खोई जमीन को वापस पाने की जद्दोजहद।
न पूर्वांचल, न पश्चिम, न रुहेलखंड, न बुंदेलखंड। सपा ने अपने चुनावी अभियान के आगाज के लिए खीरी को चुना है। अवध के इस इलाके के सहारे सपा पूरे तराई बेल्ट को साधने के फार्मूले के साथ उतरी है। कार्यकर्ता प्रशिक्षण के बहाने सपा अपनी खोई जमीन को वापस पाने की जद्दोजहद में है। खास बात है कि इस बार के आगाज की अगुवाई पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद की है।
लोकसभा चुनाव की तैयारी में सपा अभी से जुटी है। शुरुआत संगठन की मजबूती से की गई है। जगह चुनी गई है जिला खीरी। आखिर उत्तर प्रदेश भर के 75 जिलों में से अभियान का आगाज खीरी से क्यों? इस सवाल के जवाब में सियासी जानकार कई वजहें गिना रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख वजह है जिले का सियासी मिजाज। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले यह जिला सपा के लिए काफी मुफीद रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा यहां आठ में से पांच सीटें जीतकर आई थी। भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट गई थी। उस सीट पर 2014 के बाद उपचुनाव हुआ तो सपा ने उसे वापस हासिल भी कर लिया था। पर 2017 में सपा यहां की आठों सीटें गंवा बैठी।
लोकसभा में भी सपा का मजबूत गढ़ खीरी लोकसभा सीट सपा के लिए सबसे मजबूत सीट रही है। कुर्मी, मुस्लिम, यादव और अन्य ओबीसी मतों के सहारे सपा ने यहां हैट्रिक मारी थी। सपा के रवि प्रकाश वर्मा यहां से लगातार तीन बार सांसद रहे हैं।

पुराने फार्मूले पर भी सपा को भरोसा
सपा के पूर्व एमएलसी शशांक यादव बताते हैं कि खीरी जिले से सपा नेताओें का खास लगाव रहा है। नेताजी मुलायम सिंह यादव यहीं से अपनी सभाओं की शुरुआत करते थे। यह यूपी का सबसे बड़ा जिला है। 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव सबसे पहले खीरी जिले में ही आए थे। यहां से उन्होंने निरीक्षण व समीक्षा बैठकों की शुरुआत की थी।
वोटबैंक के साथ किसान वोट पर भी नजर
खीरी कांड के बाद जिला चर्चाओं में रहा है। विपक्षी नेताओं ने खीरी की जमीन को अपनी सियासी धुरी बनाया था। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में किसी विपक्षी दल को इसका कोई बड़ा लाभ नहीं मिला। पर यहां की सियासी संभावनाओं से वे अभी भी खुद को जोड़े हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि सपा की नजर किसान वोटों पर है। यही वजह है कि सपा ने चुनावी रथ को यहीं से आगे बढ़ाया है।
मुलाकात पर अखिलेश ने साधे समीकरण
लखीमपुर पहुंचे अखिलेश यादव ने सपा नेताओं व पदाधिकारियों सो मुलाकात कर सियासी समीकरण साधने की कोशिश की। अखिलेश ने जिन नेताओं से मुलाकात की, उनमें मुस्लिम नेता ज्यादा थे। इसके बाद वह पूर्व विधायक केजी पटेल, धीरेंद्र बहादुर सिंह के परिजनों से भी मिले।(एएमएपी)



