रुबाना ने किया शिवभक्त से विवाह
दरअसल, ये कहानी है बुरहानपुर में जन्मी और बड़ी हुई रुबाना खान की । जो अब सनातन धर्म में घर वापिसी कर पुन: हिन्दू बन गई हैं। सावन के पुण्य पवित्र माह में वह इस समय भगवान शिव की आराधना में लगी हुई हैं। रुबाना ने अपने माता-पिता से मिला नाम छोड़ दिया है, उन्हें सनातन की ऐसी धुन लगी कि वे आज रक्षा नाम से पुकारा जाना पसंद करती हैं। समय ने उनके साथ ऐसा खेल खेला कि जब शादी की उम्र हुई तो उन्हें अपने लिए जो वर पसंद आया वह भी शिवभक्त है। दोनों ने इसे ईश्वर की अपने प्रति विशेष कृपा मानी और खुशी-खुशी विवाह बंधन मे बंध गए।
बुरहानपुर के रहनेवाले प्रतीक सोलंकी से इसी सावन महीने में उसने विवाह किया है । खंडवा के प्राचीन शिव मंदिर महादेवगढ़ में अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करने ये दम्पत्ति बुरहानपुर से चलकर खण्डवा आए और यहां महादेवगढ़ में सावन के दूसरे सोमवार को इस नवयुगल ने भगवान भोलेनाथ की आरती कर उनकी विशेष अनुकंपा प्राप्त की है ।
शिव आराधना के लिए अपनाया हिन्दू धर्म
रुबाना से रक्षा बनी इस शिवभक्त ने बताया कि वह सनातन धर्म अपनाकर रूबी से रक्षा इसलिए बन गई हैं, क्योंकि उसे भगवान शिव का चरित्र चित्रण बार-बार अचंभित करता है । उन्होंने बताया कि अपने मत-पंथ से अलग हिन्दू धर्म में विवाह करने के पीछे का उद्देश्य भी यही है कि वह भगवान शिव की आराधना कर सके। उन्होंने दूसरे धर्म में विवाह करने का निर्णय ही इसलिए किया, क्योंकि सनातन के प्रति उनका लगाव अगाध है। इसी के चलते उसने ये कदम उठाया । खंडवा के प्राचीन शिव मंदिर महादेवगढ़ में बुरहानपुर की रुबाना अब रक्षा इस वक्त अपने पति के साथ भोलेनाथ की आराधना में मगन है।
सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर आराधना के हैं अनेक रूप
रक्षा बताती हैं कि प्रतीक भी शिवभक्त हैं और उनका प्रेम भी शिव-सती और शिव-पार्वती की तरह अगाध है, तभी मैंने इसके साथ प्रेम विवाह रचाया है। वह कहती है कि हिन्दू धर्म में विराटता एवं मन की व्यापकता है, वह उसे हमेशा से आकर्षित करती रही है, जैसे कि आप किसी भी देवता को मानें, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। ईश्वर आराधना के अनेक रूप यहां हैं, इसमें कोई विवाद भी नहीं। जरूरी नहीं कि जो मुझे पसंद है, वह सामनेवाले को भी हो, इसलिए यहां किसी पर विचार थोपे नहीं जाते हैं। साल भर कुछ न कुछ उत्सव हिन्दू धर्म में होते हैं, खुशी के पल खोजना नहीं पड़ते, वह आपके जीवन में धर्म के साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे में मैंने हिन्दू धर्म अपनाने का मन बना लिया था, फिर जब प्रतीक जीवन में आए तो लगा यह भगवान महादेव की मुझ पर विशेष कृपा हुई है।
महादेव की कृपा पाने महादेवगढ़ जाकर किया सावन में विवाह
इसके साथ ही उनके विवाह से लेकर अन्य सामाजिक गतिविधियों में अत्यधिक सक्रिय रहनेवाले महादेवगढ़ मंदिर के संरक्षक अशोक पालीवाल रुबाना को लेकर कहते हैं कि उस बहन का शुरू से ही मन सनातन के प्रति प्रेममय है, इसलिए वो यहां आईं। उन्होंने बताया भी कि पहले जिस मत-पंथ में थीं, वहां उन्हें हिंसक प्रवृत्तियां बचपन से देखने को मिलीं। नारि का असम्मान भी देखा और इस बीच सनातन धर्म की अनेक परम्पराएं उसे अच्छी लगती थीं, क्योंकि उसकी सहेलियां जिस प्रकार से तीज-त्यौहार बनाती थीं, लेकिन वह दूसरे मत की होने के कारण से उन्हें नहीं बना पाती थीं। ऐसे में जब रुबाना को प्रतीक मिले तो उन्होंने यहीं मंदिर में आकर प्रेम विवाह किया है।
अब माता पार्वती उनकी मां और महादेव उनके पिता
यहां उन्होंने कहा है कि अब माता पार्वती उनकी मां हैं और महादेव उनके पिता हैं। उनकी इच्छा थी कि मां नर्मदा के दर्शन लाभ के बाद वे मां गंगा स्नान करें, इसलिए वह अभी हरिद्वार जाकर वापिस आई हैं। उन्होंने सिर्फ सनातन के प्रति अपनी आस्था एवं समर्पण का भाव ही नहीं दिखाया है बल्कि पाकिस्तान में जो हिन्दू बहनों के साथ घट रहा है, उसका भी विरोध किया और पाकिस्तान का पुतला दहन किया है ।
आपको बतादें कि मध्य प्रदेश में खंडवा का महादेवगढ़ मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां सावन के शिव माह में विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। सिर्फ प्रदेश के कोने-कोने से ही नहीं देश भर से और विदेशों से भक्त आकर यहां अपनी कामना पूर्ति के लिए महादेव और मां पार्वती के समक्ष प्रार्थना करते हैं। यह मंदिर अति प्राचीन बताया जाता है, कब इसका निर्माण हुआ, कितना पुराना है, इसके बारे में सभी का कहना यही है कि हमारे बुजुर्ग यही बताते आ रहे हैं कि यह मंदिर बचपन से वे देखते आए हैं, उनकी पीढ़ियां भी इस मंदिर को इसी तरह से देखती रही हैं।(एएमएपी)