पृथ्वीराज को फिल्मों से ज्यादा दिलचस्पी थियेटर में थी। लिहाजा फिल्मों के साथ-साथ कई थियेटर से भी जुड़े रहे। आखिरकार 1944 में खुद का थियेटर शुरू किया। इसका नाम रखा पृथ्वी थियेटर। कालिदास का लिखा हुआ अभिज्ञानशाकुन्तलम इस थियेटर के स्टेज पर प्रदर्शित होने वाला पहला नाटक था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में नौजवानों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भी पृथ्वी थियेटर ने कई नाटकों का मंचन किया।
हर नाटक के मंचन के बाद पृथ्वीराज कपूर थियेटर के बाहर एक थैला लेकर खड़े हो जाते थे। इसमें नाटक देखने के बाद निकलने वाले लोग कुछ पैसे डाल दिया करते थे। इसी से थियेटर का खर्च चलता था। अगले 16 सालों तक इस थियेटर ने भारत के 112 शहरों में 5982 दिनों में कुल 2662 शो किए। थियेटर के हर शो में पृथ्वीराज कपूर ने लीड रोल प्ले किया। 1960 में पृथ्वीराज कपूर के खराब स्वास्थ्य की वजह से थियेटर को बंद करना पड़ा। हिंदी सिनेमा और थियेटर में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए 1972 में उन्हें मरणोपरांत दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।(एएमएपी)