आपका अखबार ब्यूरो।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का जाना कांग्रेस ही नहीं नेहरू- गांधी परिवार के लिए बड़ा झटका है। राजनीतिक दलों में कुछ ऐसे नेता होते हैं जो जमीनी राजनीति से ज्यादा राजनीतिक प्रबंधन के माहिर होते हैं। अहमद पटेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मैन फ्राइडे थे। या यों भी कह सकते हैं कि वे सोनिया गांधी की आंख कान थे। यही कारण है कि पटेल पिछले करीब तीन दशक से राज्यसभा के सदस्य थे।
सोनिया गांधी से करीबी सबसे बड़ी ताकत
सोनिया गांधी तक कांग्रेसियों के पहुंचने का जरिया थे अहमद पटेल। कांग्रेस में वे अहमद भाई के नाम से जाने जाते थे। अहमद पटेल कांग्रेस के सारे स्याह सफेद का चलता फिरता एनसाईक्लोपीडिया थे। संगठन हो या सरकार, खासतौर से यूपीए के दस साल के कार्यकाल में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। क्योंकि अहमद भाई की मर्जी दरअसल सोनिया गांधी की मर्जी होती थी। पीवी नरसिंह राव हों या मनमोहन सिंह सोनिया गांधी क्या चाहती हैं इसकी जानकारी उन्हें अहमद पटेल से ही मिलती थी।
In Ahmed Patel, lost an irreplaceable comrade, a faithful colleague. My condolences to family and friends. @mfaisalpatel pic.twitter.com/4wJ7NkrWsq
— Sonia Gandhi (@SoniaGandhi_FC) November 25, 2020
सोनिया गांधी से उनकी करीबी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। वे मंत्री नहीं थे लेकिन बड़े बड़े कांग्रेसी मंत्री उनके यहां दरबार लगाते थे। संगठन और सरकार में होने वाले बदलावों पर कांग्रेस के लोगों को अहमद पटेल की छाप नजर आती थी। मीडिया के लोगों से उनकी दोस्ती और मीडिया पर उनका प्रभाव कांग्रेस और सोनिया गांधी के लिए हमेशा उपयोगी बना रहा। उनकी वफादारी पर कभी संदेह के बादल नहीं मंडराए।
आखिरी झटका लगा अगस्त 2017 में
बताने की जरूरत नहीं कि अहमद पटेल गुजरात से आते थे। गुजरात में कांग्रेस की राजनीति में अंतिम बात अहमद पटेल ही थे। राष्ट्रीय राजनीति में अहमद पटेल के उदय के साथ साथ गुजरात में कांग्रेस का सूर्य अस्ताचल की ओर चलता गया। आखिरी झटका अगस्त 2017 में लगा जब अहमद पटेल की राज्यसभा सीट की खातिर सोनिया गांधी ने पूरे गुजरात कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी। गुजरात में भीषण बाढ़ थी और अपने विधायकों को भाजपा में जाने से बचाने के लिए कांग्रेस उन्हें बेंगलुरू के फाइव स्टार होटल में ले गई। संकट के समय जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के लोगों के साथ खड़े होना तो दूर सम्पर्क में भी नहीं थे। क्योंकि उनके फोन ले लिए गए थे। नतीजा यह हुआ कि अहमद पटेल राज्यसभा चुनाव तो जीत गए लेकिन उसी साल दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार सातवीं बार चुनाव हार गई।
It is a sad day. Shri Ahmed Patel was a pillar of the Congress party. He lived and breathed Congress and stood with the party through its most difficult times. He was a tremendous asset.
We will miss him. My love and condolences to Faisal, Mumtaz & the family. pic.twitter.com/sZaOXOIMEX
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 25, 2020
उस जीत के बाद अहमद पटेल हारते ही रहे। यूपीए सरकार जाने और राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही अहमद पटेल के सितारे गर्दिश में जाने लगे। वे सोनिया गांधी के जितने प्रिय थे राहुल गांधी को उतने ही अप्रिय। उसके बाद भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेंसियों का शिकंजा उनपर कसने लगा। उनके सर पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। गिरते स्वास्थ्य के कारण ही वे बचे रहे। उनके जाने से कांग्रेस में बहुत से लोग अनाथ हो जाएंगे और सोनिया गांधी पहले की तुलना में पार्टी के अंदर और कमजोर हो जाएंगी।