दूसरी चुनौती ज्यादा से ज्यादा विपक्षी दलों को जोड़ने की है। कुल 16 दलों ने अब तक बैठक में शामिल होने की सहमति प्रकट की है जबकि संभावित दलों की संख्या 21 आंकी गई है। अभी भी कई दल हैं जो भाजपा के साथ नहीं हैं लेकिन वह इस बैठक में आने को तैयार नहीं हैं। इनमें बीजद, वाईएसआर कांग्रेस और बीआरएस प्रमुख रूप से शामिल हैं। हालांकि बीआरएस को लेकर उम्मीद है कि वह देर-सवेर विपक्षी एकता के साथ खड़ी होगी। इसके लिए प्रयास भी चल रहे हैं। लेकिन बीजद और वाईएसआर कांग्रेस आगे भी विपक्षी गठजोड़ से दूरी बनाए रख सकते हैं। हालांकि यह उम्मीद है कि दोनों दल चुनाव के बाद हालात अनुकूल होने पर अन्य रूप में समर्थन दे सकते हैं। इसके अलावा एमआईएम जैसे कुछ छोटे दल भी हैं जो विपक्ष के साथ खड़े नहीं होंगे।

मोदी के सामने कौन?
इसके अलावा विपक्षी दल लगातार इस बात पर ध्यान केंद्रीत कर रहे हैं कि वे किसी को भी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेंगे। क्योंकि ऐसा करने से एकजुटता में अड़चन पैदा हो सकती है। जद (यू) की तरफ से भी लगातार यह कहा जा रहा है कि नीतीश पीएम के दावेदार नहीं हैं। शरद पवार ने भी बिना चेहरे के मैदान में उतरने की पैरवी की है। लेकिन कुछ जानकार बिना चेहरे के मोदी के खिलाफ विपक्ष की इस रणनीति को कमजोर मान रहे हैं। बेतहर स्थिति यही बनती है कि विपक्ष एक दमदार चेहरा सामने लाए। लेकिन इस पर विपक्ष के बीच सहमति बनना आसान नहीं दिख रहा है।
युवाओं और मुस्लिमों पर नजर
सूत्रों की मानें तो 23 जून की बैठक में उपरोक्त विषयों पर तो चर्चा होगी ही, साथ में इसमें युवा वर्ग तक सोशल मीडिया के जरिये पहुंच बनाने के लिए रणनीति पर चर्चा, अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम मतदाताओं को साधने की योजना पर भी चर्चा होगी कि कैसे राष्ट्रीय दल ही भाजपा से मुकाबला करने में समक्ष हैं।(एएमएपी)



