आपका अखबार ब्यूरो।
पश्चिम बंगाल में चुनावी बिसात बिछने लगी है। भाजपा ने दो दिन पहले राज्य को पांच हिस्सों में बांटकर पांच प्रभारी नियुक्त किए। तो शनिवार को तृणमूल कांग्रेस ने पलटवार किया। ममता की पार्टी ने इसे ‘बाहरी’ बनाम भूमिपुत्र की लड़ाई बनाने का ऐलान कर दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि बाहरी लोग आते हैं और हल्ला मचाकर चले जाते हैं। हम लोग यहां चौबीस घंटे लोगों के साथ रहते हैं।
बाहरी लोग ला रही भाजपा : तृणमूल
भाजपा ने पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए सुनील देवधर, विनोद तावड़े, विनोद सोनकर, हरीश द्विवेदी और दुष्यंत गौतम को पांच क्षेत्रों का प्रभारी नियुक्त किया। इससे तृणमूल को लगा कि इस बार भाजपा विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकने जा रही है। याद रहे इन पांच लोगों में सुनील देवधर वही हैं जिन्होंने त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। भाजपा के पांचों नेता संगठन के काम से जुड़े रहे हैं। इनकी मदद के लिए राज्य के नेताओं को लगाया गया है।
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता बृत्य बसु ने इन पांच प्रभारियों की नियुक्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बंगाल पर हमला करने के लिए बाहरी लोगों को लाया जा रहा है। इन लोगों को बंगाल की संस्कृति की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारतीयों और पश्चिम भारत के लोगों ने कभी बंगालियों का सम्मान नहीं किया। बसु ने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि केंद्र में बंगाल से कोई कैबिनेट मंत्री तक नहीं है। उन्होंने कहा कि यहां तक कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन भी बंगालियों का महत्व समझते हैं। इसीलिए वे एक बंगाली को अपनी सरकार में शामिल करने वाले हैं। वे यहीं तक नहीं रुके उन्होंने कहा कि आज तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी किसी बंगाली को सरसंघ चालक नहीं बनाया।
बाहरी बनाम भूमिपुत्र
भाजपा ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी शायद भूल गई है कि भाजपा के पहले अवतार जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी संघ से ही थे। भाजपा नेता ने पूछा कि क्या बंगाल से बाहर के लोग ममता के लिए बाहरी हैं? क्या बंगाल के लोग देश के दूसरे प्रदेशों में नहीं रहते।
इस वार पलटवार से एक बात तो साफ नजर आ रही है कि बाहरी बनाम भूमिपुत्र का मुद्दा ममता बनर्जी की रणनीति का मुख्य आधार होगा। इस चुनाव में एक बात तो तय है कि यह लड़ाई तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच है। कांग्रेस और वामदल अभी से हाशिए पर नजर आ रहे हैं। शायद यही वजह है कि दोनों दल आपस में चुनावी तालमेल करके चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।