अजय विद्युत ।

कुछ प्राचीन लेखकों ने अपने ग्रंथों में अर्थशास्त्र से अवतरण दिए हैं और कौटिल्य का उल्लेख किया है, लेकिन यह ग्रंथ लुप्त हो चुका था। कई विदेशी आक्रमणों तथा राज्यक्रान्तियों के कारण इस साहित्य का नाम-मात्र शेष रह गया है, परन्तु वह एक विस्तृत अर्थशास्त्रीय परम्परा का संकेत करता है।


 

1904 ई. में तंजोर के एक पंडित ने भट्टस्वामी के अपूर्ण भाष्य के साथ अर्थशास्त्र का हस्तलेख मैसूर राज्य पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री आर. शाम शास्त्री को दिया। श्री शास्त्री ने पहले इसका अंशत: अंग्रेजी भाषान्तर 1905 ई. में ‘इंडियन ऐंटिक्वेरी’ तथा ‘मैसूर रिव्यू’ (1906-1909) में प्रकाशित किया। इसके बाद इस ग्रंथ के दो हस्तलेख म्यूनिख लाइब्रेरी में प्राप्त हुए और एक संभवत: कलकत्ता में। तदनन्तर शाम शास्त्री, गणपति शास्त्री, यदुवीर शास्त्री आदि द्वारा अर्थशास्त्र के कई संस्करण प्रकाशित हुए। शाम शास्त्री द्वारा अंग्रेजी भाषान्तर का चतुर्थ संस्करण (1929 ई.) प्रामाणिक माना जाता है।

हजारों वर्ष पहले ढूंढ लिया था आज की चिंताओं का इलाज

इकोनॉमिक्स की पुस्तक समझना भूल

पुस्तक के नाम से ही इसे आजकल के अर्थशास्त्र (इकोनॉमिक्स) की पुस्तक समझना भूल होगी। पुस्तक का नाम अर्थशास्त्र रखे जाने का यह कारण हो सकता है कि उस समय अर्थशास्त्र को राजनीति और प्रशासन का शास्त्र माना जाता था। महाभारत में इस संबंध में एक प्रसंग है, जिसमें अर्जुन को अर्थशास्त्र का विशेषज्ञ माना गया है- समाप्तवचने तस्मिन्नर्थशास्त्र विशारद:। पार्थो धर्मार्थतत्त्वज्ञो जगौ वाक्यमनन्द्रित:॥ (3)

भारत तथा पश्चिमी देशों में हलचल

किताब के छपते ही भारत तथा पश्चिमी देशों में हलचल-सी मच गई। इसमें शासन संचालन के विज्ञान के उन अद्भुत तत्त्वों का वर्णन था, जिनके बारे में समझा जाता था कि भारतीयों को इनका कुछ अता पता नहीं है।

पाश्चात्य विद्वान फ्लीट, जौली आदि ने ‘अर्थशास्त्र’ को ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण’ ग्रंथ बताया और इसे भारत के प्राचीन इतिहास के निर्माण में परम सहायक साधन स्वीकार किया।

प्राचीन हिन्दू राज्य के पदाधिकारी

राजा (किंग), युवराज (क्राउन प्रिंस), सेनापति (चीफ- आर्म्ड फोर्स), परिषद (कौंसिल), नागरिक (सिटी मैनेजर), पौरव्यवाहारिक (सिटी ओवरसियर), मन्त्री (काउंसलर), कार्मिक (वर्क्स अफसर), संनिधाता (ट्रैजरर), कार्मान्तरिक (डायरेक्टर फैक्ट्रीज), अन्तेपाल (फ्रंटियर कमांडर), अन्तर विंसक (हेड गार्ड्स), दौवारिक (चीफ गार्ड), गोप (रेवेन्यू अफसर), पुरोहित (चप्लैन), करणिक (एकाउंट्स अफसर), प्रशास्ता (एडमिनिस्ट्रेटर), नायक (कमांडर), उपायुक्त (जूनियर अफसर), प्रदेष्टा (मजिस्ट्रेट), शून्यपाल (रीजेंट), अध्यक्ष (सुपरिन्टेन्डेन्ट)।


हजारों वर्ष पहले से भ्रष्टाचार एक गंभीर रोग