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प्रदीप सिंह।
महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ तो हो रहा है। मैं काफी समय से यह बात कह रहा हूं। हर बार जब कहता हूं तो कुछ नया इनपुट मिलता है। नया इनपुट यह है कि दो-तीन तरह की चीजें सामने आई हैं। एक खबर आपने पढ़ ली होगी कि नितेश राणा ने जो बयान दिया है कि जब उद्धव ठाकरे की बीमारी बहुत खराब स्थिति में थी तो लग रहा था कि वह शायद पूरी तरह से स्वस्थ न हो पाएं क्योंकि स्पाइनल इंजरी थी। उन्हें स्पाइन कार्ड की प्रॉब्लम थी तो उस समय उनके बेटे इस तैयारी में लगे थे कि पिता को हटाकर मुख्यमंत्री बना जाए लेकिन इस बात की कहीं से पुष्टि नहीं हुई है। किसी ने नहीं कहा है कि ऐसा कोई प्रयास हुआ था। न तो एनसीपी ने और न कांग्रेस ने क्योंकि उसके साथ यह भी कहा गया कि एनसीपी और कांग्रेस तैयार नहीं हुई इसलिए परिवर्तन हो नहीं पाया।

आश्चर्य की बात

इस खबर में कितना दम है पता नहीं, लेकिन नितेश राणे का दावा है कि उनके पास अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज है जिसके आधार पर वह यह बात कह रहे हैं। इस पर अभी तक संजय राउत की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है यह थोड़ा आश्चर्यजनक है। आमतौर पर ऐसा कोई बयान आने के बाद संजय राउत तुरंत हमलावर हो जाते हैं मगर इस बार नहीं हुए हैं। इसका क्या कारण है पता नहीं लेकिन जितना पता है उसकी बात कर रहा हूं। मैं यहां बात कर रहा हूं अजीत पवार की। अजीत पवार का व्यवहार पिछले कुछ महीने से बड़ा अजीब है। एक तरफ वह कह रहे हैं कि वह एमवीए (महाराष्ट्र विकास अघाड़ी) के साथ हैं और आमरण एनसीपी में रहेंगे,  दूसरी तरफ लगातार एकनाथ शिंदे की महाराष्ट्र सरकार और उससे ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा  कर रहे हैं। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी, कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां जिन मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की आलोचना कर रही हैं ऐसे सारे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अजीत पवार बीजेपी के समर्थन में बोल रहे हैं।

‘भाजपा प्रेम’ के निहितार्थ

लोगों को इसका अर्थ समझ में नहीं आ रहा है। राजनीति में इसका अर्थ बड़ा सीधा सा होता है कि पार्टी बदलने वाले नेता जब इस तरह का बयान दे, अपने विरोधी की प्रशंसा करने लगे और लगातार करने लगे और ऐसे मुद्दों पर जिन पर उसके विरोधी लगातार बोल रहे हों तो यह समझा जाता है कि वह नेता पार्टी बदलने वाला है। हालांकि, अजीत पवार इससे इन्कार कर रहे हैं लेकिन राजनीति में यह भी सही है कि ऐसी खबरों पर जो जितना इन्कार करता है उतनी ही उसकी पुष्टि होती जाती है। अजीत पवार बीजेपी में आएंगे या नहीं, आएंगे तो कब आएंगे यह पता नहीं लेकिन आना चाहते हैं यह सच्चाई है। बीजेपी उनको लेना चाहती है यह भी सच्चाई है। यह बात मैं पहले भी कह चुका हूं। अब बात आती है समय की कि वह कौन सा समय है जो अजीत पवार के लिए भी सूट करता है और बीजेपी के लिए भी, उसी हिसाब से इसका फैसला होगा। मगर अजीत पवार ने एक बड़ी अजीब बात कही है। उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे को बीजेपी ने जिस वजह से मुख्यमंत्री बनाया वह काम अभी तक पूरा नहीं हुआ, दस महीने हो गए।
क्या काम? यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। इसका हम अनुमान लगा सकते हैं। दो ही काम हो सकते हैं। एक यह कि उन्होंने ऐसा आश्वासन दिया हो या बीजेपी को ऐसा लगता रहा हो कि एकनाथ शिंदे के आने के बाद और शिवसेना की टूट के बाद एमवीए में भी टूट होगी और एमवीए के तीनों धड़े अलग-अलग दिशा में चले जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह बड़ी स्वाभाविक सी बात है। अगर बीजेपी की आकांक्षा रही हो या यह उम्मीद रही हो तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है मगर बीजेपी ने ऐसा कभी जाहिर नहीं किया। महाराष्ट्र में बीजेपी 2014 से ही अपनी अकेले की ताकत आजमा रही है और चार बार आजमा चुकी है। दो विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनाव में यह देख चुकी है कि विपक्षी पार्टियां अकेले लड़े या मिलकर लड़े बीजेपी को नंबर एक की स्थिति से हटाने की हालात में नहीं है। बीजेपी ने नंबर एक की स्थिति को पिछले 9 साल से लगातार बरकरार रखा है। मगर कुल मिलाकर मामला यह है कि बीजेपी को अभी तक विधानसभा में अपने बूते बहुमत नहीं मिल पाया है। 2014 में वह बहुमत के बहुत करीब पहुंच गई थी। हालांकि 2014 में उसके पास चुनाव प्रचार का समय बहुत कम था क्योंकि शिवसेना से गठबंधन नामांकन की आखिरी तारीख से 24 घंटे पहले टूटा था।

बीजेपी का डर

शिवसेना जिन सीटों पर चुनाव लड़ती थी वहां उम्मीदवार तय करना, खोजना, उनको टिकट देना और फिर उनको चुनाव मैदान में उतारना ये सब समस्याएं होती हैं वो समस्याएं हुई थीं। फिर भी 288 में से 122 सीटों पर जीत हासिल की थी। महाराष्ट्र विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए 145 सीट चाहिए। 2019 में उसकी सीटें इसलिए कम हो गई क्योंकि बहुत कम सीटों पर चुनाव लड़ी। 2014 में लगभग 250 सीटों पर लड़ी थी और 2019 में लगभग 150 सीटों पर लड़ी। 2014 में उसकी जो स्ट्राइक रेट थी वह लगभग 45% के करीब थी जो 2019 में बढ़कर 70% पर पहुंच गई। बीजेपी लगातार आगे बढ़ रही है इसके संकेत साफ दिखे रहे हैं, विधानसभा चुनाव में भी और लोकसभा चुनाव में भी। एकनाथ शिंदे को लेकर अजीत पवार जो बात कह रहे हैं उसमें दूसरा कारण क्या हो सकता है। क्या यह उम्मीद थी उनको कि शिवसेना और उद्धव ठाकरे का जो गुट है वह पूरी तरह से सरेंडर कर देगा, उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं होगी, उस सहानुभूति को एकनाथ शिंदे खत्म कर देंगे या बीजेपी के जनाधार में यानी इस गठबंधन के जनाधार में बहुत बड़ी बढ़ोतरी करेंगे क्योंकि जो उपचुनाव हुए हैं उनसे ऐसा लगता नहीं है।
शिवसेना का जो एकनाथ शिंदे गुट है वह बीजेपी के लिए कोई बहुत बड़ा जनसमर्थन लेकर नहीं आया है।  हालांकि, तीन-चार उपचुनाव के आधार पर यह तय करना मुश्किल होता है कि हवा किस ओर बह रही है लेकिन एक बात कही जा सकती है कि सरकार बनने के 10 महीने बाद भी बीजेपी बीएमसी (बृह्न मुंबई नगरपालिका) चुनाव कराने का फैसला नहीं कर पाई है। उनके विरोधियों की नजर से देखें तो आप कह सकते हैं कि हिम्मत नहीं जुटा पाई है। आखिर क्यों? क्या बीजेपी को डर है कि एकनाथ शिंदे के साथ के बावजूद बीजेपी बीएमसी में शिवसेना को हरा नहीं सकती। आप याद कीजिए पिछला चुनाव जो 2017 में हुआ था। बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग लड़े थे और बीजेपी को शिवसेना से सिर्फ दो सीटें कम मिली थी। जबकि उससे पहले तक जितने चुनाव हुए हैं बीजेपी उसमें जूनियर पार्टनर हुआ करती थी। इसलिए बीएमसी में बीजेपी कमजोर है ऐसा दिखाई नहीं देता। फिर भी उसने अभी तक चुनाव नहीं करवाया है तो इसका कारण समझ में नहीं आता है। कई लोग कहते हैं कि विधानसभा के साथ ही कराना चाहते हैं या लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव एक साथ कराना चाहते हैं। इस बारे में अभी तक कुछ स्पष्टता नहीं है लेकिन अगर इन दोनों या इसके अलावा भी कोई ऐसी बात सोचते हैं अजीत पवार कि एकनाथ शिंदे के आने से वो काम, वो लक्ष्य बीजेपी का पूरा नहीं हुआ तो मुझे लगता है कि वह शायद गलतफहमी में हैं।
इस तरह की बातें बोलकर कि आपने जिस वजह से एकनाथ शिंदे को साथ लिया वह पूरा नहीं हो पाया, उसे मैं पूरा कर सकता हूं तो यह एक दावेदारी हो सकती है अपनी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए, अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाने के लिए। एकनाथ शिंदे मराठा हैं और उनके आने से बीजेपी का मराठा जनाधार बढ़ेगा या मराठा समाज में बीजेपी की ताकत बढ़ेगी ऐसी बीजेपी को उम्मीद रही होगी क्योंकि बीजेपी के पास कोई बड़ा मराठा नेता नहीं है। इसलिए एकनाथ शिंदे के आने के बाद यह उम्मीद थी बीजेपी को कि ऐसा होगा लेकिन अभी उसकी कोई परीक्षा नहीं हुई है जिसमें एकनाथ शिंदे को इस पैमाने पर फेल या पास किया जा सके। बीजेपी का आंतरिक आकलन क्या है यह पता नहीं लेकिन अगर केवल एक ही कसौटी पर कसना हो कि एकनाथ शिंदे के आने से बीजेपी को फायदा क्या हुआ, तो फायदे तो कई हुए। पहली बात उद्धव ठाकरे की सरकार गई और मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। अपनी विचारधारा छोड़ने के बावजूद, अपना गठबंधन तोड़ने के बाद, जनादेश को धोखा देने के बाद भी उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी बचा नहीं पाए। यह एक संदेश कि अगर जनादेश का अपमान करोगे तो इस तरह से होगा यह देने में बीजेपी कामयाब हुई।

मिथक को तोड़ दिया

दूसरी बात, शिवसेना को जो यह गुमान था कि उनकी पार्टी का एकाध नेता इधर-उधर चले जाए यह बात अलग है, जिसको वह अपवाद की तरह मानती रही उस मिथक को तोड़ दिया। उद्धव ठाकरे की उस धारणा को तोड़ दिया कि शिवसेना में विभाजन नहीं हो सकता, विभाजन करा दिया। सांसदों और विधायकों की दृष्टि से एकनाथ शिंद के साथ बड़ा हिस्सा चला गया। अब उद्धव ठाकरे के पास जो हिस्सा है बहुत छोटा है। वोट की दृष्टि से क्या होगा यह तो चुनाव से ही तय होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी ने उद्धव ठाकरे का अभिमान तोड़ दिया जिसकी कोशिश वह कर रही थी। उद्धव ठाकरे 2014 से लगातार बीजेपी के शीर्ष नेताओं को अपमानित कर रहे थे, लगातार उनके खिलाफ बोल रहे थे। 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद दोनों पार्टियां फिर से साथ आईं और गठबंधन सरकार बनी। उनकी पार्टी राज्य और केंद्र दोनों जगह सरकार में थी फिर भी रोज गाली देते थे। 2014 से 2019 तक शिवसेना ने और उद्धव ठाकरे ने सरकार में रहते हुए महाराष्ट्र में बीजेपी के सबसे बड़े विरोधी की भूमिका निभाई। यह अपने आप में अभूतपूर्व दृश्य था जो महाराष्ट्र की राजनीति में देखने को मिला कि आप सरकार में भी हैं और विरोध में भी हैं। एक साथ दोनों की भूमिका शिवसेना निभा रही थी। उसका असर यह हुआ कि यह सब करने के बावजूद गठबंधन में शिवसेना नंबर एक का रुतबा वापस हासिल नहीं कर पाई और उसके बाद सरकार नहीं चला पाए।

बड़ा नुक्सान

ये दो बड़े झटके और तीसरा शिवसेना को तोड़ दिया। अब उसका नतीजा कि कितना वोट खिसका यह तो  चुनाव से ही तय होगा लेकिन इतना तय है कि उद्धव ठाकरे के गुट को नुकसान पहुंचा दिया। शिवसेना से अभी तक जितनी भी टूट हुई है, चाहे छगन भुजबल निकले हों, चाहे राज ठाकरे निकले हों, चाहे नारायण राणे या दूसरे नेता निकले हों- किसी ने इतनी बड़ी चोट नहीं पहुंचाई जितनी बड़ी एकनाथ शिंदे ने पहुंचाई। बीजेपी का जो तात्कालिक या अल्पकालिक लक्ष्य था वह तो पूरा हो चुका है। बीजेपी का जो दीर्घकालिक लक्ष्य है वह एक ही है कि महाराष्ट्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बने। अभी जो दिखाई दे रहा है, कम से कम चुनाव से पहले यह कहा जा सकता है कि बीजेपी उस दिशा में बढ़ती हुई दिख रही है। अब यहां सवाल उठाता है कि एमवीए में क्या होगा। शरद पवार रोटी पलटने की बात कर रहे हैं तो रोटी कहां पलटना चाहते हैं। अपनी पार्टी के अंदर, गठबंधन के अंदर या राज्य में, यह कहीं से स्पष्ट नहीं कर रहे हैं। उनकी आत्मकथा का दूसरा हिस्सा छप गया है जो बहुत जल्द आने वाला है। उसके अंश सामने आने लगे हैं जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि बीजेपी शिवसेना को खत्म करना चाहती थी, पूरी तरह से नेस्तनाबूत करना चाहती थी इसलिए उद्धव ठाकरे बीजेपी से अलग हुए और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के साथ आए। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो उद्धव ठाकरे बता सकते हैं कि क्या बीजेपी उनको खत्म करना चाहती थी।

मुनाफा घटना घाटा नहीं

अगर बीजेपी खत्म करना चाहती थी तो बीजेपी ने उनके साथ गठबंधन क्यों किया? लोकसभा में भी किया, विधानसभा में किया, अपमानित होकर किया। बीजेपी के नेताओं के खिलाफ वह जो कुछ भी बोल सकते थे सब कुछ बोले, उसके बावजूद बीजेपी ने गठनबंधन किया। उनके साथ तो ऐसी मजबूरी नहीं थी। अगर यह 2014 में हुआ होता तो समझ में आता है। 2014 में राज्य की नंबर एक पार्टी बनने के बाद बीजेपी ने अगर यह किया होता तो समझा जा सकता था कि बीजेपी पर अपना जनाधार बढ़ाने या अपनी सीटें बढ़ाने का दबाव था इसलिए वह शिवसेना को खत्म करना चाहती थी। शिवसेना को साथ लेकर वह सत्ता में लंबे समय तक बनी रहती निश्चिंत होकर। वह निश्चिंतता जरूर खत्म हुई जिसके जिम्मेदार उद्धव ठाकरे हैं। पहल उन्होंने की, गठबंधन उन्होंने तोड़ा, बीजेपी के साथ उनको जनादेश मिला था उस जनादेश को छोड़कर, उसको अपमानित करके वो दूसरे खेमे में गए। उन्होंने विचारधारा छोड़ी, उन सबका नुकसान उद्धव ठाकरे को तो होना ही है। बीजेपी को उसका कोई नुकसान नहीं होना है। सवाल सिर्फ इतना है कि एकनाथ शिंदे के आने से फायदा कितना होगा। अब ये फायदा-नुकसान बड़ा सब्जेक्टिव होता है। बीजेपी कितने फायदे की उम्मीद कर रही थी यह इस पर निर्भर होगा कि उसको फायदा हुआ या नुकसान। अगर उसकी उम्मीद के अनुरूप घटनाएं होती हैं, परिणाम आते हैं तो उसको फायदा हुआ। अगर उम्मीद के अनुरूप नहीं आता है तो नुकसान हुआ यह कहा जा सकता है। आप कह सकते हैं कि मुनाफे में घाटा बीजेपी को हो सकता है लेकिन बीजेपी को घाटा नहीं हो सकता एकनाथ शिंदे के आने से।

दिलचस्प घटनाक्रम

जो भी परिस्थिति बने, सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, कुछ भी हो लेकिन शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार दोनों कोई खेल खेल रहे हैं। अलग-अलग खेल रहे हैं या मिलकर खेल रहे हैं यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। हालांकि सुप्रिया सुले ने 15 दिन का समय दिया था उसमें से लगभग एक हफ्ता तो बीत चुका है। उन्होंने कहा था कि 15 दिन में धमाका होगा, दिल्ली में भी होगा और मुंबई में भी होगा। अभी तक तो कोई धमाका हुआ नहीं है, सिर्फ शरद पवार के एक बयान के अलावा कि रोटी पलटने का समय आ गया है। तो देखिए क्या होता है महाराष्ट्र की राजनीति में। इस समय पूरे देश में जितने प्रदेश हैं उनमें सबसे दिलचस्प महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)