बात भारत की -5
खासकर हमारे देश में समाजवादी व्यवस्था को गरीबों की हितैषी माना गया है और पूंजीवाद को गरीब विरोधी। नेताओं ने यही समझाया कि समाजवाद से ही गरीबी का उन्मूलन हो सकता है और पूंजीवाद केवल पूंजीपतियों के घर भरने और गरीबों का शोषण करने की व्यवस्था है। भारत के स्वतंत्र होने के साथ ही योजनाओं/नीतियों में समाजवादी दृष्टिकोण की दुहाई देते हुए गरीब के लिए आश्वासनों के अंबार लगाए जाते रहे। पर हुआ क्या? गरीबी हटाओ के दम पर सरकारें बनती रहीं… और गरीबी घटने के बजाय बढ़ती रही।
गरीब का कल्याण कभी भी नहीं हुआ। हां गरीब के कल्याण पर आंदोलन बहुत हुए, क्रांतियां बहुत हुर्इं, हत्याएं बहुत हुर्इं। गरीब के कल्याण से थोड़ा चौंकने की जरूरत है। जब भी कोई आदमी कहे कि मैं गरीब का कल्याण चाहता हूं, तब जरा सम्हल जाने की जरूरत है कि कोई खतरनाक आदमी आया है। अब यह फिर गरीब की छाती पर पैर रखेगा और गरीब नासमझ है और नासमझ होने की वजह से गरीब है। इसलिए फिर नया मसीहा, नया नेता उसे मिल जाता है। ये फिर उसकी छाती पर चढ़ जाते हैं। सब गरीबों का कल्याण करना चाहते हैं और गरीब का कोई कल्याण होता दिखाई नहीं पड़ता। नहीं, गरीब का कल्याण इन कल्याण करने वालों से नहीं होगा।
हिंदुस्तान को नजर रखनी चाहिए उन मुल्कों की तरफ जिनकी सामान्य पृष्ठभूमि हमारे जैसी है, जिनका बेसिक ह्यूमन मैटीरियल हमारे जैसा है, जिनका बौद्धिक विकास हमारे जैसा है। हिंदुस्तान को इजरायल पर नजर रखनी चाहिए, जापान पर नजर रखनी चाहिए, तो हमारे काम का हो सकता है।
गरीब का कल्याण न होने का कारण सिर्फ एक है कि संपत्ति कम है और लोग ज्यादा हैं। संपत्ति लोगों से उनकी जरूरत से ज्यादा होनी चाहिए। यह संपत्ति कैसे पैदा हो, यह सवाल है। लेकिन जो संपत्ति पैदा कर सकते हैं, गरीब के लिए हितकर हो सकते हैं- गरीब उनके खिलाफ खड़ा हो जाता है। आदमी की यह आदत बहुत पुरानी है।
गरीब के कल्याण का मतलब है, संपत्ति का उत्पादन। ऐसे यंत्रों का उत्पादन जो संपत्ति को हजार गुना रूप से पैदा करने लगें। गरीब के कल्याण का मतलब है, पृथ्वी को वर्ग-विद्वेष से विहीन करने का उपाय। लेकिन सारे समाजवादी वर्ग-विद्वेष पर जीते हैं। उनका सारा जीना क्लास-कांफ्लिक्ट पर है। गरीब को अमीर के खिलाफ भड़काओ।
कार के इंजन को लाकर बैलगाड़ी में
हम दुनिया में, कहीं भी अच्छा हो रहा है उसको अच्छा मान कर फौरन शुरू कर देते हैं, इस बात की बिना फिकर किए कि उसकी पूरी पृष्ठभूमि हमारे पास तैयार है या नहीं। अगर पृष्ठभूमि तैयार नहीं है तो वह बिलकुल अच्छा हो तो भी बेमानी है। वह ऐसे ही है जैसे कार के इंजन को लाकर बैलगाड़ी में रख लिया है।
हिंदुस्तान को नजर रखनी चाहिए उन मुल्कों की तरफ जिनकी सामान्य पृष्ठभूमि हमारे जैसी है, जिनका बेसिक ह्यूमन मैटीरियल हमारे जैसा है, जिनका बौद्धिक विकास हमारे जैसा है। हिंदुस्तान को इजरायल पर नजर रखनी चाहिए, जापान पर नजर रखनी चाहिए, तो हमारे काम का हो सकता है।
समाजवादी पुलाव
इतनी पुरानी गरीबी को मिटाने के लिए बहुत धैर्य की जरूरत है। समाजवादी में वह धैर्य बिलकुल नहीं है। वह कहता है, हम आज ही मिटा देंगे। खतरा यह है कि आज मिटाने में वह और लंबा वक्त न लगवा दे! क्योंकि उसे पूंजी पैदा करने का कोई खयाल ही नहीं है। हिंदुस्तान में जो समाजवादी हैं, उनका एक ही खयाल है कि पूंजी का वितरण कर देना। इससे गरीबी नहीं मिटेगी। कितनी पूंजी है हिंदुस्तान के पास जिसका आप वितरण कर लेंगे? एक दस करोड़पतियों को, जिनके पास पूंजी है, उसको उठा कर बांट दीजिए। यह ऐसे खो जाएगी जैसे एक तालाब में हमने एक मुट्ठी भर रंग डाल दिया हो। इतना ही हो सकता है कि दस-पांच जिनके पास पूंजी दिखाई पड़ रही है, उनको भी हम गरीब बना लें, बस। इससे ज्यादा कोई परिणाम नहीं होगा बांटने का।
असली सवाल यह है कि संपत्ति नहीं है। वह कैसे पैदा की जाए? संपत्ति पैदा करने की जो व्यवस्था पूंजीवाद के पास है वह समाजवाद के पास नहीं है। क्योंकि पंूजीवाद के पास व्यक्तिगत प्रेरणा की आधारभूत शिला है। एक-एक व्यक्ति उत्प्रेरित होता है संपत्ति कमाने को, प्रतिस्पर्धा को, प्रतियोगिता को। समाजवाद में न तो प्रतियोगिता है, न प्रतिस्पर्धा। समाजवाद में न तो कोई आदमी कम काम कर रहा है, न कोई ज्यादा। और न इन दोनों के बीच तय करने का कोई उपाय है।
शोषण किसका
किसी गांव में 10,000 गरीब हों और उनमें से दो आदमी मेहनत करके अमीर हो जाएं तो बाकी 9,998 लोग कहेंगे कि इन दो आदमियों ने अमीर होकर हमको गरीब कर दिया। कोई यह नहीं पूछता कि जब ये दो आदमी अमीर नहीं थे तब तुम अमीर थे? तुम्हारे पास कोई संपत्ति थी, जो इन्होंने चूस ली? नहीं, तो शोषण का मतलब क्या होता है? अगर हमारे पास था ही नहीं तो शोषण कैसे हो सकता है? शोषण उसका हो सकता है जो हमारे पास हो। अमीर के न होने पर हिंदुस्तान में गरीब नहीं था? हां, गरीबी का पता नहीं चलता था। क्योंकि पता चलने के लिए कुछ लोगों का अमीर हो जाना जरूरी है। तब गरीबी का बोध होना शुरू होता है।
बड़े आश्चर्य की बात है- जो लोग मेहनत करें, बुद्धि लगाएं, श्रम करें और अगर थोड़ी संपत्ति इकट्ठी कर लें, तो ऐसा लगता है कि इन लोगों ने अन्याय किया। और जो लोग बैठ कर हुक्का-चिलम पीते रहें और कोई संपत्ति पैदा न करें, तो लगता है इन बेचारों पर बड़ा अन्याय हो गया। इस काहिलियत और सुस्ती को समझने की हमारी तैयारी नहीं।
पूंजीपति को जब हम कहते हैं कि उसने शोषण कर लिया तो हम भूल जाते हैं कि उसने किसका शोषण किया? किसी के पास संपत्ति थी जिसकी उसने जेब काट ली या किसी का गड़ा हुआ धन इसने निकाल लिया? नहीं। इसने सिर्फ एक बुरा किया है कि किसी के पास श्रम था और किसी को दो रुपया देकर उसका श्रम खरीद लिया। यह नहीं खरीदता तो यह श्रम बेचता नहीं। श्रम नदी की धार की तरह बह जाता है।
श्रम बनाम पूंजी
अगर आज मेरे पास श्रम की ताकत है आठ घंटे की और मैं उसका उपयोग न करूं तो कल मेरे पास दो रुपये नहीं बच जाएंगे, क्योंकि मैंने श्रम का उपयोग नहीं किया। जो मुझे दो रुपया देकर मेरे श्रम को पूंजी में कनवर्ट करता है उसको मैं कहता हूं, यह मेरा शोषण कर रहा है। तो आप शोषण मत करवाइए, बैठ जाइए अपने घर और अपने श्रम को तिजोरी मे बंद करके रखिए।
पूंजीवाद शोषण नहीं श्रम को पूंजी में कनवर्ट करने की व्यवस्था है। लेकिन जब आपको या मुझे दो रुपये मेरे श्रम के मिल जाते हैं तो मैं देखता हूं जिसने मुझे दो रुपये दिए उसके पास कार भी है, बंगला भी। स्वभावत: तब मुझे खयाल आता है कि मेरा कुछ शोषण हो रहा है। और मेरे पास कुछ भी नहीं था जिसका शोषण हुआ।
हो सकता है कि समाजवादी यह भी कहें कि कुछ लोग बुद्धिमान हो जाते हैं और दूसरों को मूर्ख बनाकर उनका शोषण करते हैं। सच बात यह है कि कोई किसी की बुद्धि का शोषण करके बुद्धिमान नहीं बनता। जो बुद्धिमान बनता है वह अपने श्रम से बनता है और वह बुद्धिहीनों के लिए भी बहुत-कुछ जुटाता है जीवन भर। लेकिन उसको बुद्धिहीन धन्यवाद नहीं देंगे।
श्रम -शक्ति, आलस्य -दरिद्रता
श्रम शक्ति है, और आलस्य दरिद्रता है। इस देश के भाग्य का उदय न होगा अगर एक-एक आदमी ने यह न समझा कि गरीबी, दीनता और दुख के लिए हम जिम्मेवार हैं। यह जिम्मेवारी दूसरे पर टांगना खतरनाक है। खूंटियां बदलने से कुछ भी नहीं हो सकता।
श्रम को पूंजी में रूपांतरित करने वाले पूंजीपति को हमें राजी करना पड़ेगा। उसे प्रेरणा देनी पड़ेगी, स्वतंत्रता व सुविधाएं देनी पड़ेंगी कि वह ज्यादा से ज्यादा पूंजी पैदा करे और मुल्क को जल्द से जल्द औद्योगिक क्रांति से गुजारे।
दूसरे, मुल्क में विस्फोटित जनसंख्या पर सख्ती से रोक लगानी पड़ेगी। उसके सारे इंतजाम हमें करने पड़ेंगे। तो ही इस मुल्क का कोई भविष्य है, अन्यथा हमारे सामने अंधकार के गर्त के सिवाय कुछ भी नहीं।