आपका अखबार ब्यूरो।
आखिर जम्मू कश्मीर में जारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कुछ तो खास बात है कि गुपकार गैंग या गठबंधन को भी जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों में शामिल होने का फैसला करना पड़ा है। गुपकार गठबंधन में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस, सीपीएम, सीपीआई, जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और अवामी नेशनल कांफ्रेंस शामिल हैं।
दिलचस्प बात यह है कि गुपकार गठबंधन में शामिल दल समय समय पर सत्ता का स्वाद चखते रहे हैं और कश्मीर की राजनीति में कमोबेश अच्छे हाल में रहे हैं। पर घाटी में 370 हटने के बाद से सियासी हालात और सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आया है जिसे हालात काफी बदल चुके हैं।
‘महाभूल’ से सबक
गुपकार गठबंधन में शामिल दल पहले भी पंचायत चुनावों का बहिष्कार करने की महाभूल कर चुके हैं जिसे अब वे दोहराना नहीं चाहते। पंचायत चुनावों का बहिष्कार के बावजूद पंचायत चुनावों का होना और जनता की उनमें भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि जम्मू कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दल मुख्यधारा से कटते जा रहे हैं। इसीलिए विपक्षी दलों ने अब अपना रास्ता बदला है और डीडीसी चुनावों में शामिल होने का फैसला किया है, ताकि वे जम्मू कश्मीर की राजनीति की मुख्यधारा में वापसी कर सकें।
सीट बंटवारे की घोषणा
जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव के पहले चरण के लिये नामांकन पत्र दाखिल करने का बृहस्पतिवार 11 नवंबर अंतिम दिन था। उसी दिन नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी समेत सात दलों के गुपकर घोषणापत्र गठबंधन ने सीट बंटवारे की घोषणा कर दी, गठबंधन ने उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी नहीं की।
सीट बंटवारे के फॉमूर्ले के अनुसार पहले चरण में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस कश्मीर की 27 में से 21 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी चार सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी। सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेस (पीसी) दो सीटों पर अपनी किस्मत आजमाइश कर रही है। फारूक अब्दुल्ला गुपकार गठबंधन के भी अध्यक्ष हैं। निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के अनुसार 28 नवंबर से 24 दिसंबर के बीच आठ चरणों में डीडीसी चुनाव कराए जाएंगे।
यह भारत के लोकतंत्र के लिए तो एक शुभ संकेत है ही। लेकिन इससे भी अधिक यह जम्मू कश्मीर के लिए एक नया शुभारंभ है जहां आतंकवाद ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को गहरा धक्का पहुंचाया है।
शुभ संकेत
राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे जम्मू कश्मीर के लिए इसे एक स्वस्थ व शुभ संकेत के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि जो कुछ एक सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा हासिल किया जा सकता है वह हिंसा को बढ़ावा देकर कभी भी हासिल नहीं किया जा सकता।
गुपकार गठबंधन के मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के फैसले की इसलिए भी सराहना हो रही है क्योंकि इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। इसका एक आशय यह भी निकाला जा रहा है कि उग्रवादियों पर अपनी कार्यप्रणाली का नये सिरे से मूल्यांकन करने और बातचीत के लिए सामने आने का दबाव बढ़ेगा।
राज्य बनने की संभावनाएं
यह भारत के लोकतंत्र के लिए तो एक शुभ संकेत है ही। लेकिन इससे भी अधिक यह जम्मू कश्मीर के लिए एक नया शुभारंभ है जहां आतंकवाद ने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को गहरा धक्का पहुंचाया है।
इन दलों के डीडीसी चुनावों में भागीदारी इस केंद्र शासित प्रदेश में भावी राजनीतिक अंत:क्रिया का भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यह जम्मू कश्मीर के एक केंद्र शासित प्रदेश से एक राज्य के तौर पर बहाली की एक संभावना और अवसर भी बन सकती है। हालांकि जब तक जम्मू कश्मीर में एक बेहतर राजनीतिक वातावरण नहीं बन जाता तब तक उसे विशेष दर्जा दिए जाने की संभावना को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।