ज्योतिषचार्यों ने बताया कि भगवान विष्णु के सोने के बाद पूरे चार महीने शादी, विवाह, मुंडन, जनेऊ जैसे सभी 16 संस्कार कार्य पर रोक लग जाएगा। देवोत्थान एकादशी पर उनके जागने के बाद फिर से सभी कार्य शुरू होते हैं। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन (एकादशी) से कार्तिक के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन (एकादशी) तक को शास्त्रों में चातुर्मास के नाम से जाना जाता है।
देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु के आराम का समय है। उस दिन से भगवान विष्णु शयन करने के लिए चले जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। लेकिन विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं।
हर साल चातुर्मास सामान्य रूप से चार महीने का होता है। लेकिन इस साल सावन अधिक मास होने के कारण चातुर्मास पांच महीने का होगा। 23 नवम्बर को देवोत्थान एकादशी के बाद पुनः सभी मांगलिक कार्य शुरू होंगे। इसके बाद नवम्बर में 23, 24, 27, 28 एवं 29 को विवाह का शुभ मुहूर्त है। जबकि दिसम्बर में पांच, छह, सात, आठ, नौ, 11 एवं 15 को विवाह का शुभ मुहूर्त है।
ज्योतिषचार्यों ने बताया कि वर-वधु के कुंडली में 36 बिंदुओं पर मिलान के बाद शादी की तिथि तय होती है। शादी विवाह सिर्फ तिथि ही नहीं, नक्षत्र, माह, तिथि, पंचश्लाका वेध, लग्न तथा शुभ ग्रह के हिसाब से तय होता है। विवाह व्यक्ति का दूसरा जन्म होता है, जो वर और वधू के साथ-साथ दो परिवारों को आपस में जोड़ता है। विवाह एक ऐसा बंधन होता है, जो दो लोगों को के साथ दो परिवार और कई नए रिश्ते भी बनाता है।
विद्वतजन एवं वांग्मय के अनुसार इस चतुर्मास का प्रकृति से भी सीधा संबंध है। यह सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव से सामंजस्य बैठाने का भी संदेश देता है। इन महीनों में एक जगह ठहरने की मान्यता है। भगवान को साक्षी मानकर साधु-संत इन दिनों में एक जगह तुलसी का पौधा लगाकर निवास करते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज और अध्यात्म की चर्चा होती थी, देवताओं के उठने के बाद वहां से विदा होते समय साधु-संत लगाए गए तुलसी विवाह के साथ सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते थे।(एएमएपी)