मंदिरों से निकले फूलों को एकत्र कर महिलाएं दे रहीं नया स्वरूप।
यह नायाब तरीका प्रदूषण रोकने में भी सहायक
वैसे तो जगविख्यात मां विंध्यवासिनी धाम से ही अकेले नवरात्र के दौरान हजारों क्विंटल पवित्र फूल के अवशेष निकलते हैं। महिलाएं विंध्यवासिनी मंदिर के साथ आसपास के मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले फूलों का सदुपयोग करने का प्रयास कर रही हैं। विंध्य क्षेत्र के मंदिरों से निकलने वाले फूलों से अगरबत्ती बना महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं। इसके लिए विंध्याचल स्थित प्रबोधिनी शक्ति धाम में लगभग डेढ़ लाख रुपये की लागत से अत्याधुनिक मशीन लगाई गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि महिलाएं क्षेत्र के मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों को एकत्र करती हैं। इसके बाद फूलों को सूखाकर अगरबत्ती व धूपबत्ती तैयार करती हैं। प्रबोधिनी शक्ति धाम में कुल 90 महिलाएं जुड़ी हैं, जो 30 से 50 किलोग्राम अगरबत्ती प्रतिदिन बनाती हैं। प्रति महिला एक घंटे में एक से दो किग्रा अगरबत्ती बनाती हैं। महिलाओं को प्रति किग्रा 30 रुपये दिया जाता है।

महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की अध्यक्ष नंदिनी मिश्रा और विभूति मिश्रा की प्रेरणा व नाबार्ड के सहयोग से फूलों को सूखाकर जय महाशक्ति धूपबत्ती और अगरबत्ती का निर्माण कर रही हैं। साथ ही नीम के पत्ते एवं अन्य औषधीय पत्ते का प्रयोग कर मच्छर भगाने वाली टिकिया का भी निर्माण कर रही हैं। मंजू, शिव दुलारी, शांति, श्याम कुमारी, नसरीन, शकीना आदि महिलाएं अगरबत्ती तैयार करती हैं।
प्रतिदिन बनाती हैं पांच किग्रा अगरबत्ती
महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की अध्यक्ष नंदिनी ने बताया कि महिलाएं विंध्याचल धाम, लाल भैरव मंदिर, दूधनाथ मंदिर सहित क्षेत्र के समीपस्थ मंदिरों से फूलों को एकत्र करती हैं। इसके बाद इन फूलों को सूखाकर पाउडर बनाया जाता है, फिर इसमें जिगत पाउडर व गोंद मिलाती हैं। एक दिन में एक महिलाएं अमूमन पांच किग्रा अगरबत्ती तैयार करती हैं।
मात्र 60 रुपये में 500 पीस अगरबत्ती
फूलों से अगरबत्ती तैयार करने के बाद स्थानीय बाजार में लगभग 55 से 60 रुपये प्रति किग्रा की दर से बिक्री की जाती है। एक किग्रा में लगभग 500 पीस अगरबत्ती होती है।(एएमएपी)



