अनिल सिंह ।

डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर ने लिखा है, ”भारत के मुसलमानों के बीच सामाजिक सुधार के लिए कोई ऐसा उपयुक्त संगठित आंदोलन नहीं है जो उनकी विसंगतियों को दूर करने का ठोस मानक बन सके। 1930 में जब केन्द्रीय असेंबली में बाल विवाह कानून लाया गया तो मुसलमानों ने इसका विरोध किया। इसमें विवाह के लिए लड़की की आयु बढ़ाकर 14 वर्ष और लड़के की 18 वर्ष करने का विचार था।”


 

आंबेडकर लिखते हैं, ”उन्होंने विरोध में यह तर्क दिया कि यह हमारे शरीयत कानून के खिलाफ है। न केवल उन्होंने इस कानून का हर स्तर पर विरोध किया, बल्कि जब यह कानूनी रूप से लागू हो गया तो उन्होंने इस अधिनियम के खिलाफ अवज्ञा आन्दोलन अभियान शुरू कर दिया।” वे लिखते हैं, ”पाकिस्तान बनने पर जब बंटवारा हुआ तो मैंने महसूस किया कि अब भगवान ने भारत को अभिशाप से मुक्त कर दिया है और भारत अब महान व् समृद्ध होगा।”

( डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज, वॉल्यूम-1, पृष्ठ 146 )

जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो

प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्थान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिन्दुस्थान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया। पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक संयुक्त राज्य ही बना रहना चाहिए। हिन्दुस्थान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिन्दुस्थान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक की समस्या बनी रहेगी। हिन्दुस्थान में मुसलमान पहले की तरह ही बचे रहेंगे और हिन्दुस्थान की राजनीति में हमेशा बाधाएं पैदा करते रहेंगे। (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया, संस्करण 1945, थाकेर एंड क., पृष्ठ-104)

फ़ासीवाद-नाज़ीवाद और साम्यवाद: समानताएँ और भिन्नताएँ-1

बौद्ध मत की जड़ पर प्रहार

डॉ. आंबेडकर “द डिक्लाइन एंड फॉल ऑफ़ बुद्धिज़्म” में लिखते हैं, ”मुसलमान आक्रांताओं ने बौद्ध अर्चकों व भिक्षुओं में कत्लेआम का अभियान चलाया। मुसलमानों की इस खूनी कुल्हाड़ी ने बौद्ध मत की जड़ पर प्रहार किया। बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करके इस्लाम ने बौद्ध मत को ही मार दिया। भारत में बौद्ध मत पर पड़ने वाली यह बहुत बड़ी आपदा थी।”

वे एक अन्य पुस्तक में लिखते हैं, ”मुसलमान आक्रमणकारियों ने नालंदा, विक्रमशिला, जगदाला, औदान्त्पुरी आदि कई बौद्ध विश्वविद्यालयों को खत्म कर दिया। देशभर में जिन शिक्षण संस्थानों और बौद्ध मठों में बौद्ध मत का अध्ययन-अध्यापन हो रहा था उन्हें कट्टरपंथी हमलावरों ने ढहा दिया। हजारों की संख्या में बौद्ध भिक्षु अपनी जान बचाने के लिए नेपाल, तिब्बत और भारत से बाहर कई देशों में भाग गए। बड़ी संख्या में वे मुसलमान सैनिकों व सेनापतियों द्वारा मारे गए। बौद्ध अर्चकों की हत्या मुस्लिम आक्रान्ताओं की तलवार से किस प्रकार हुई, इसे मुस्लिम इतिहासकारों ने वर्णित किया है।” (डॉ. बाबा साहब आंबेडकर राइजिंग एंड स्पीचेज वॉल्यूम-3, महाराष्ट्र सरकार 1987, पृष्ठ 232)

(अनिल सिंह प्रख्यात शिक्षाविद हैं और विभिन्न विषयों पर उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं)