प्रदीप सिंह ।
ये जीत दिवाली वाली। बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को दिवाली से चार दिन पहले स्पष्ट बहुमत मिल गया है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन अच्छा लड़ा पर आखिर में हारे को हरिनाम ही हाथ लगा। बिहार के मतदाताओं का यह जनादेश केवल सरकार बनाने तक समीमित नहीं है। इस जनादेश के भीतर और कई जनादेश हैं।
मतदाताओं ने राजग के अंदरूनी समीकरण में आमूल परिवर्तन कर दिया है। अब नीतीश कुमार दिल्ली ही नहीं पटना में भी छोटे भाई की भूमिका में होंगे। भाजपा को बड़े भाई की भूमिका देकर बिहार वासियों ने जिम्मेदारी बढ़ा दी है। तो तेजस्वी यादव से कहा है कि अभी कुछ दिन सब्र कीजिए और सीखिए। लोजपा के चिराग पासवान के लिए संदेश है कि जल्दबाजी और अति महत्वाकांक्षा अच्छे नेता के गुण नहीं हैं।
बिहार के मतदाता ने हर हाथ (पार्टी) पर बताशा रखा है। किसी को निराश नहीं किया है। पर सबको सामर्थ्य के मुताबिक दिया है। असदुद्दीन औवेसी को पांच सीटें देकर अल्पसंख्यक समुदाय की भावनाओं का भी ध्यान रखा है। इस जनादेश ने बिहार में भविष्य की राजनीति के बीज भी बो दिए हैं। जनादेश साफ है कि आने वाले दिनों में राज्य में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल को मुख्य स्तम्भ होंगे। राज्य की राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमेगी। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से मतदाताओं ने कहा है कि उनके अच्छे दिन अभी नहीं आने वाले। वे पहले अपने घर को दुरुस्त करें। पार्टी के नेता अपने हित पर पार्टी के हित को तरजीह दें।
चुनाव के दौरान एक बात साफ नजर आई की बिहार के लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिछले पांच साल के कामकाज से खुश नहीं है। पर इतने भी नाखुश नहीं थे कि उन्हें सत्ता से हटाकर किसी और को सत्ता सौंप दें। उनकी पार्टी जनता दल(यूनाइटेड) की घटी सीटें मतदाताओं की ओर से चेतावनी है कि अगले पांच साल तक उसकी नजर सरकार के कामकाज पर रहेगी। नीतीश सरकार के काम से पूरी तरह संतुष्ट न होने पर भी बिहार के मतदाता प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने से आश्वस्त नजर आए। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता राजग का तुरप का इक्का साबित हुआ। मतदाता ने भाजपा को बड़ा भाई तो बना दिया है लेकिन इतना बड़ी नहीं कि छोटे भाई को घर से बाहर करने के बारे में सोचे। तो मतदाता ने सारे दलों और नेताओं की हदबंदी कर दी है।
#WATCH Bihar: BJP workers celebrate at the party office in Patna following the victory of NDA in #BiharElections2020. pic.twitter.com/7yZadSjm9N
— ANI (@ANI) November 11, 2020
चुनाव में कई तरह के षडयंत्र की कहानियां चलीं। खासतौर से राजग के बारे में। कहा गया कि भाजपा नीतीश कुमार का कद छोटा करना चाहती थी। इसलिए उसने लोजपा के चिराग पासवान को राजग से बाहर जाने दिया। यह भी कि भाजपा अगर चाहती तो चिराग को रोक सकती थी। ऐसी कहानियों की सचाई कभी नहीं पता चलेगी। पर एक सवाल तो है कि क्या भाजपा इतनी नासमझ है कि वह नीतीश कुमार के साथ चुनाव भी लड़े और उन्हें हराने का षडयंत्र भी करे और फिर चाहे कि राजग की सरकार भी बन जाय। खासतौर से ऐसी स्थिति में जब चुनाव से पहले और अब चुनाव के बाद भी तय है कि मुख्यमंत्री नीतीश ही बनेंगे। पर ऐसी चर्चाओं से चुनाव अभियान की रोचकता बढ़ती है। बशर्ते वे एक अनुपात और हद में रहें। बाकी गलतफहमी की दवा तो हकीम लुक्मान के पास भी नहीं थी।
ऐसे ष़डयंत्र चुनाव से पहले और चुनाव के बाद तो हो सकते हैं लेकिन चुनाव के दौरान आत्महत्या के समान होते हैं। क्योंकि चुनाव किस करवट बैठेगा यह बड़े से बड़े चुनाव पंडित को भी पता नहीं होता। नीतीश कुमार के खिलाफ नाराजगी की धार को कम करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। पर यह भी सच है कि भाजपा की चौहत्तर सीटों में नीतीश कुमार के जनाधार का भी योगदान कम नहीं है। गठबंधन होते ही इसलिए हैं और वही गठबंधन चलते हैं जिसमें सभी पक्षों का फायदा हो।
जनता मालिक है। उन्होंने NDA को जो बहुमत प्रदान किया, उसके लिए जनता-जनार्दन को नमन है। मैं पीएम श्री @narendramodi जी को उनसे मिल रहे सहयोग के लिए धन्यवाद करता हूँ।
— Nitish Kumar (@NitishKumar) November 11, 2020
इस जनादेश के बाद नीतीश कुमार के लिए सरकार चलाने में वैसी सहजता नहीं होगी जैसी पिछले पंद्रह साल से थी। क्योंकि सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी बढ़ना तय है। भाजपा के लोग इस जनादेश से अति उत्साह में रहेंगे। इसके बावजूद नीतीश कुमार को इस बात का एहसास है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व उनका नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता। क्योंकि नीतीश कुमार केवल बिहार में सत्ता की गारंटी नहीं हैं। वे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश भर के अति पिछड़ों को जोड़ने के अभियान की एक आवश्यक और मजबूत कड़ी हैं। भाजपा के इस राष्ट्रीय विमर्ष को बनाए रखने में नीतीश कुमार की भूमिका है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महिला मतदाओं को जिस तरह भाजपा से जोड़ा है, वह काम बिहार में नीतीश कुमार पहले से कर रहे हैं। इन दोनों नेताओं की महिला मतदाताओं में लोकप्रियता ने ही राजद को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचाया।
राजद के अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने पहली बार इस चुनाव में दिखाया कि वे गंभीर राजनीति कर सकते हैं। मुद्दे उठा सकते हैं, उसे लोगों तक कामयाबी से पहुंचा सकते हैं और उस पर टिके रह सकते हैं। बेरोजगारी का मुद्दा सरकार की कमजोर नस थी जिसे उन्होंने कसकर पकड़े रखा। पर उनके जनाधार की सबसे बड़ी ताकत ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। उनके जनाधार, खासतौर से उनकी जाति के लोगों की आक्रामकता दूसरे वर्गों को पार्टी से जुड़ने नहीं देती। ऐसा नहीं होता तो उन्हें बिहार का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक नहीं पाता। पंद्रह साल के सत्ता विरोधी माहौल में भी वे फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर पाए। अगले पांच सालों में उन्हें इस समस्या का हल खोजना पड़ेगा। क्योंकि पिता लालू यादव से विरासत में उन्हें राजनीतिक जनाधार के साथ साथ जंगल राज का दाग भी मिला है। और ऐसे दाग मतदाताओं को अच्छे नहीं लगते।
कुल मिलाकर कहें तो बिहार के मतदाताओं का यह जनादेश एकतरफा नहीं होना और ज्यादा समावेशी होना, बिहार के विकास के लिए शुभ संदेश है। यह भारतीय जनतंत्र की परिपक्वता का भी संकेत है।
(एबीपी लाइव डॉट कॉम से साभार)
ये भी पढ़ें