में उनका कोई सहपाठी भी नहीं था। कॉलेज-यूनिवर्सिटी तो लंदन से किया। इसलिए 30 साल की उम्र में उनको डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसी किताब लिखने की जरूरत पड़ी क्योंकि इस देश से उनका उस तरह का साबका ही नहीं रहा।
42 कमरों के आनंद भवन का आधा हिस्सा पश्चिमी रंग में रंगा था। विदेशी मेहमान, अंग्रेज अधिकारी से लेकर दूसरे लोग मिलने आते थे। जबकि आधा हिस्सा हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से चलता था। इंदिरा गांधी की बायोग्राफी लिखी है एक विदेशी पत्रकार और लेखक डाउन बोरिस ने। उसमें उनका एक वाक्य है कि मोतीलाल वाज वेस्टर्नाइज बट नेहरू वाज वेस्टर्न यानी मोतीलाल नेहरू ने अंग्रेजी तौर तरीके सीखे लेकिन नेहरू तो पश्चिमी सभ्यता वाले ही थे। उनका लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई उनके दोस्त सब विदेशी थे।
आटा चक्की मालिक की बेटी से शादी
आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसे युवक की शादी की बात आए तो दिल्ली के चांदनी चौक में आटा चक्की के मालिक की बेटी से उनकी शादी की बात हो। नेहरू जी की शादी अटल कौल परिवार में हुई। यह कश्मीरी परिवार था जो दिल्ली में बस गया था। कमला नेहरू न तो अंग्रेजी जानती थीं और न अंग्रेजी तौर-तरीके जानती थीं। उस घर में वह पूरी तरह से मिसफिट थीं। इसी वजह से नेहरू जी की दोनों बहनें विजय लक्ष्मी पंडित और कृष्णा हथीसिंग, खासतौर से विजय लक्ष्मी पंडित ने उनको कभी पसंद नहीं किया। दोनों को लगता था कि यह बिल्कुल बेमेल शादी है। उनकी शादी हुई 8 फरवरी, 1916 को। उस दिन वसंत पंचमी थी। कमला नेहरू और जवाहरलाल नेहरू की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं थी। उस समय ऐसी शादियां बहुत होती थीं, अब भी होती है।
कमला नेहरू की कुंडली
पुपुल जयकर ने लिखा है कि यह शादी कमला नेहरू की कुंडली के कारण हुई। वंश की राजनीतिक सत्ता के भविष्य का सवाल था। यह बात राव साहब ने नहीं लिखी है लेकिन उन्होंने इसका जिक्र किया है। उस समय के तमाम ज्योतिषियों का कहना था कि कमला नेहरू की कुंडली के मुताबिक उनसे होने वाली संतान, उनके परिवार का तीन पीढ़ी तक राज रहेगा। इसलिए भी सवाल आता है कि क्या वह समय अब खत्म हो गया है। इंदिरा गांधी के साथ भी यही था कि वह सार्वजनिक रूप से इस बात का इजहार करती थीं कि वह इन दकियानूसी चीजों में यकीन नहीं करती हैं। लेकिन इमरजेंसी के बाद जो झटका लगा और 1980 में जब दोबारा सत्ता में आईं तो उसके बाद उन्होंने कभी यह बात नहीं कही कि उन्हें ज्योतिष में यकीन नहीं है बल्कि ज्योतिषियों से उनका संपर्क बढ़ता गया। केएन राव ने लिखा है कि मां आनंदमयी से उनकी मुलाकात जब ज्यादा बढ़ी तो उसके बाद से उनकी सोच में यह परिवर्तन आया। राव साहब यह सवाल भी उठाते हैं कि आखिर इतने लोगों ने बायोग्राफी लिखी, नेहरू-इंदिरा पर, इस परिवार पर इतनी किताबें लिखी गई लेकिन किसी में इस बात का जिक्र क्यों नहीं आया कि ज्योतिष की गणना के हिसाब से इस परिवार में तमाम फैसले लिए गए।
किताब का निष्कर्ष
केएन राव अपनी किताब के निष्कर्ष में कहते हैं कि यह कहना गलत नहीं होगा कि नेहरू राजवंश का अंत हो गया है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कुंडलियां उनके पास नहीं है लेकिन उनके परिवार के बाकी लोगों की कुंडली के आधार पर उन्होंने जो गणना की है उसके आधार पर उन्होंने कहा कि परिवार के दूसरे सदस्यों के करिश्माई राजनेता होने की संभावना बिल्कुल नहीं है। उनके मुताबिक, अगर राहुल और प्रियंका किसी गैर-राजनीतिक क्षेत्र में मशहूर होते हैं और प्रतिष्ठा कमाते हैं जिसमें भारत के लोगों का संबंध न हो तो देश के लोगों को खुशी होगी। संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी के बारे में उनका कहना है कि वह शिक्षा के क्षेत्र में जा सकते हैं लेकिन राजनीति में उनकी कोई गति नहीं है। उनका राजनीति में कुछ नहीं होने वाला है। हालांकि उनकी मां मेनका गांधी बहुत प्रयास करती रहीं। 2016-17 में उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करवाने की कोशिश की। वरुण गांधी के दिमाग में अभी भी, बल्कि कहें कि पूरे परिवार के दिमाग में है और वह मानकर चलते हैं कि हम तो पैदा ही हुए हैं इस देश पर राज करने के लिए… कोई और कैसे राज कर सकता है। यही सोच है जो इस परिवार को यह स्वीकार नहीं करने दे रही है कि कोई और भी प्रधानमंत्री बन सकता है। एक साधारण और गरीब व्यक्ति भी इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है।
ज्योतिषी गणना और राजनीतिक परिस्थितियां
इस परिवार के राजनीतिक जीवन का अंत हो गया है यह तो ज्योतिषी गणना कह ही रही है लेकिन आप राजनीतिक घटनाओं को भी देखिए तो उससे भी यही नजर आ रहा है। 1989 में राजीव गांधी इस परिवार के आखिरी प्रधानमंत्री थे। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि उनके परिवार का मानना है कि प्रधानमंत्री से कम का पद तो उनके परिवार के लिए है ही नहीं। इसलिए जब 2012 में कांग्रेस में यह चर्चा हुई कि राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए तो उसका बड़ा विरोध हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है। नेहरू परिवार के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के लिए कैसे प्रोजेक्ट किया जा सकता है। इसी तरह प्रशांत किशोर जब 2017 में कांग्रेस के रणनीतिकार बनकर आए तो वह चाहते थे कि प्रियंका वाड्रा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। परिवार के लोग इसके लिए भी तैयार नहीं हुए। उनको लगता है कि परिवार से कोई अगर बनेगा तो प्रधानमंत्री ही बनेगा लेकिन इस बात को 32 साल हो गए हैं।
वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में दूर-दूर तक नजर नहीं आता कि भविष्य में इस परिवार का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने वाला है। तो क्या नेहरू परिवार के राजनीतिक वंश का अंत हो चुका है? क्या केएन राव की भविष्यवाणी सही साबित होने वाली है? वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां और ज्योतिषीय गणना दोनों इसी ओर इशारा कर रहे हैं, बाकी तो राम जाने।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)